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Ashok Verma "Hamdard"
निन्यानवे का चक्कर ******************** जीवन भर पैसा कमाया, दान पुण्य भी ऐसा वैसा निन्यानबे के चक्कर में, न शरीर बचा न पैसा, श्मशान जाकर भी सब देखे,कुछ समझ ना पाए ऐसा पेट फुलाकर धन कमाकर,सोये जैसे भैसा। दौलत की ऐसी भूख लगी की मां बाप को छोड़ा साला साली सरहज को केवल,अपने कुनवे से जोड़ा सास बन गई बड़ी महतारी,युग आ गया कैसा निन्यानवे के चक्कर में न शरीर बचा न पैसा।। ©Ashok Verma "Hamdard" निन्यानवे का चक्कर
k.k mehra
Alone समुंदर में जाकर लोग रास्ता ढूंढ रहे सामने है उससे नफरत कर रहे सायद यहीं जगह ठीक होगी क्यों की तुम्हारे जैसे ही इनका हाल है इन बूंदों को भी रोका था धरती ने लेकिन बड़ा बनने की चाह ने इन्हे खरा बना दिया वक्त का फेर
Dayal "दीप, Goswami..
कुछ शब्दों की समझ का फेर था,जी का जंजाल बन गया जिंदगी में बहुत कुछ हासिल किया कैसे कंगाल बन गया खोजा शकून गली गली ,ना जाने कैसे बवाल मच गया, जिंदगी की तलाश में, जिंदगी का ही ये सवाल बन गया।******************* अपने ही शब्दों की खातिर हम ने खुद को रोक लिया जिंदगी के एक अध्याय को हमने यहीं खत्म, किया अधूरी ख्वाइश,जिंदगी की अधूरी कहानी बनकर रह गई लफ्ज़ खामोश ,शब्द खामोश, यहीं अब जिंदगी बन गई। ,,दीप,, , #शब्दार्थ का फेर@@
Amit Singhal "Aseemit"
कल तक जो आपका हमप्याला हमनिवाला था, आज वह आप के लिए दुश्मन और गैर हो गया। तब आप का ज़िंदगी भर साथ निभाने वाला था, अब सच्चाई से सामना या नज़र का फेर हो गया। ©Amit Singhal "Aseemit" #नज़र #का #फेर
Sapan Kumar
क्या सच क्या झूठ, सब समय-समय का फेर है, ये तो वक्त खुद ही, वक्त आने पर बतायेगा, थोड़ा सब्र तो रख बस,समय आने की देर है। ©Sapan Kumar समय का फेर
Raj Purohit ji Bateshwar Dham Bah (Agra)
प्रकृति द्वारा बनाया गया हर जीव सुंदर है,उन्हें देखने के लिए अहंकारी आंखें नहीं,सुंदर दिल और दिमाग चाहिए,जिनका दिल और दिमाग जैसा होता है,समाज भी उन्हें वैसा ही दिखाई देता है नजरों का फेर
Ajay yadav
---- नज़र का फेर। नज़र नज़र का ही फेर है ये, किसी नज़र में राजा हो तो किसी नज़र में रंक।। नज़र नज़र का ही फेर है ये, कि तुम किसी कि नज़र में आशिक तो किसी कि नज़र में दिलजले हो।। ये नज़र का ही तो फेर है, नज़र के सामने होकर भी नज़र से दूर हो।। ये नज़र ही केसी, जिसमें तुम बड़े छोटे में अंतर न कर पाओ, बस ये एक नज़र नज़र क ही फेर है।। जिस नज़र से तुम दिखती हो, उसी नज़र से सारा जहां, बस ये नज़र का ही तो खेल है, कि तुम्हारी नज़र हम कुछ है और किसी कि नज़र में कुछ।। मेरी नज़र में तुम मेरा प्यार हो तो, किसी कि नज़र में तुम उसकी बेटी या बहन हो। बस ये एक नज़र नज़र का ही फेर है।। बस ये नज़र नज़र का हि फेर है कि बुरे वक्त पर, लोग रिश्ते बदल लेते हैं, नज़र फेर लेते हैं।। किसी कि नज़र में इतना न गिर जाऔ, कि अपनी नज़र में भी न उठ पाओ। ये नज़र नज़र का हि फेर हैं।।। धन्यवाद।।। #नज़र का फेर।
dilip khan anpadh
समय का फेर *********** एक वो दौड़ था,एक ये दौड़ है वो वक़्त कुछ और था,ये कुछ और है अब माँ का आँचल नसीब किसे है? कमीज में कॉलर होता है आँचल नहीं पिताजी भी कम कहाँ नहीं पोछते नाक बच्चों की कंधे पे रखे गमछे से क्योंकि कोट के साथ टाई होता है गमछे की जगह रुमाल है। ब्रो, सीस और आंटी ने सोंख लिया रिश्तों की मिठास चाचा,ताऊ,भैया,काकी कब के स्वर्ग सिधार गए हाय, हेल्लो, वेल,फाइन ने अभिवादन और आशीर्वचनों को चूस लिया। अब कहाँ मिलता पुरस्कार कहाँ बचे,वो उम्दा कलाकार? नहीं होती,छुपा-छुपी का खेल कहाँ बनाते है बच्चे रेल? मेडल, मोमेंटो और शील्ड ने घोंट दिया गला,पुरस्कार का। अब कौन गाता है मंगल गीत? डीजे पे निबट जाते हैं प्रीत कहाँ होती है,शर्माते कदमों से अग्नि के फेरे? मिल लेते हैं पहले ही वाट्सअप और फेसबुक के बसेरे कैमरे और वीडियो ने साक्षी बने बुजुर्गों की जुबाँ ही छीन ली। कब आता है डाकिया कौन पूछता है उसे क्या कोई खत मेरा भी है? आ जाते हैं संवाद पलक झपकते ही कानो में संतुष्ट कर जाते है,वीडियो कॉल इंतजार, कसक,खुशी और निराशा खामोश हो गए। अब नहीं लगता वो तांगा चौराहे पर गाड़ीवान ने बैल बेच दिया किसे पता चलता है? कौन आया,कौन गया? कैब,ओला और रापीडो ने आने जाने पर मिलन और बिछड़ने के अनुभवों को कुचल दिया। अब नही सुनाई देता ककहरा या कविता गुजरते हुए किसी विद्यालय के पास से शिक्षक कुशल और विषय इलेक्ट्रॉनिक हो गए प्रोजेक्टर और माइक ने हतभाग बना दिया शिक्षा को। कौन जाता है? कुएं,तालाब या नदी में नहाने को साबर,टब और नल के टोंटे ने सांसों,बाजुओं और पैरों को बेजान कर दिया जो उठा सके कुएं से बाल्टी नाप सके तालाब की गहराई और प्रतिरोध कर सके जल धारा को। कुंठित जीवन डब्बे का दूध और विज्ञान के विज्ञ ज्ञान ने महत्वहीन और निषप्राण कर दिया मानव को ईंट और पत्थर से बने दीवारों के बीच अब सपने देखे नहीं जाते लादे जाते हैं। रिश्ते पनपते नहीं ढाले जाते है। कल्पना की नहीं जाती परोसे जाते है। सीखता कौन है? सिखाए जाते है। फर्क है इस विकाश में क्योंकि एक वो दौड़ था,एक ये दौड़ है वो वक़्त कुछ और था,ये कुछ और है।। दिलीप कुमार खाँ"अनपढ़" #समय का फेर