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N S Yadav GoldMine

#SAD {Bolo Ji Radhey Radhey} नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उ #मोटिवेशनल

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Salim Saha

#Sawera कामयाबीन आहार दरवाजाकडे# #शायरी

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम । रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।। कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार । भोजन दूषित बन पके ,  #कविता

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दोहा

जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम ।
रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।।

कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार ।
भोजन दूषित बन पके ,  उपजे हृदय विकार ।।

प्रभु का चिंतन जो करे , सुखी रखे परिवार ।
आपस में सदभाव हो ,  सदा बढ़े मनुहार ।।

प्रभु चिंतन में व्याधि जो , बनते सदा कपूत ।
त्याग उसे आगे बढ़े , वह है रावण दूत ।।

प्रभु की महिमा देखिए , हर जीव विद्यमान् ।
मानव की मति है मरी , चखता उसे जुबान ।।

पारण करना छोडिए , विषमय मान पदार्थ ।
उससे बस उत्पन्न हो , मन में अनुचित अर्थ ।।

२९/०२/२०२४     -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा

जब भी तुम आहार लो , ले लो राधा नाम ।
रोम-रोम फिर धन्य हो , पाकर राधेश्याम ।।

कभी रसोई में नहीं ,करना गलत विचार ।
भोजन दूषित बन पके , 

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा । गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।। भूल कहाँ होती मानव से ... पूर्ण कहाँ है ये म #कविता

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गीत
भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा ।
गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।।
भूल कहाँ होती मानव से ...

पूर्ण कहाँ है ये मानव जो, संपूर्ण बना अब बैठा है ।
आज विधाता को ठुकराकर , जो ज्ञानी अब बन ऐठा है ।।
बता रहा है वो जन-जन को , मुझको पहचाना जायेगा ।
भूल कहाँ होती मानव से ...।

खूबी अपनी बता रहा है , वह घर-घर जाकर लोगों को ।
पर छुपा रहा वह सबसे अब, बढ़ते दुनिया में रोगों को ।।
किए जा रहा नित्य परीक्षण , की ये परचम लहरायेगा ।
भूल कहाँ होती मानव से ...।

संग प्रकृति के संरक्षण को , आहार बनाता जाता है ।
अपनी सुख सुविधा की खातिर , संसार मिटाया जाता है ।।
ऐसे इंसानों को कल तक , शैतान पुकारा जायेगा ।
भूल कहाँ होती मानव से ....

भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा ।
गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।।

१०/०२/२०२४       -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR भूल कहाँ होती मानव से , जो वह अब पछतायेगा ।

गलती करके भी कौन यहाँ , तू बोल भला शर्मायेगा ।।

भूल कहाँ होती मानव से ...


पूर्ण कहाँ है ये म

Bharat Bhushan pathak

#Blossom सृजन जीव का ऐसे ही हो,अंकुर फिर पौधा नन्हा। संग-संग कोई बढ़ता या,चलना पड़ता हो तन्हा।। अर्थपूर्ण या अर्थहीन हो,निर्भर है व्यवहारों #Poetry

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पूर्वार्थ

बच्चे हो या बूढ़े सबको पसंद है खेल-कूद, खेलों से अच्छा हो जाता हमारा मूड. ताकत के साथ-साथ बढ़ता है दिमाग, पूरे शरीर में लगती है तंदरूस्ती की #Thoughts

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DD praak

हेल्दी और पौष्टिक आहार 🍲🍲🍲 #Knowledge

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत  अब एक शीश बहु रावण है , मैं तुमको यह बतलाता हूँ । हे राम तुम्हारे आवाहन ,  पर अपना शीश झुकाता हूँ ।। अब एक शीश बहु रावण है .... #कविता

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गीत 
अब एक शीश बहु रावण है , मैं तुमको यह बतलाता हूँ ।
हे राम तुम्हारे आवाहन ,  पर अपना शीश झुकाता हूँ ।।
अब एक शीश बहु रावण है ....

अब हर घर में रावण बैठा , जो खुद को राम बताता है ।
रावण की प्रतिमा आज जला , वह राम अंश कहलाता है ।।
मन का उसके हम का दीपक , तम आज जगत फैलाता है ।
आकर तारो पुन्य धरा को , मैं तुमको पुनः बुलाता हूँ ।।
अब एक शीश बहु रावण है ......

इक नारी के हरण मात्र से ,क्या राख हुई लंका सारी ।
इसमें भी तो भेद छुपा था , जान रही सीता महतारी ।।
आज हरण तो गली-गली है , क्या अत्य की न भरी बखारी ।
पूछ रहा है भक्त तुम्हारा , अब सोंच-सोच पछताता हूँ ।।
अब एक शीश बहु रावण है .....

यह विजय पर्व है खुशियों का , मैं कैसे आज मनाता हूँ ।
सहमा-सहमा डर-गर कर मैं, फिर घर अपने ही जाता हूँ ।।
मानव ही मानव का दुश्मन , अब कैसा ये युग आया है ।
जीव-जन्तु आहार बने है , प्रकृति मौन है बतलाता हूँ ।।
अब एक शीश बहु रावण है .....

नारी ही नारी को देखा , निर्वस्त्र आज कर देती है ।
अपने कुल का मान कहाँ अब , हर नारी देखो करती है ।।
कैसा ज्ञान कोष है रघुवर , मैं सुनकर बिचलित रहता हूँ ।
आप कहो हो मेरे रघुवर , आवाज़ तुम्हें मैं देता हूँ ।।
अब एक शीश बहु रावण है ..

अब एक शीश बहु रावण है , मैं तुमको यह बतलाता हूँ ।
हे राम तुम्हारे आवाहन , पर अपना शीश झुकाता हूँ ।।

२४/१०/२०२३       -      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत 


अब एक शीश बहु रावण है , मैं तुमको यह बतलाता हूँ ।

हे राम तुम्हारे आवाहन ,  पर अपना शीश झुकाता हूँ ।।

अब एक शीश बहु रावण है ....

MD Prince

#wobaatein शुद्ध आहार ले मानव हमेशा #विचार

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा कर पानी का दे दिया , पीकर लूँ अब साँस । जीवन के इस मोड़ पर , हर पल होता टाँस ।। मेवा मिश्री को नहीं , कहो-सुखी आधार । सूखी रोटी दाल अब #कविता

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दोहा
कर पानी का दे दिया , पीकर लूँ अब साँस ।
जीवन के इस मोड़ पर , हर पल होता टाँस ।।१
मेवा मिश्री को नहीं , कहो-सुखी आधार ।
सूखी रोटी दाल अब , हर जन का आहार ।।२
सपने में आते रहे , ये मेवा मिष्ठान ।
बच्चे अक्सर पूछते , पापा कहाँ दुकान ।।३
बातें इतनी है बड़ी , किससे करूँ सवाल ।
बच्चों की हर माँग पर , देखूँ अपना हाल ।।४

१०/०८/२०२३    - महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा
कर पानी का दे दिया , पीकर लूँ अब साँस ।
जीवन के इस मोड़ पर , हर पल होता टाँस ।।

मेवा मिश्री को नहीं , कहो-सुखी आधार ।
सूखी रोटी दाल अब
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