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SURJEET SAIN
किसी से बात करने के लिए भी उसके लेवल तक आना पड़ता है वरना हमारी बात का कोई मतलब ही नहीं रहता.......। खुद का लेवल बढ़ाना बहुत जरूरी है.......
Gurudeen Verma
शीर्षक - बूथ लेवल अधिकारी(बीएलओ) ---------------------------------------------------------------- (शेर)- नहीं कोई इन पर दया, यह कैसा कानून है। बीएलओ के रूप में इनका, करता हर कोई खून है।। नहीं कोई अधिकार इनको, पीड़ा अपनी सुनाने का गुलाम की तरह इनको काम लेना, सभी में जुनून है।। ----------------------------------------------------------------- नाम है बीएलओ, यानि बूथ लेवल अधिकारी। नहीं कोई अधिकार इनको,पिसे दुनिया सारी।। इनपे नहीं जुल्म करो। इनकी भी कदर करो।। नाम है बीएलओ,यानि-------------------------।। बना रखा है बैल कोल्हू का, बूथ लेवल अधिकारी को। डांट देता है हर कोई आकर, बूथ लेवल अधिकारी को।। नहीं मिलता सम्मान उनको, ताने देती दुनिया सारी। नाम है बीएलओ, यानि ----------------------------।। इनपे नहीं जुल्म करो,-----------------------------।। मतदान केंद्र पर सारी व्यवस्था, ये बीएलओ करते हैं। इनके संग व्यवहार सभी, बहुत बुरा ही करते हैं।। चुनावों में नहीं मिलती है, सुविधा इनको सरकारी। नाम है बीएलओ, यानि ----------------------------।। इनपे नहीं जुल्म करो,----------------------------।। नहीं कोई आजादी इनको, अपनी पीड़ा कहने में। इनके साथ है संघ सभी, बस राजनीति करने में।। हर कोई इनको कहता है, एक आफत और बीमारी। नाम है बीएलओ, यानि-------------------------।। इनपे नहीं जुल्म करो,--------------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार- गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #बूथ लेवल अधिकारी
Parasram Arora
असल मे मरघट और महल का फासला उनके लीए ही है जिनके मन मे महल की आकांशा है मरघट और महल मे कोई फासला नही है फासला हमारी आकांक्षाओं मे है हम महल चाहते हैँ... मरघट हम नही चाहते इसीलिए फासला है. जहा महल खड़े हैँ वहा मरघट बहुत बार बन चुके जहाँ.मरघट बने हैँ वहा बहुतपहले महल बन कर गिर चुके हैँ और सब महल अंततः मरघट बन जाते है और सब मरघटोपर महल खडे हौ जाते हैँ फर्क क्या है? फासला क्या है? ©Parasram Arora फर्क क्या है? फासला क्या है?
Vishal Vaid
मौसम सब बदल गए है शहर के एक तेरे जाने के बाद शहर भी अब लगता है सूना जो था कभी तुझ से आबाद इश्क नही बरसता है अब सावन में नहीँ उगती तेरी चाहत अब आंगन में न वो ठिठुरती सर्दी है,न पहले सा घना कोहरा है, न तेरी काफ़ी का जायका, न तेरा अक्स सुनहरा है न वो तपिश अलाव की, न वो तेरे हाथो की गर्मी, न वो उगते सूरज की लाली,न तेरे चेहरे की नरमी उतर सा गया है रंग तुम्हारे बुने मफलर का मैयार कम हो गया ,स्लेटी गहरे समुन्दर का बहार अब आती नही दरख्त भी बेसमर हो गए है जो ताबीज़ दिए थे मौलवी ने सारे बेअसर हो गए है वो तुम्हारी पहली चिट्ठी का धुंधला पड़ गया है मतला सारा, जो पहले लगता था पानी मीठा अब लगता है बिल्कुल खारा । एक तुम्हारे जाने से देखो सब बेतरतीब हो गया है। जो था नसीब वाला कल तक ,अब बदनसीब हो गया है। #मौसम #जुदाई मेयर = स्टैंडर्ड ,लेवल बेसमर। fruitless