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N S Yadav GoldMine
जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 32-50 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं; यह काल का उलट-फेर तो देखो। माधव। निश्चय ही दैव के लिये कोई भी कार्य अधिक कठिन नहीं है; क्योंकि उसने क्षत्रियों द्वारा ही इन शूरवीर क्षत्रिय षिरोमणियों का संहार कर डाला है। 📜 श्रीकृष्ण मेरे वेगशाली पुत्र तो उसी दिन मारे डाले गये, जबकि तुम अपूर्ण मनोरथ होकर पुनः उपप्लव्य को लौट गये थे। मुझे तो शान्तनुनन्दन भीष्म तथा ज्ञानी विदुर ने उसी दिन कह दिया था, कि अब तुम अपने पुत्रों पर स्नेह न करो। है जनार्दन। उन दोनों की यह दृष्टि मिथ्या नहीं हो सकती थी, अतः थोड़े ही समय में मेरे सारे पुत्र युद्ध की आग में जल कर भस्म हो गये। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- भारत। ऐसा कहकर शोक से मूर्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दु:ख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। 📜 उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ दिया। गान्धारी ने कहा- श्रीकृष्ण। है जनार्दन। पाण्डव और धृतराष्ट्र के पुत्र आपस में लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? महाबाहु मधुसूदन। तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत से सेवक और सैनिक थे। 📜 तुम महान् बल में प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षों से अपनी बात मनवा लेने की सामथ्र्य तुम में मौजूद थी। तुमने वेद-षास्त्रों और महात्माओं की बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छा से कुरू कुल के नाश की उपेक्षा की- जान-बूझकर इस वंष का विनाश होने दिया। 📜 यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो। चक्र और गदा धारण करने वाले है केशव। मैंने पति की सेवा से कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से तुम्हें शाप दे रही हूं। गोविन्द। 📜 तुमने आपस में मार-काट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों ओर पाण्डवों की उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओं का भी विनाश कर डालोगे। हैं मधुसूदन। आज से छत्तीसवां वर्ष उपस्थित होने पर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेंगे। 📜 तुम सबसे अपरिचित और लोगों की आंखों से ओझल होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे, और किसी निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे। इन भरतवंषी स्त्रियों के समान तुम्हारे कुल की स्त्रियां भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओं के मारे जाने पर इसी प्रकार सगे-सम्बन्धियों की लाशों पर गिरेगी। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- राजन। वह घोर वचन सुनकर माहमनस्वी वसुदेव नन्दन श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए से गान्धारी से कहा- क्षत्राणी। मैं जानता हूं, यह ऐसा ही होने वाला है। तुम तो किये हुए को ही कह रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णिवंष के यादव देव से ही नष्ट होंगे। 📜 शुभे। वृष्णिकुल का संहार करने वाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवों के लिये भी अवध्य हैं; अतः अपस में ही लड़कर नष्ट होंगे। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। ये सब-के-सब अपने जीवन से निराष हो गये। एन एस यादव।। ©N S Yadav GoldMine #traintrack जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभार
