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रजनीश "स्वच्छंद"
दुनिया सागर मैं बून्द रहा।। जो आज मैं आंखें मूंद रहा, दुनिया सागर मैं बून्द रहा। निजबल का जो अभिमान खड़ा, मूर्छित और वो कुंद रहा। अंधी नगरी का राजा काना मैं, दुनिया बटेर उसका दाना मैं। कुंए का मेढक मैं बन बैठा, है जग विस्तृत कब माना मैं। सावन का अंधा मैं बैठा था, दम्भ लहु अंदर पैठा था। रस्सी तो जलती रही मगर, तना हुआ तब भी ऐंठा था। खून पसीना एक हुआ कब, कर्म मेरा कहो नेक हुआ कब। बस बांछें खिलती रहतीं थीं, यत्न कहो तुम अनेक हुआ कब। चींटी था पर भी निकले थे, अहं-बर्फ़ कहाँ कब पिघले थे। खूंटे के बल जो कूद पड़ा, चहुये के दांत कहाँ कब निकले थे। छाती पे मूंग मैं दलता रहा, खोटा सिक्का पर चलता रहा। सच से आंखें चुराईं थीं, डूबते सूरज सा ढलता रहा। ताश के पत्ते बन बिखरा हूँ, कब आग चखी और कब निखरा हूँ। पल पल घुटनों पर आता रहा, सब जिसपे फूटे मैं वो ठीकरा हूँ। जब आंख खुली थी सवेर नहीं, घर था अंधेरा लगी कोई देर नहीं। अपना बोया था काट रहा, किस्मत का था कोई फेर नहीं। चिड़िया बस चुगती खेत रही, जीवन मुट्ठी से फिसलती रेत रही। आज किनारे बैठ हूँ रोता, कालिख बोलो कब श्वेत रही। ©रजनीश "स्वछंद" दुनिया सागर मैं बून्द रहा।। जो आज मैं आंखें मूंद रहा, दुनिया सागर मैं बून्द रहा। निजबल का जो अभिमान खड़ा, मूर्छित और वो कुंद रहा। अंधी नगरी
atrisheartfeelings
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥ गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥ गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही॥ अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥ मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥ गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥ सयन किएँ देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही॥ भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा॥ #sundarkand #sunderkand #ananttripathi #atrisheartfeelings #devotional #goodmorning प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥ गरल
मुंशी पवन कुमार साव "शत्यागाशि"
🔥जागो🔥 💥💥💥💥💥💥💥💥 करो कुछ, कुछ कर के मरो। व्यर्थ न तुम, खुद से डरो। 💥💥💥💥💥 👇 (Full in Caption) #shatyagashi #jago #kuchh_to_karo #awake #longform 🔥🔥जागो🔥🔥 ~~~~~~~~~~~~~ 💥💥💥💥💥💥💥 करो कुछ, कुछ कर के मरो। व्यर्थ न तुम, खुद से डरो।
रजनीश "स्वच्छंद"
मैं भष्मासुर।। मैं मानव हूँ मैं श्रेष्ठ रहा, मैं बुद्धि-बल से ज्येष्ठ रहा। मेरी विजय का बजता डंका, हस्तिनापुर हो या हो लंका। मुझमे विवेक विशेष रहा, जग अविवेकी शेष रहा। इस युग का मैं निर्माता हूँ, नीति-नियंता विधाता हूँ। धरा नदी ये पर्वत सारे, मेरे विवेक के आगे हारे। पाषाण में तप था बहुत किया, मनचाहा वर सृष्टि ने दिया। पल में मैं सागर लांघ रहा, मुर्गा अभी भी देता बांग रहा। वो सदियों से वहीं पे बैठा रहा, मानो जड़ता ही उसमे पैठा रहा। हमने विकास का मंत्र लिया, हर काम हवाले यंत्र किया। अब मौत भी मुझसे हारी है, मेरी बुद्धि ही सबपे भारी है। मैं ब्रह्मा विष्णु महेश हुआ, जग बाकी सब दरवेश हुआ। जो आज मैं अंदर झांक रहा, कितना सच है जो हांक रहा। मैंने जो तप था बड़ा किया, वर ले सृष्टि को खड़ा किया। अमरत्व का वर था मांगा मैने, था सृष्टि नियम भी लांघा मैंने। जो मांगा मुझको मिलता रहा, मेरे बल से जग ये हिलता रहा। सृष्टि से वर ले दम्भ हुआ, एक खोट प्रकट अविलम्ब हुआ। जो हुआ मैं निर्माता सृष्टि का, बदला था सार मेरी दृष्टि का। ले वर करने मैँ अंत चला, हत्या उसकी जो अनन्त चला। प्रकृति भी जब मुझसे हारी, बोली कि अब मेरी बारी। बन मोहिनी भौतिकता छाई थी, अभिशाप छुपा संग लायी थी। मैं कामातुर मोहित उस पर, एक नृत्य हुआ उस उत्सव पर। निज हाथों में भष्म का वर मेरा, नृत्य ऐसा था कर-नीचे सर मेरा। फिर वही कहानी गढ़ी गयी, एक छद्म लड़ाई लड़ी गयी। था भष्मासुर अवतरित हुआ, बलशाली पर भंगुर त्वरित हुआ। मैं मनुज नहीं मैं भष्मासुर, अपनी हत्या को ही आतुर। वृत्ताकार समय जो चलता है, हर युग भष्मासुर मरता है। ©रजनीश "स्वछंद" मैं भष्मासुर।। मैं मानव हूँ मैं श्रेष्ठ रहा, मैं बुद्धि-बल से ज्येष्ठ रहा। मेरी विजय का बजता डंका, हस्तिनापुर हो या हो लंका। मुझमे विवेक वि
