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N S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उचित दण्ड दें पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: आश्रमवासिका पर्व पंचम अध्याय: श्लोक 18-32 📔 भारत। जिन मनुष्यों के कुल और शील अच्छी तरह ज्ञात हों, उन्हीं से तुम्हें काम लेना चाहिये। भोजन आदि के अवसरों पर सदा तुम्हें आत्मरक्षा पर ध्यान देना चाहिये। आहार विहार के समय तथा माला पहनने, शय्या पर सोने और आसनों पर बैठने के समय भी तुम्हें सावधानी के साथ अपनी रक्षा करनी चाहिये। युधिष्ठिर। कुलीन, शीलवान्, विद्वान, विश्वासपात्र एवं वृद्ध पुरुषों की अध्यक्षता में रखकर तुम्हें अन्तःपुर की स्त्रियों की रक्षा का सुन्दर प्रबन्ध करना चाहिये। राजन्। तुम उन्हीं ब्राह्मणों को अपने मन्त्री बनाओ, जो विद्या में प्रवीण, विनयशील, कुलीन, धर्म और अर्थ में कुशल तथा सरल स्वभाव वाले हों। उन्हीं के साथ तुम गूढ़ विषय पर विचार करो, किंतु अधिक लोगों को साथ लेकर देर तक मन्त्रणा नहीं करनी चाहिये। सम्पूर्ण मन्त्रियों को अथवा उनमें से दो एक को किसी के बहाने चारों ओर से घिरे हुए बंद कमरे में या खुले मैदान में ले जाकर उनके साथ किसी गूढ़ विषय पर विचार करना। जहाँ अधिक घास फूस या झाड़ झंखाड़ न हो, ऐसे जंगल में भी गुप्त मन्त्रणा की जा सकती है, परंतु रात्रि के समय इन स्थानों में किसी तरह गुप्त सलाह नहीं करनी चाहिये। 📔 मनुष्यों का अनुसरण करने वाले जो वानर और पक्षी आदि हैं, उन सबको तथा मूर्ख एवं पंगु मनुष्यों को भी मन्त्रणा गृह में नहीं आने देना चाहिये। गुप्त मन्त्रणा के दूसरों पर प्रकट हो जाने से राजाओं को जो संकट प्राप्त होते हैं, उनका किसी तरह समाधान नहीं किया जा सकता - ऐसा मेरा विश्वास है। शत्रुदमन नरेश। गुप्त मन्त्रणा फूट जाने पर जो दोष पैदा होते हैं और न फूटने से जो लाभ होते हैं, उनको तुम मन्त्रिमण्डल के समक्ष बारंबार बतलाते रहना। राजन्। कुरूश्रेष्ठ युधिष्ठिर। नगर औश्र जनपद के लोगों का हृदय तुम्हारे प्रति शुद्ध है या अशुद्ध, इस बात का तुम्हें जैसे भी ज्ञान प्राप्त हो सके, वैसा उपाय करना। नरेश्वर। न्याय करने के काम पर तुम सदा ऐसे ही पुरुषों को नियुक्त करना, जो विश्वासपात्र, संतोषी और हितैषी हों तथा गुप्तचरों के द्वारा सदा उनके कार्यों पर दृष्टि रखना। भरतनन्दन युधिष्ठिर। तुम्हें ऐसा विधान बनाना चाहिये, जिससे तुम्हारे नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उचित दण्ड दें। 📔 जो दूसरों से घूस लेने की रुचि रखते हों, परायी स्त्रियों से जिनका सम्पर्क हो, जो विशषतः कठोर दण्ड देने के पक्षपाती हों, झूठा फैसला देते हों, जो कटुवादी, लोभी, दूसरों का धन हड़पने वाले, दुस्साहसी, सभाभवन और उद्यान आदि को नष्ट करने वाले तथा सभी वर्ण के लोगों को कलंकित करने वाले हों, उन न्यायाधिकारियों को देश काल का ध्यान रखते हुए सुवर्ण दण्ड अथवा प्राण दण्ड के द्वारा दण्डित करना चाहिये। प्रातःकाल उठकर (नित्य नियम से निवृत्त होने के बाद) पहले तुम्हें उन लोगों से मिलना चाहिये, जो तुम्हारे खर्च बर्च के काम पर नियुक्त हों। उसके बाद आभूषण पहनने या भोजन करने के काम पर ध्यान देना चाहिये। जय श्री राधे कृष्ण जी।। ©N S Yadav GoldMine #SAD {Bolo Ji Radhey Radhey} नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उ
Salim Saha
देखते हैं ये जिंदगी हमें कब तक भटकाएगी किसी दिन तो कोशिशें हमारी भी रंग लाएंगी, उस रोज हम आराम से बैठेंगे अपने घर में और कामयाबी बहार दरवाजा खटखटाएगी। ©Salim Saha #Sawera कामयाबीन आहार दरवाजाकडे#
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम । रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।। कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार । भोजन दूषित बन पके , उपजे हृदय विकार ।। प्रभु का चिंतन जो करे , सुखी रखे परिवार । आपस में सदभाव हो , सदा बढ़े मनुहार ।। प्रभु चिंतन में व्याधि जो , बनते सदा कपूत । त्याग उसे आगे बढ़े , वह है रावण दूत ।। प्रभु की महिमा देखिए , हर जीव विद्यमान् । मानव की मति है मरी , चखता उसे जुबान ।। पारण करना छोडिए , विषमय मान पदार्थ । उससे बस उत्पन्न हो , मन में अनुचित अर्थ ।। २९/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम । रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।। कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार । भोजन दूषित बन पके ,