Bhupendra Rawat
पहला श्लोक ( भगवत गीता ) कुरुछेत्र में कौरवों और पांडवो की सेना पहुंच जब महाराज धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा तब संजय ने श्री कृष्ण द्वारा दी गयी अपनी दिव्या दृष्टि का प्रयोग किया कुछ इस तरह संजय ने कुरुछेत्र में हुई संपूर्ण घटनाओ का वर्णन किया ©Bhupendra Rawat #Sukha पहला श्लोक ( भगवत गीता ) कुरुछेत्र में कौरवों और पांडवो की सेना पहुंच जब महाराज धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा तब संजय ने श्री कृष्ण द्व
gaTTubaba
दुश्मन को तेरी दुश्मनी याद आनी चाहिए उसकी बेवकूफी उसको याद आनी चाहिए उसे लगता हैं तू कुछ न कर पाएगा उसके सात पुश्तों को उसकी गलती याद आनी चाहिए दो कौड़ी के बदमाशों की गोलीयों पर उसे बड़ा घमंड हैं शराफत की बंदूक उसे याद आनी चाहिए समझा तो वासुदेव भी नहीं पाए कौरवों को सच के लिए महाभारत तो होनी ही चाहिए बड़ा शौक हैं उसे दूसरों की कांटने का उसके अपनों में ही उसकी नांक कंट जानी चाहिए वक्त हैं तेरे पास तैय्यारी कर जब वापिस लौटेगा, तो सल्तनत सारी उसकी बह जानी चाहिए बड़ा फक्र हैं उसे अपनी होशियारी पर राजनीती तो उसके साथ होनी ही चाहिए लगने दे उसे की तू हार गया ये हार भी उसके लिए डरावनी होनी चाहिए झूठ बोलकर उसने जो भीड़ इकट्ठा की हैं तू सच हैं वो भीड़ तेरे पीछे होनी चाहिए सुना हैं वो किसी मासूम को डराता हैं अब से डर उसकी आंखों में भी होना चाहिए!! ©gaTTubaba #adventure दुश्मन को तेरी दुश्मनी याद आनी चाहिए उसकी बेवकूफी उसको याद आनी चाहिए उसे लगता हैं तू कुछ न कर पाएगा उसके सात पुश्तों को उसकी गलत
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जो नरश्रेष्ठ भगवान श्री कृष्ण अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 32-50 जय श्री राधे कृष्ण जी {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं; यह काल का उलट-फेर तो देखो। माधव। निश्चय ही दैव के लिये कोई भी कार्य अधिक कठिन नहीं है; क्योंकि उसने क्षत्रियों द्वारा ही इन शूरवीर क्षत्रिय षिरोमणियों का संहार कर डाला है। 📜 श्रीकृष्ण मेरे वेगशाली पुत्र तो उसी दिन मारे डाले गये, जबकि तुम अपूर्ण मनोरथ होकर पुनः उपप्लव्य को लौट गये थे। मुझे तो शान्तनुनन्दन भीष्म तथा ज्ञानी विदुर ने उसी दिन कह दिया था कि अब तुम अपने पुत्रों पर स्नेह न करो। जनार्दन। उन दोनों की यह दृष्टि मिथ्या नहीं हो सकती थी; अतः थोड़े ही समय में मेरे सारे पुत्र युद्ध की आग में जल कर भस्म हो गये। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- भारत। ऐसा कहकर शोक से मूर्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दु:ख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ दिया। गान्धारी ने कहा- श्रीकृष्ण। जनार्दन। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- भारत। ऐसा कहकर शोक से मूर्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दु:ख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ दिया। गान्धारी ने कहा- श्रीकृष्ण। जनार्दन। 