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Hisamuddeen Khan 'hisam'
तेरे बिना मेरी पहचान क्या, तेरे बिना दिल का अरमान क्या। काशी यहीं थी मक्का यहीं था, तेरे साथ था तो मैं वहशी नहीं था। तेरे बिना मेरा ईमान क्या, तेरे बिना मेरी पहचान क्या। मेरी इबादत की सूरत थे तुम, दिल मेरा मंदिर मूरत थे तुम। तेरे बिना मेरा भगवान क्या, तेरे बिना मेरी पहचान क्या। हिसाम Hisam Khan Lyricist....... all rights reserved
Hisamuddeen Khan 'hisam'
रग ए जां में बसने वाले हैं, हम तेरी निगाह के उजाले हैं। ज़िन्दगी ने भले ठुकरा दिया हो हमको, मौत के सायों में पलने वाले हैं। हिसाम Hisam Khan Lyricist 9680050042 all rights reserved
Hisamuddeen Khan 'hisam'
ज़िन्दगी गुज़र रही है कुछ इस तरह से तेरे शहर में, अब तो कोई अपना पता भी पूछता नहीं। हिसाम ©✍️Hisamuddeen Khan 'hisam' Hisam Khan Lyricist 9680050042 all rights reserved
Hisamuddeen Khan 'hisam'
सोचता हूं के दिल को कहीं रख दूं निकाल कर, बड़ा कीमती है फिर से कहीं टूट ना जाए। गम ये नहीं है के फिर से ये जुड़ ना सकेगा, फ़िक्र है के टूटा तो ज़ख़्म तुम्हें भी मिलेगा। हिसाम ©✍️Hisamuddeen Khan 'hisam' Hisam Khan Lyricist 9680050042 all rights reserved
Hisamuddeen Khan 'hisam'
हज़ारों ज़ख़्म सीने में ताज़ा हैं अभी तलक जो तूने दे दिए मुझको, ये कौनसी ताक़त है जो मुझे तुझसे नफ़रत करने नहीं देती। हिसाम ©✍️Hisamuddeen Khan 'hisam' Hisam Khan Lyricist 9680050042 all rights reserved
Hisamuddeen Khan 'hisam'
मैं तक रहा तेरी नज़र और हो गया मुझपे करम, मुझे दौलतें नहीं चाहिए मेरे ख़ुदा तेरा इश्क़ दे। ये जहां मेरे किस काम का जो मुझे किसी की आस हो, तेरे इश्क़ में मिले जिल्लते तेरे नाम से ही इज्जतें। हिसाम ©✍️Hisamuddeen Khan 'hisam' Hisam Khan writer all rights reserved 9680050042
Hisamuddeen Khan 'hisam'
बड़ा कलेजा चाहिए सच को हज़म करने के लिए, झूट बाहें फैलाए खड़ा है सच्चाई का दम भरने के लिए। मैं एक पल के लिए भी अपनी जगह से हट नहीं सकता, लोग हथियारों से लैस खड़े हैं उसपे सितम करने के लिए। हिसाम ©✍️Hisamuddeen Khan 'hisam' Hisam Khan writer all rights reserved 9680050042
Hisamuddeen Khan 'hisam'
किसे आरज़ू थी तेरा गांव छोड़ जाने की, मैं तो आखरी सफर भी तेरी मिट्टी से चाहता था। Hisam ©✍️Hisamuddeen Khan 'hisam' Hisam Khan Lyricist 9680050042 all rights reserved
Swaraj Srivastava
मैंने तो अपना हाथ बढ़ाया था, उसे डूबने से बचाने के लिए, पर उसने मुझे ही खींच लिया, अपने साथ डुबाने के लिए written by Swaraj Srivastava. (Don't Copy. All rights reserved....)