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Devesh Dixit
रक्षक (दोहे) रक्षक जब भक्षक बनें, कहीं नहीं फिर ठौर। तोड़ दिया विश्वास है, हो इस पर भी गौर।। रक्षक हो जब सामने, होता है विश्वास। रक्षा कर पालन करे, यही बनाती खास।। रक्षक भूले कर्म जो, भक्षक का हो राज। संकट में फिर जिंदगी, कैसे पहने ताज।। देव-दूत कहते उसे, है रक्षक का रूप। भक्षक को ऐसे लगे, जैसे तपती धूप।। रक्षक की ताकत बड़ी, ईश्वर देते साथ। जहाँ पड़े कमजोर है, सर पर रखते हाथ।। भक्षक भी फिर टूटता, रक्षक देता चोट। भागा-भागा वह फिरे, कहीं न मिलती ओट।। ............................................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #रक्षक #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi रक्षक (दोहे) रक्षक जब भक्षक बनें, कहीं नहीं फिर ठौर। तोड़ दिया विश्वास है, हो इस पर भी गौर।।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- योगी-मोदी साथ में , खेल रहें हैं मैच । छक्के पे छक्का लगे , हाथ न आये कैच ।। योगी-मोदी नाम तो , जग में है मशहूर । बस अपने कुछ लोग ही , रहते उनसे दूर ।। योगी-मोदी नाम का , करो आप भी जाप । जीवन में सुख शाँति हो, रहे नही संताप ।। छोड़ो माया मोह यह , कुछ मत आये काम । योगी-मोदी नाम से , लौटे हैं प्रभु धाम ।। इनके मन आया नहीं , कोई और विचार । जनता सेवा ही प्रथम , इनका है आधार ।। जीवन के हर मोड़ पर , नही मिलेगा साथ । ऐसी वाणी बोलते , दिखे हमें कुछ हाथ ।। भूले जो संस्कार अब , उनको कहना नीच । मिल जायेंगे देख लो , अभी हमारे बीच ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- योगी-मोदी साथ में , खेल रहें हैं मैच । छक्के पे छक्का लगे , हाथ न आये कैच ।। योगी-मोदी नाम तो , जग में है मशहूर । बस अपने कुछ लोग ह
Sudha Tripathi
White आल्हा छंद मुक्तक रामायण प्रसंग -जामवंत का हनुमान जी को आत्मबोध करना जामवंत कहते बजरंगी, चुप बन बैठे क्यों पाषाण। भूले हो क्यों अपनी क्षमता, किसमें है तेरा कल्याण।। न हो सके जो तुमसे बोलो, कठिन कौन सा ऐसा काम। नहीं जगत में तुमसा कोई,दूजा स्वीकारो हनुमान।। दीर्घकाय पर्वत से होकर,लिए शक्ति अपनी पहचान। चुका सके ऋण अनुदानों का, जीवन कर अपना बलिदान।। जो कुछ भी कर पाए उसका , नहीं कभी मन में हो दम्भ । सिंहनाद करके फौलादी,ले संकल्प किये प्रस्थान।। *सुधा त्रिपाठी* ©Sudha Tripathi #ramnavmi आल्हा छंद मुक्तक रामायण प्रसंग -जामवंत का हनुमान जी को आत्मबोध करना जामवंत कहते बजरंगी, चुप बन बैठे क्यों पाषाण। भूले हो क्य
Bhanu Priya
Black क्षणिक सुख टपके आंसू छलकी बूंदे यूं मोती बन वह तो वही जाने कैसे बिसरे थे उन्होंने वे दिन तुम्हारे बिन आंसू तो लाज़मी थे बहुत रोका लेकिन वे तो वह ही रहे थे खुशी से चहक रहे थे कहां वह स्थाई थी वह तो मिटने से पहले ही मिट कर आई थी फिर भी दो शब्द कहे दो शब्द सुने क्षणिक सुख बरसाया था कहां वह उस प्रेम के आगे टिक पाया था वो यादगार लम्हा उस दिन आया था किसी ने बुलाया नहीं वह तो स्वयं हमसे मिलने आया था । ©Bhanu Priya #Thinking क्षणिक सुख टपके आंसू छलकी बूंदे यूं मोती बन वह तो वही जाने कैसे बिसरे थे उन्होंने वे दिन तुम्हारे बिन आंसू तो लाज़मी थे