📜 यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छा से कुरू कुल के नाश की उपेक्षा की- जान-बूझकर इस वंष का विनाश होने दिया। यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका कल प्राप्त करो। चक्र और गदा धारण करने वाले केशव। मैंने पति की सेवा से कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से तुम्हें शाप दे रही हूं। 📜 गोविन्द। तुमने अपस में मार-काट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों ओर पाण्डवों की उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओं का भी विनाश कर डालोगे। मधुसूदन। आज से छत्तीसवां वर्ष उपस्थित होने पर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेंगे। 📜 तुम सबसे अपरिचित और लोगों की आंखों से ओझल होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे और किसी निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे। इन भरतवंषी स्त्रियों के समान तुम्हारे कुल की स्त्रियां भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओं के मारे जाने पर इसी प्रकार सगे-सम्बन्धियों की लाशों पर गिरेगी। वैशम्पयानजी कहते हैं- राजन। 📜 वह घोर वचन सुनकर माहमनस्वी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए से गान्धारी से कहा- क्षत्राणी। मैं जानता हूं, यह ऐसा ही होने वाला है। तुम तो किये हुए को ही कह रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णिवंष के यादव देव से ही नष्ट होंगे। शुभे। वृष्णिकुल का संहार करने वाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। 📜 यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवों के लिये भी अवध्य हैं; अतः अपस में ही लड़कर नष्ट होंगे। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। ये सब-के-सब अपने जीवन से निराष हो गये। ©N S Yadav GoldMine #yogaday जो नरश्रेष्ठ भगवान श्री कृष्ण अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर
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परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। पढ़िए महाभारत !! 📒📒महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 इन गंगानन्दन भीष्म ने रूई भरा हुआ तकिया नहीं लिया है। इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है। माधव। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए महा यश स्वी नेष्ठिक ब्रम्हचारी ये शांतनुनन्दन भीष्म जिनकी युद्ध में कहीं तुलना नहीं है, यहां सो रहे हैं। 📜 तात। ये धर्मात्मा और सर्वज्ञ हैं परलोक और यह लोक सम्बन्धी ज्ञान द्वारा सभी आध्यामिक प्रष्नों का निर्णय करने में समर्थ हैं तथा मनुष्य होने पर भी देवता के तुल्य हैं; इन्होंने अभी तक अपने प्राण धारण कर रखे हैं। 📜 जब ये शान्तनुनन्दन भीष्म भी आज शत्रुओं के बाणों से मारे जाकर सो रहे हैं तो यही कहना पड़ता है कि युद्ध में न कोई कुषल है, न कोई विद्वान् है और न पराक्रमी ही है। पाण्डवों के पूछने पर इन धर्मज्ञ एवं सत्यवादी शूरवीर ने स्वयं ही अपनी मृत्यु का उपाय बता दिया था। 📜 जिन्होंने नष्ट हुए कुरूवंष का पुनः उद्धार किया था, वे ही परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। इन देवतुल्य नरश्रेष्ठ देवव्रत के स्वर्गलोक में चले जाने पर अब कौरव किसके पास जाकर धर्मविषयक प्रष्न करेंगे। जो अर्जुन के षिक्षक, सात्यकि के आचार्य तथा कौरवों के श्रेष्ठ गुरू थे, वे द्रोणाचार्य रणभूमि में गिरे हुए हैं, उन्हें भी देख लो। 