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Mihir Choudhary

बिरहा

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तुमने तो हँस के पूछा था  बोलो न कितना प्रेम है 

बोलो कैसे मैं बतलाता
बोलो ना कैसे समझता 

जब अहसास समंदर होता है 
तो शब्द नही फिर मिलते हैं 

उन बेहिसाब से चाहत को कैसे कैसे मैं  बतलाता 
बोलो न कैसे  दिखलाता बोलो न कैसे  समझता 

 तब भी हिसाब का कच्चा था
अब भी हिसाब का कच्चा हूँ

 जो था वो ना मेरे बस का था
अब तो जो हालात हुए उनसे तो मैं अब बेबस हूं

अब अंदर -अंदर सब जलता है
लावा जैसा सा कुछ पलता है

धीमे धीमे  कुछ रिसता है
कुछ टूट-टूट के पीसता है

नस-नस मैं जैसे कुछ खौलता है
धड़कन बिजली सा दौड़ता  है

अब बेहिसाब ये यादे है 
बस बेहिसाब ये चाहत है 

बोलो क्या वो प्रेम ही था 
बोलो न क्या ये प्रेम ही है

मिहिर... बिरहा

ओमप्रकाश #जानकारी

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जिंदगी में अकेले रहना सिखो लोग कभी साथ नहीं देते है

© ओमप्रकाश

Om Prakash

ओमप्रकाश #सस्पेंस

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नम्बर डायल कर के नाम देखो नाम देखकर क्या कर लोगे

ओमप्रकाश सिंह #कॉमेडी

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omprakash pandey

ओमप्रकाश पाण्डेय #nojotophoto

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 ओमप्रकाश पाण्डेय

Anuj Ray

#बिरहा की रातें

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" बिरहा की रातें"

न धुंआ न कहीं ,आग जला करती है,
बिरहा की रातें यूं ही ,खामोश जला करती हैं

जलता है बदन आग की लपटों में,दो बूंद 
की उम्मीद लिये, बेबसी हाथ मला करती है।

फागुन का महीना हो, या घनी सावनी रातें, 
पिया मिलन की आस में, यूं ही ख़ला करती हैं।

©Anuj Ray #बिरहा की रातें

Omprakash Banjara Omprakash

ओमप्रकाश दायमा #poetryunplugged

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Omparkash

रबारी जी। ओमप्रकाश #शायरी

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OmParkash Pooniya Khari

ओमप्रकाश पूनिया खारी #nojotophoto

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 ओमप्रकाश  पूनिया खारी

Raushan Shyam Nirala

कहानी:- ओमप्रकाश की सूझबूझ

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कहानी:- ओमप्रकाश की सूझबूझ  

         लेखक:- रौशन सुजीत रात सूरज

ओम प्रकाश नाम का व्यक्ति जिसका स्वभाव कुछ खास नहीं पर उदारता से भरा पड़ा था। वह कभी भी किसी को दुखी नहीं देखना चाहता था भले वह दुख की आगोश में बैठ जाए। वह जहां भी जाता वहां सभी के चेहरों पर मुस्कान देखना चाहता था। वह कभी भी किसी के साथ ऐसा अनुचित व्यवहार नहीं करता जिसके कारण सामने वाले को ठेस पहुंच जाए। उसके इसी  स्वभाव के कारण उसके गांव वालों ने उसे प्रेम से "मेरा दिल" कह कर पुकारा करते थे। उसके गांव के बच्चों ने उसे "मेरे परमेश्वर" कह कर पुकारा करते थे। 

               ओम प्रकाश जिस गांव में रहता था उस गांव में ना तो बिजली थी और ना ही जलाशय का कोई अच्छा साधन था। यहां तक कि उस गांव में एक मध्य विद्यालय के शिवाय शिक्षा का कोई साधन नहीं था और ना ही कोई स्वास्थ्य केंद्र था। शाम होने के बाद उस गांव के बच्चों को अपनी पढ़ाई पूरी करने में प्रकाश की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। उस गांव में कोई बीमार पड़ जाए तो उसे इलाज के लिए मिलो-कोस दूर जाना पड़ता था। उस गांव के बच्चे जब मध्य विद्यालय उत्तीर्ण होते तो आगे की शिक्षा के लिए उन्हें अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। बहुततेरा तो बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते थे। इन सब कारणों को देखकर ओमप्रकाश दुखी हो जाता और इस समस्या का हल निकालने का प्रयास करता। पर वह यह भी जानता था कि दुखी होकर समस्याओं का हल नहीं निकाला जा सकता।

              ओमप्रकाश ने इन समस्याओं को कई बड़े नेताओं, अफसरों और कई लोगों के समक्ष रखा  परंतु किसी ने भी इन समस्याओं की ओर ध्यान तक नहीं दिया। वह जब भी घर से निकलता तो अपने कामों में सफल होने की  उम्मीद लेकर निकलता  लेकिन जब घर लौटता तो उदासी के भाव में ही रहता।

        एक दिन वह सुबह उठकर देखा तो एक किसान अपने दो बैलों के साथ खेत पर जा रहा था। किसान को देखकर वह भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। किसान जब तक अपने खेतों में हल चलाता रहा तब तक वह वहीं पास में खड़ा होकर हल चलाने की प्रक्रिया को देखता रहा। वह घर आया और अपने पिता श्री से कहा- पिताश्री क्या आप बिना फार (हल मे लगी लोहे की औजार) के खेतों की जुताई कर सकते हैं? 
तब पिता श्री ने जवाब देते हुए कहें- नहीं बेटा। इतना सुनकर वह पिता श्री से  कहा- पिताश्री मैं आगे की पढ़ाई करने शहर जाना चाहता हूंँ। पिता श्री बोले ठीक है। 

           वह शहर गया और आगे की पढ़ाई अच्छे से की और पढ़ाई पूरी कर आईएएस अफसर बना। 

             वह आईएएस अफसर बनने के लगभग 6 महीने बाद अपना गांव लौट आया। लौटने के एक दिन पश्चात वह सभी गांव वासियों को एक जगह पर एकत्र किया और उन सभी से कहा- हम वो  हैं जो दुनिया नहीं जानती। 
इतना सुनकर किसी ने उससे प्रश्न किया- "मेरा दिल" आखिर आप कहना क्या चाहते हैं। तब ओम प्रकाश ने कहा आप सब ने तो हल चलाएं ही होंगे तो क्या आप बता सकते हैं कि आप हल प्रक्रिया का किसी भाग को निकालकर खेतों की जुताई कर पाएंगे?
तो वहां सभी एक साथ  एक स्वर में  चिल्लाएं- नहीं। 
फिर उसने कहा- हमारा पिछड़ने का कारण बस यही है कि हमलोग किसी भी कार्य को एक साथ ना होकर और उस कार्य की प्रकृति के विरुद्ध जाकर काम करते हैं। उसके बाद सभी ने एक साथ मिलकर काम करने लगे और कार्य की प्रकृति के साथ। 

        ओमप्रकाश की इसी सूझबूझ के कारण वह गांव विकसित हो गया और खुशियों से झूमने लगा। वहां के किसानों की आय बढ़ी और उनके जीवन खुशहाल हो गए। 

          शिक्षा:-  बड़े पैमाने पर विकसित होने के लिए एकता में और कार्य की प्रकृति के अनुसार चलना पड़ेगा। कहानी:- ओमप्रकाश की सूझबूझ
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