Vikas Sharma Shivaaya'
Atama namaste divine souls. Its a beautiful new sunrise of the 1 St day of New year. Set ur resolution for this year. May all be blessed with divine 🙏🏵️😇❤️💫🔥 सुन्दरकाण्ड दोहा – 4 थोड़े समय का सत्संग – स्वर्ग के सुख से बढ़कर है तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग। तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ॥4॥ हे तात!, स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाए तो भी वे सब मिलकर(दूसरे पलड़े पर रखे हुए)उस सुख के बराबर नहीं हो सकते,जो क्षण मात्र के सत्संग से होता है ॥4॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम प्रभु श्रीराम को निरंतर स्मरण करने के फायदे प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥ गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥1॥ अयोध्यापुरी के राजा रघुनाथ को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए॥उसके लिए, अर्थात, जिसके मन में श्री राम का स्मरण रहता है,विष अमृत हो जाता है,शत्रु मित्रता करने लगते हैं,समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है,अग्नि में शीतलता आ जाती है॥ हनुमानजी का लंका में प्रवेश हनुमानजी, छोटा सा रूप धरकर, लंका में प्रवेश करते है गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही॥ अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥2॥ और हे गरूड़जी! जिसे राम ने एक बार कृपा करके देख लिया,उसके लिए सुमेरु पर्वत रज के समान हो जाता है॥ तब हनुमानजी ने बहुत ही छोटा रूप धारण किया,और भगवान का स्मरण करके नगर में प्रवेश किया॥ हनुमानजी, रावण के महल तक पहुंचे मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥ गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥3॥ उन्होंने एक-एक (प्रत्येक) महल की खोज की।जहाँ-तहाँ असंख्य योद्धा देखे॥फिर वे रावण के महल में गए। वह अत्यंत विचित्र था, जिसका वर्णन नहीं हो सकता॥ हनुमानजी, सीताजी की खोज करते करते, विभीषण के महल तक पहुंचे सयन किएँ देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही॥ भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा॥4॥ हनुमानजी ने, महल में रावण को सोया हुआ देखा।वहां भी हनुमानजी ने सीताजी की खोज की,परन्तु सीताजी उस महल में कही भी दिखाई नहीं दीं॥ फिर उन्हें एक सुंदर महल दिखाई दिया।उस महल में भगवान का एक मंदिर बना हुआ था॥ शाबर शनि मंत्र:- llओम गुरूजी थावर वार.थावर आसन थरहरो. पॉंच तत्व की विद्या करो पॉंच तत्व का साधो करो विचार.तो गुरू पावूं थावर वार शनिवार कश्यप गोत्र कृष्ण वर्ण तेईस हजार जाप सोरठ देश पश्चिम स्थान धनुषाकार मंडल,तीन अंगुल़,मकर कुम्भ राशि के गुरू को नमस्कार.सत फिरे तो वाचा फिरे,पान फूल वासना सिंहासन धरे.तो इतरो काम थावर जी महाराज करे. ओम फट् स्वाहा ll विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज से नाम 177 अनिर्देश्यवपुः जिसे बताया न जा सके 178 श्रीमान् जिनमे श्री है 179 अमेयात्मा जिनकी आत्मा समस्त प्राणियों से अमेय(अनुमान न की जा सकने योग्य) है 180 महाद्रिधृक् मंदराचल और गोवर्धन पर्वतों को धारण करने वाले 181 महेष्वासः जिनका धनुष महान है 182 महीभर्ता प्रलयकालीन जल में डूबी हुई पृथ्वी को धारण करने वाले 183 श्रीनिवासः श्री के निवास स्थान 184 सतां गतिः संतजनों के पुरुषार्थसाधन हेतु 185 अनिरुद्धः प्रादुर्भाव के समय किसी से निरुद्ध न होने वाले 186 सुरानन्दः सुरों (देवताओं) को आनंदित करने वाले 187 गोविन्दः वाणी (गौ) को प्राप्त कराने वाले 👆बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' Atama namaste divine souls. Its a beautiful new sunrise of the 1 St day of New year. Set ur resolution for this year. May all be blessed wit