📜 माधव। जैसे देवराज इन्द्र अथवा महापराक्रमी परषुराम जी चार प्रकार की अस्त्रविद्या को जानते हैं उसी प्रकार द्रोणाचार्य भी जानते थे। जिनके के प्रसाद से पाण्डुनन्दन अर्जुन ने दुष्कर कर्म किया है, वे ही आचार्य यहां मरे पड़े हैं। उन अस्त्रों ने इनकी रक्षा नहीं की। 📜 जिनको आगे रखकर कौरव पाण्डवों को ललकारा करते थे, वे ही शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य शस्त्रों क्षत-विक्षत हो गये हैं। शत्रुओं की सेना को दग्ध करते समय जिनकी गति अग्नि के समान होती थी, वे ही वुझी हुई लपटों वाली आग के समान मरकर पृथ्वी पर पड़े हैं। 📜 माधव। युद्ध में मारे जाने पर भी द्राणाचार्य के धनुष के साथ जुड़ी हुई मुट्ठी ढीली नहीं हुई है। दस्ताना भी ज्यों का त्यों दिखाई देता है, मानो वह जीवित पुरुष के हाथों हो। केशव। जैसे पूर्व काल से ही प्रजापति ब्रम्ह से वेद कभी अलग नहीं हुए, उसी प्रकार जिन शूरवीर द्रोर्ण से चारों वेद और सम्पूर्ण अस्त्र-षस्त्र कभी दूर नहीं हुए, 📜 उन्हीं के बन्दीजनों के द्वारा वन्दित इन दोनों सुन्दर एवं वन्दनीय चरणारविन्दों को जिनकी सैकड़ों षिष्य पूजा कर चुके हैं, गीदड़ घसीट रहे हैं। मधुसूदन। द्रुपदपुत्र के द्वारा मारे गये द्रोणाचार्य के पास उनकी पत्नी कृपी बड़े दीनभाव से बैठी है। 📜 दु:ख से उसकी चेतना लुप्त सी हो गयी है। देखो, कृपी केष खोले नीचे मूंह किये राती हुई अपने मारे गये पति शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य की उपासना पर रही है। केशव। ध्रष्टद्युम्न ने अपने बाणों से जिन आचार्य द्रोर्ण का कवच छिन्न-भिन्न कर दिया है, उन्हीं के पास युद्धस्थल में वह जटाधारिणी ब्रम्हचारिणी कृपी वैठी हुई है। 📜 शोक से दीन और आतुर हुई यश स्वनी सुकुमारी कृपी समर में मारे गये पति देव का प्रेत कर्म करने की चेष्टा कर रही है। ©N S Yadav GoldMine #SunSet परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। पढ़िए महाभारत !! 📒📒महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {
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हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 1-21 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय। ऐसा कहकर गान्धारी देवी ने वहीं खड़ी रहकर अपनी दिव्य दृष्टि से कौरवों का वह सारा विनाश स्थल देखा। गान्धारी बड़ी ही पतिव्रता, परम सौभाग्यवती, पति के समान वृत का पालन करने वाली, उग्र तपस्या से युक्त तथा सदा सत्य बोलने वाली थीं। पुण्यात्मा महर्षि व्यास के वरदान से वे दिव्य ज्ञान बल से सम्पन्न हो गयी थीं अतः रणभूमि का दृश्य देखकर अनेक प्रकार विलाप करने लगीं। 📜 बुद्धिमी गान्धारी ने नरवीरों के उस अदभूत एवं रोमान्चकारी समरांगण को दूर से ही उसी तरह देखा, जैसे निकट से देखा जाता है। वह रणक्षेत्र हडिडयों, केशों और चर्बियों से भरा था, रक्त प्रवाह से आप्लावित हो रहा था, कई हजार लाशें वहां चारों ओर बिखरी हुई थी। हाथी सवार, घुड़ सवार तथा रथी योद्धाओं के रक्त से मलिन हुए बिना सिर के अगणित धड़ और बिना धड़ के असंख्य मस्तक रणभूमि को ढंके हुए थे। 