Bharat Bhushan pathak
Beautiful Moon Night सुबह -शाम हो ईश्वर वंदन। संस्कार यही जैसे चंदन।। सुमिरन मन से हरि का कर लो। अपनी चिन्ता उन पर धर लो।। नित्य सवेरे तड़के जगना। नहीं किसी को भूले ठगना।। ©Bharat Bhushan pathak #beautifulmoon सुबह -शाम हो ईश्वर वंदन। संस्कार यही जैसे चंदन।। सुमिरन मन से हरि का कर लो। अपनी चिन्ता उन पर धर लो।। नित्य सवेरे तड़के जगना
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
हमारी नियति है। कभी शून्य से आगे बढ़ ही नहीं पाए , जब भी हमने सोचा की शायद अब नियति मे कुछ बदलाव आया होगा तो तभी कुछ ऐसा होता है की फिर उसी मोड़ पर आकर खड़े हों जाते हैं। कभी कभी तो लगता है अपने हाथ पैर मारना ही छोड़ दे ताकि कुछ पल सुकून के तो मिल सके पर यह भीं इसे मंजूर नहीं होता है, फिर कोई न कोई राह दिखा कर फिर उसी मोड़ पर ले आती है। ना यह चेन से जीने देती है और ना मरने देती है। जब तकलीफ़ का दौर देखा और अपने आप को कोसने लगे तो फिर इसे शख्स को सामने लाकर खड़ा कर देगी। जो हमसे भीं ज्यादा तकलीफ़ मे होगा, उसे देख कर और उनकी तकलीफ़ को सुनकर उनके लिए प्रार्थना करने के लिए अपने आप भगवान के आगे उठ जाते हैं। और आंखो में अश्रु भर जाते हैं। बस और बस केवल उनकी ही पीड़ा मन में रहती है। जब हाथ पकड़ कर कहती हूं सब ठीक हों जायेगा। तो वो जैसे ही ठीक हों जाता था। तो हमे भूल जाता है। और मन में एक ठीस सी उठती है। हमें दुःख किस बात का हुआ वो भूले इस कारण यां उनकी पीड़ा हमारे अंदर आ गई उसके कारण.. समझ नहीं आता की नियति क्या खेल खेलती है। हमारा मन एक कोरा कागज़ है उसपर हर तरह के रंग भर देती है। चाहें हमें पसंद हों यां नहीं। बस भरे जा रहीं हैं, भरे जा रही है। जो देखेगा तो उसका अलग ही मत होगा। कोई अपनी अलग ही राय कायम करेगा। पर इन सब के बीच में पिसता पेपर हैं। अगर रंग अच्छे भरे तो सुंदर चित्र उभर कर आयेगा और उसे साथ ले जायेगा। और किसी को पसंद नहीं आया तो कचरे के डिब्बे में फेका जायेगा, तब वो स्याही भीं ख़राब तो उस पेन की चुबन और वो पेपर भीं ख़राब हों जायेगा। और बाद में हमारी नियति भीं ख़राब बता दी जायेगी क्योंकि सबसे बड़ी कलाकार हमारी नियति है और हम वो प्लेन पेपर है, और दुःख, सुख, शांति, पीड़ा, संघर्ष रूपी कलम सभी हमारी नियति है। और शून्य से बढ़े तो शून्य में ही विलीन हों गए। ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma #aaina हमारी नियति है। कभी शून्य से आगे बढ़ ही नहीं पाए , जब भी हमने सोचा की शायद अब नियति मे कुछ बदलाव आया होगा तो तभी कुछ ऐसा होता है की
Harishanker
Akshay ji
शायद आपको अपनी जिंदगी की कीमत मालूम नहीं है यहां पर हर एक सांस भी उधार नहीं मिलती इसकी कीमत आपको तब पता चलती है जब अस्पताल में एडमिट होते हैं इसलिए ऊपर वाले का शुक्रिया करें उसने आपको इतनी सारी वायु मुफ्त में दी है ©Akshay ji #उस ऊपर वाले को कभी ना भूले जिसने आपको बनाया है
Vikrant Rajliwal Show