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा । गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।। भूल कहाँ होती मानव से ... पूर्ण कहाँ है ये मानव जो, संपूर्ण बना अब बैठा है । आज विधाता को ठुकराकर , जो ज्ञानी अब बन ऐठा है ।। बता रहा है वो जन-जन को , मुझको पहचाना जायेगा । भूल कहाँ होती मानव से ...। खूबी अपनी बता रहा है , वह घर-घर जाकर लोगों को । पर छुपा रहा वह सबसे अब, बढ़ते दुनिया में रोगों को ।। किए जा रहा नित्य परीक्षण , की ये परचम लहरायेगा । भूल कहाँ होती मानव से ...। संग प्रकृति के संरक्षण को , आहार बनाता जाता है । अपनी सुख सुविधा की खातिर , संसार मिटाया जाता है ।। ऐसे इंसानों को कल तक , शैतान पुकारा जायेगा । भूल कहाँ होती मानव से .... भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा । गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।। १०/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा । गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।। भूल कहाँ होती मानव से ... पूर्ण कहाँ है ये म
Bharat Bhushan pathak
पूर्वार्थ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत अब एक शीश बहु रावण है , मैं तुमको यह बतलाता हूँ । हे राम तुम्हारे आवाहन , पर अपना शीश झुकाता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है .... अब हर घर में रावण बैठा , जो खुद को राम बताता है । रावण की प्रतिमा आज जला , वह राम अंश कहलाता है ।। मन का उसके हम का दीपक , तम आज जगत फैलाता है । आकर तारो पुन्य धरा को , मैं तुमको पुनः बुलाता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है ...... इक नारी के हरण मात्र से ,क्या राख हुई लंका सारी । इसमें भी तो भेद छुपा था , जान रही सीता महतारी ।। आज हरण तो गली-गली है , क्या अत्य की न भरी बखारी । पूछ रहा है भक्त तुम्हारा , अब सोंच-सोच पछताता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है ..... यह विजय पर्व है खुशियों का , मैं कैसे आज मनाता हूँ । सहमा-सहमा डर-गर कर मैं, फिर घर अपने ही जाता हूँ ।। मानव ही मानव का दुश्मन , अब कैसा ये युग आया है । जीव-जन्तु आहार बने है , प्रकृति मौन है बतलाता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है ..... नारी ही नारी को देखा , निर्वस्त्र आज कर देती है । अपने कुल का मान कहाँ अब , हर नारी देखो करती है ।। कैसा ज्ञान कोष है रघुवर , मैं सुनकर बिचलित रहता हूँ । आप कहो हो मेरे रघुवर , आवाज़ तुम्हें मैं देता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है .. अब एक शीश बहु रावण है , मैं तुमको यह बतलाता हूँ । हे राम तुम्हारे आवाहन , पर अपना शीश झुकाता हूँ ।। २४/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत अब एक शीश बहु रावण है , मैं तुमको यह बतलाता हूँ । हे राम तुम्हारे आवाहन , पर अपना शीश झुकाता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है ....
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा कर पानी का दे दिया , पीकर लूँ अब साँस । जीवन के इस मोड़ पर , हर पल होता टाँस ।।१ मेवा मिश्री को नहीं , कहो-सुखी आधार । सूखी रोटी दाल अब , हर जन का आहार ।।२ सपने में आते रहे , ये मेवा मिष्ठान । बच्चे अक्सर पूछते , पापा कहाँ दुकान ।।३ बातें इतनी है बड़ी , किससे करूँ सवाल । बच्चों की हर माँग पर , देखूँ अपना हाल ।।४ १०/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा कर पानी का दे दिया , पीकर लूँ अब साँस । जीवन के इस मोड़ पर , हर पल होता टाँस ।। मेवा मिश्री को नहीं , कहो-सुखी आधार । सूखी रोटी दाल अब