📜 हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा थ। सियार, बुगले, काले कौए, कक्क और काक उस भूमि का सेवन करते थे। वह स्थान नरभक्षी राक्षसों को आनन्द दे रहा थ। वहां सब ओर कुरर पक्षी छा रहे थे। अमगलमयी गीदडि़यां अपनी बोली बोल रही थीं, गीध सब ओर बैठे हुए थे। उस समय भगवान व्यास की आज्ञा पाकर राजा धृतराष्ट्र तथा युधिष्ठिर आदि समस्त पाण्डव रणभूमि की ओर चले। 📜 जिनके बन्धु-बान्धव मारे गये थे, उन राजा धृतराष्ट्र तथा भगवान श्रीकृष्ण को आगे करके कुरूकुल की स्त्रियों को साथ ले वे सब लोग युद्वस्थल में गये। कुरूक्षेत्र में पहुंचकर उन अनाथ स्त्रियों ने वहां मारे गये अपने पुत्रों, भाइयों, पिताओं तथा पतियों के शरीरों को देखा, जिन्हें मांस-भक्षी जीव-जन्तु, गीदड़ समूह, कौए, भूत, पिशाच, राक्षस और नाना प्रकार के निशाचर नोच-नोच कर खा रहे थे। 📜 रूद्र की क्रीडास्थली के समान उस रणभूमि को देखकर वे स्त्रियां अपने बहूमूल्य रथों से क्रन्दन करती हुई नीचे गिर पड़ीं । जिसे कभी देखा नहीं था, उस अदभूत रणक्षेत्र को देख कर भरतकुल की कुछ स्त्रियां दु:ख से आतुर हो लाशों पर गिर पड़ीं और दूसरी बहुत सी स्त्रियां धरती पर गिर गयीं। उन थकी-मांदी और अनाथ हुई पान्चालों तथा कौरवों की स्त्रियों को वहां चेत नहीं रह गया था। 📜 उन सबकी बड़ी दयनीय दशा हो गयी थी। दु:ख से व्याकुलचित हुई युवतियों के करूण-क्रन्दन से वह अत्यन्त भयंकर युद्वस्थल सब ओर से गूंज उठा। यह देखकर धर्म को जानने वाली सुबलपुत्री गान्धारी ने कमलनयन श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके कौरवों के उस विनाश पर दृष्टिपात करते हुए कहा- कमलनयन माधव। मेरी इन विधवा पुत्र वधुओं की ओर देखो, जो केश बिखराये कुररी की भांति विलाप कर रही हैं। 📜 वे अपने पतियों के गुणों का स्मरण करती हुई उनकी लाशों के पास जा रही हैं और पतियों, भाईयों, पिताओं तथा पुत्रों के शरीरों की ओर पृथक- पृथक् दौड़ रही हैं । महाराज कहीं तो जिनके पुत्र मारे गये हैं उन वीर प्रसविनी माताओं से और कहीं जिनके पति वीरगति को प्राप्त हो गये हैं, उन वीरपत्नियों से यह युद्धस्थल घिर गया है। पुरुषसिंह कर्ण, भीष्म, अभिमन्यु, द्रोण, द्रुपद और शल्य जैसे वीरों से जो प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी थे, यह रणभूमि सुशोभित है। ©N S Yadav GoldMine #boat हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत
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श्री भगवान बोले- गान्धारी। उठो, शोक में मन को न डुबाओ पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 श्री भगवान बोले- गान्धारी। उठो, उठो। शोक में मन को न डुबाओ। तुम्हारे ही अपराध से कौरवों का विनाश हुआ है। तुम्हारा पुत्र दुर्योधन दुरात्मा, दूसरों से ईष्र्या एवं जलन रखने वाला और अत्यन्त अभिमानी था। दुष्कर्म परायण, निष्ठुर, वैर का मूर्तिमान स्वरूप और बड़े-बूढों की आज्ञा का उल्लंघन करने बाला था। 📜 तुमने उसको अगुआ बनाकर जो अपराध किया है, उसे क्या तुम अच्छा समझती हो? अपने ही किये हुए दोषों को यहां मुझ पर कैसे लादना चाहती हो? यदि कोई मनुष्य किसी मरे हुए सम्बन्धी, नष्ठ हुई वस्तु अथवा बीती हुई बात के लिये शोक करता है तो वह एक दु:ख से दूसरे दु:ख का भागी होता है, इसी प्रकार वह दो अनर्थों को प्राप्त होता है। 