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यत्येन्द्र दुबे
इन चराग़ों की ख़बर ले लो ज़रा तुम, रोशनी अब आंख मलना चाहती है ©यत्येन्द्र दुबे
Raj choudhary "कुलरिया"
तुम्हारे...बारे में लिखना हाँ... सिर्फ...तुझे ही लिखना लगता है... अच्छा...मुझे ना हो यक़ीन...तो तुम उठाना...थोड़े झुककर बिखरे पड़े... मेरे...लफ़्ज़ों के कतरे मलना... अपने ही...हाथों पर आहिस्ता-आहिस्ता डगर पर...यूँ ही थोड़ी देर... प्रीत की...चलना खुशबू...तेरे नाम की...आएगी खुशी हो चाहे...दर्द होठो में अपने... तेरे संग ...दबाएगी ना हो गर.. ऐसा तो...कहना...मुझसे छोड़ दूंगा... लिखना...मोहब्ब्त कलम फिर... आँखो से...शोर चाहे जितना...मचाएगी !! ©Raj choudhary "कुलरिया" #WithU तुम्हारे...बारे में लिखना हाँ... सिर्फ...तुझे ही लिखना लगता है... अच्छा...मुझे ना हो यक़ीन...तो तुम उठाना...थोड़े झुककर
Soulmate (Yuhee)
बहुत प्रकार के आज़माया करोना काल में जितनी जुबां उतने हीं कभी दोस्त तो कभी पड़ोसी हल्दी, अदरक और लोबान दिमाग़ का दही करा बिंदास अब तो टीकें लगा दोनों थोड़ा सुकून है आज नमस्कार लेखकों🌸 आज के #rzdearcharacters में हम लेकर आये हैं #rzप्रियनुस्खे । बचपन से ले कर आज तक, नुस्खों की बड़ी एहमियत रही है हमारे जीव
Dr Upama Singh
तुम याद दिलाते दादी नानी का कभी बेवजह करते परेशान कभी देते हो आराम तुम धीरे धीरे विलुप्त हो रही थी जाने कहां गुम हो गई थी जब से आया कोरोना जिंदगी में तेरा एक ख़ास है स्थान फिर हो गई तेरी हम सबसे नई पहचान जब बना कर सबने पिया काढ़ा दूध में डाल सबने हल्दी पिया जिंदगी करती है तुझे शुक्रिया तूने सही वक्त पर अपना सही काम किया। नमस्कार लेखकों🌸 आज के #rzdearcharacters में हम लेकर आये हैं #rzप्रियनुस्खे । बचपन से ले कर आज तक, नुस्खों की बड़ी एहमियत रही है हमारे जीव
Nitin Kr Harit
सुनो, बीत जाएं ये पल ना, रंग रंग, सब ढंग, अंग अंग मलना, मर्यादा पर छोड़ ना देना, उस छलिये के जैसे छलना। पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें इस फागुन में, इस होली में, शामिल हो जाना टोली में, लाल हरे नीले पीले सब, रंग छिपा लाना झोली में। इत उत झूम झूम के आना, मना करूं तो मान ना ज
रजनीश "स्वच्छंद"
मेरी ज़द।। किसी का कहना था, ज़द में रहना था, रह मौन हमे, बस सब कुछ सहना था। कौन कब अपना था, वो बस सपना था, बैठ अकेले, कोने में माला जपना था। समर कब थमना था, लहु तो बहना था, पांव तले कुचल अपनो को, बढ़ना था। सूरज का चलना था, उगना ढलना था, हो तन्हा जग में, खुद ही बहलना था। औरों से जलना था, हथेली मलना था, तुम बोलो, किस्मत का कब टलना था। अश्कों का बहना था, मन का कहना था, बिन अपनो के, हकीकत भी सपना था। कलम का चलना था, स्याह सब करना था। भावों को, हो कविता छंद, बस मरना था। ©रजनीश "स्वछंद" मेरी ज़द।। किसी का कहना था, ज़द में रहना था, रह मौन हमे, बस सब कुछ सहना था। कौन कब अपना था, वो बस सपना था, बैठ अकेले, कोने में माला जपना था।
saurabh
क्यों चंदन सा लेप लगाते हो जख्मों पर जब हमको इस तप्त अग्नि में ही जलना है क्यों बांध रहे हो हमको झूठे भरम जाल में जब तुमको सुलझी राहों पर ही चलना है... !! घाव उफनते या बिखरते है , नजर आते हैं खुश्क आंखों में भी अब अश्क उतर आते हैं ************ जिद्द भी बस जिद्द पे ही अड़ी होगी राह भी राह पर ख