📜 ब्राहम्मणी तप के लिये, गाय बोझ ढाने के लिये, घोड़ी वेग से दौड़ने के लिये, शूद्र सेवा के लिये, वैष्य कन्या पषुपालन के लिये और तुम जैसी राज पुत्री युद्ध में लड़कर मरने के लिये पुत्र पैदा करती हैं। वैशम्पयानजी कहते हैं- जनमेजय। श्रीकृष्ण का दोबारा कहा हुआ वह अप्रिय बचन सुनकर गान्धारी चुप हो गयी उसके नेत्र शोक से व्याकुल हो उठे थे। 📜 उस समय धर्मज्ञ राजर्षि धृतराष्ट्र ने अज्ञान से उत्पन्न होने वाले शोक और मोह को रोककर धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा- पाण्डुनन्दन। तुम जीवित सैनिकों की संख्या के जानकार तो हो ही। यदि मरे हुओं की संख्या जानते हो तो मुझे बताओ। युधिष्ठिर बोले- राजन। इस युद्ध में एक अरब छाछठ करोड़, बीस हजार योद्धा मारे गये हैं। 📜 राजेन्द्र। इनके अतिरिक्त चैबीस हजार एक सौ पैंसठ सैनिक लापता हैं। धृतराष्ट्र ने पूछा- पुरुषप्रवर। महाबाहू युधिष्ठिर। तुम तो मुझे सर्वज्ञ जान पड़ते हो; अतः यह तो बताओ कि वे मरे हुए सैनिक किस गति को प्राप्त हुए हैं। युधिष्ठिर ने कहा- जिन लोगों ने इस महा समर में वड़े हर्ष और उत्साह के साथ अपने शरीर की आहुति दी है, वे सत्य पराक्रमी वीर देवराज इन्द्र के समान लोकों में गये हैं। 📜 भारत। जो अप्रसन्न मन से मरने का निश्चय करके रणक्षेत्र में जूझते हुए मारे गये हैं, वे गन्धर्वों के साथ जा मिले हैं। जो संग्राम भूमि में खड़े हो प्राणों की भीख मांगते हुए युद्ध से विमुख हो गये थे; उनमें से जो लोग शस्त्र द्वारा मारे गये हैं, वे गुहकलोकों में गये हैं। 📜 जिन महामनस्वी पुरुषों को शत्रुओं ने गिरा दिया था, जिनके पास युद्ध करने को कोई साधन नहीं रह गया था, जो शस्त्रहीन हो गये थे और उस अवस्था में भी लज्जाशील होने के कारण जो रणभूमि निरन्तर शत्रुओं का सामना करते हुए ही तीखे अस्त्र-षस्त्रों से कट गये, वे क्षत्रीय धर्मपरायण पुरुष ब्रम्हलोक में गये हैं, इस विषय में मेरा कोई दूसरा बिचार नहीं है। 📜 राजन। इनके सिबा, जो लोग इस युद्ध की सीमा के भीतर रहकर जिस किसी भी प्रकार से मारे डाले गये हैं, वे उत्तर कुरूदेष में जन्म धारण करेंगे। धृतराष्ट्र ने पूछा- बेटा। किस ज्ञान वल से तुम इस तरह सिद्व पुरुषों के समान सब कुछ प्रत्यक्ष देख रहे हो। महाबाहो। यदि मेरे सुनने योग्य हो तो बताओ। ©N S Yadav GoldMine #Love श्री भगवान बोले- गान्धारी। उठो, शोक में मन को न डुबाओ पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅 महाभारत: स्त्री पर्व षड़र्विंष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo
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इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है पढ़िए महाभारत !! 📔📔 महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 19-37 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📒 इन गंगानन्दन भीष्म ने रूई भरा हुआ तकिया नहीं लिया है। इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है। माधव। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए महा यश स्वी नेष्ठिक ब्रम्हचारी ये शांतनुनन्दन भीष्म जिनकी युद्ध में कहीं तुलना नहीं है, यहां सो रहे हैं। 📒 तात। ये धर्मात्मा और सर्वज्ञ हैं परलोक और यह लोक सम्बन्धी ज्ञान द्वारा सभी आध्यामिक प्रष्नों का निर्णय करने में समर्थ हैं तथा मनुष्य होने पर भी देवता के तुल्य हैं; इन्होंने अभी तक अपने प्राण धारण कर रखे हैं। जब ये शान्तनुनन्दन भीष्म भी आज शत्रुओं के बाणों से मारे जाकर सो रहे हैं तो यही कहना पड़ता है कि युद्ध में न कोई कुषल है, न कोई विद्वान् है और न पराक्रमी ही है। 📒 पाण्डवों के पूछने पर इन धर्मज्ञ एवं सत्यवादी शूरवीर ने स्वयं ही अपनी मृत्यु का उपाय बता दिया था। जिन्होंने नष्ट हुए कुरूवंष का पुनः उद्धार किया था, वे ही परम बुद्धिमान् भीष्म इन कौरवों के साथ परास्त हो गये। माधव। इन देवतुल्य नरश्रेष्ठ देवव्रत के स्वर्गलोक में चले जाने पर अब कौरव किसके पास जाकर धर्मविषयक प्रष्न करेंगे। 📒 जो अर्जुन के षिक्षक, सात्यकि के आचार्य तथा कौरवों के श्रेष्ठ गुरू थे, वे द्रोणाचार्य रणभूमि में गिरे हुए हैं, उन्हें भी देख लो। माधव। जैसे देवराज इन्द्र अथवा महापराक्रमी परषुराम जी चार प्रकार की अस्त्रविद्या को जानते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य भी जानते थे। जिनके के प्रसाद से पाण्डुनन्दन अर्जुन ने दुष्कर कर्म किया है, वे ही आचार्य यहां मरे पड़े हैं। उन अस्त्रों ने इनकी रक्षा नहीं की। 📒 जिनको आगे रखकर कौरव पाण्डवों को ललकारा करते थे, वे ही शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य शस्त्रों क्षत-विक्षत हो गये हैं। शत्रुओं की सेना को दग्ध करते समय जिनकी गति अग्नि के समान होती थी, वे ही वुझी हुई लपटों वाली आग के समान मरकर पृथ्वी पर पड़े हैं। 📒 माधव। युद्ध में मारे जाने पर भी द्राणाचार्य के धनुष के साथ जुड़ी हुई मुट्ठी ढीली नहीं हुई है। दस्ताना भी ज्यों का त्यों दिखाई देता है, मानो वह जीवित पुरुष के हाथों हो। केशव। जैसे पूर्व काल से ही प्रजापति ब्रम्ह से वेद कभी अलग नहीं हुए, उसी प्रकार जिन शूरवीर द्रोर्ण से चारों वेद और सम्पूर्ण अस्त्र-षस्त्र कभी दूर नहीं हुए। 📒 उन्हीं के बन्दीजनों के द्वारा वन्दित इन दोनों सुन्दर एवं वन्दनीय चरणारविन्दों को जिनकी सैकड़ों षिष्य पूजा कर चुके हैं, गीदड़ घसीट रहे हैं। मधुसूदन। द्रुपदपुत्र के द्वारा मारे गये द्रोणाचार्य के पास उनकी पत्नी कृपी बड़े दीनभाव से बैठी है। दु:ख से उसकी चेतना लुप्त सी हो गयी है। 📒 देखो, कृपी केष खोले नीचे मूंह किये राती हुई अपने मारे गये पति शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य की उपासना पर रही है। केशव। ध्रष्टद्युम्न ने अपने बाणों से जिन आचार्य द्रोर्ण का कवच छिन्न-भिन्न कर दिया है, उन्हीं के पास युद्धस्थल में वह जटाधारिणी ब्रम्हचारिणी कृपी वैठी हुई है। 📒 शोक से दीन और आतुर हुई यश स्वनी सुकुमारी कृपी समर में मारे गये पति देव का प्रेत कर्म करने की चेष्टा कर रही है। ©N S Yadav GoldMine #runaway इन्होंने तो गाण्डीवधरी अर्जुन के दिये हुए तीन बाणों द्वारा निर्मित श्रेष्ठ तकिये को ही स्वीकार किया है पढ़िए महाभारत !! 📔📔 महाभारत:
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पुण्यात्मा महर्षि व्यास के वरदान से वे दिव्य ज्ञान बल से सम्पन्न हो गयी थीं पढ़िए महाभारत !! 📔📔 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 1-21 📜 वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय। ऐसा कहकर गान्धारी देवी ने वहीं खड़ी रहकर अपनी दिव्य दृष्टि से कौरवों का वह सारा विनाश स्थल देखा। गान्धारी बड़ी ही पतिव्रता, परम सौभाग्यवती, पति के समान वृत का पालन करने वाली, उग्र तपस्या से युक्त तथा सदा सत्य बोलने वाली थीं। 📜 पुण्यात्मा महर्षि व्यास के वरदान से वे दिव्य ज्ञान बल से सम्पन्न हो गयी थीं अतः रणभूमि का दृश्य देखकर अनेक प्रकार विलाप करने लगीं। बुद्धिमी गान्धारी ने नरवीरों के उस अदभूत एवं रोमान्चकारी समरांगण को दूर से ही उसी तरह देखा, जैसे निकट से देखा जाता है। 📜 वह रणक्षेत्र हडिडयों, केशों और चर्बियों से भरा था, रक्त प्रवाह से आप्लावित हो रहा था, कई हजार लाशें वहां चारों ओर बिखरी हुई थी। हाथीसवार, घुड़सवार तथा रथी योद्धाओं के रक्त से मलिन हुए बिना सिर के अगणित धड़ और बिना धड़ के असंख्य मस्तक रणभूमि को ढंके हुए थे। हाथियों, घोड़ों, मनुष्यों और स्त्रियों के आर्तनाद से वह सारा युद्वस्थल गूंज रहा था। 📜 सियार, बुगले, काले कौए, कक्क और काक उस भूमि का सेवन करते थे । वह स्थान नरभक्षी राक्षसों को आनन्द दे रहा था। वहां सब ओर कुरर पक्षी छा रहे थे। अमगलमयी गीदडि़यां अपनी बोली बोल रही थीं, गीध सब ओर बैठे हुए थे। उस समय भगवान व्यास की आज्ञा पाकर राजा धृतराष्ट्र तथा युधिष्ठिर आदि समस्त पाण्डव रणभूमि की ओर चले। 📜 जिनके बन्धु-बान्धव मारे गये थे, उन राजा धृतराष्ट्र तथा भगवान श्रीकृष्ण को आगे करके कुरूकुल की स्त्रियों को साथ ले वे सब लोग युद्वस्थल में गये। कुरूक्षेत्र में पहुंचकर उन अनाथ स्त्रियों ने वहां मारे गये अपने पुत्रों, भाइयों, पिताओं तथा पतियों के शरीरों को देखा, जिन्हें मांस-भक्षी जीव-जन्तु, गीदड़ समूह, कौए, भूत, पिशाच, राक्षस और नाना प्रकार के निशाचर नोच-नोच कर खा रहे थे। 📜 रूद्र की क्रीडास्थली के समान उस रणभूमि को देखकर वे स्त्रियां अपने बहूमूल्य रथों से क्रन्दन करती हुई नीचे गिर पड़ीं। जिसे कभी देखा नहीं था, उस अदभूत रणक्षेत्र को देख कर भरतकुल की कुछ स्त्रियां दु:ख से आतुर हो लाशों पर गिर पड़ीं और दूसरी बहुत सी स्त्रियां धरती पर गिर गयीं। 📜 उन थकी-मांदी और अनाथ हुई पान्चालों तथा कौरवों की स्त्रियों को वहां चेत नहीं रह गया था। उन सबकी बड़ी दयनीय दशा हो गयी थी। दु:ख से व्याकुलचित हुई युवतियों के करूण-क्रन्दन से वह अत्यन्त भयंकर युद्वस्थल सब ओर से गूंज उठा। 📜 यह देखकर धर्म को जानने वाली सुबलपुत्री गान्धारी ने कमलनयन श्रीकृष्ण को सम्बोधित करके कौरवों के उस विनाश पर दृष्टिपात करते हुए कहा- कमलनयन माधव। मेरी इन विधवा पुत्रवधुओं की ओर देखो, जो केश बिखराये कुररी की भांति विलाप कर रही हैं। 📜 वे अपने पतियों के गुणों का स्मरण करती हुई उनकी लाशों के पास जा रही हैं और पतियों, भाईयों, पिताओं तथा पुत्रों के शरीरों की ओर पृथक-पृथक् दौड़ रही हैं। महाराज। कहीं तो जिनके पुत्र मारे गये हैं उन वीर प्रसविनी माताओं से और कहीं जिनके पति वीरगति को प्राप्त हो गये हैं, उन वीरपत्नियों से यह युद्धस्थल घिर गया है। 📜 पुरुषसिंह कर्ण, भीष्म, अभिमन्यु, द्रोण, द्रुपद और शल्य जैसे वीरों से जो प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी थे, यह रणभूमि सुशोभित है। ©N S Yadav GoldMine #roshni पुण्यात्मा महर्षि व्यास के वरदान से वे दिव्य ज्ञान बल से सम्पन्न हो गयी थीं पढ़िए महाभारत !! 📔📔 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: