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narendra bhakuni
Nathalal Gokalbhai
Shree Ram संसार से पार होने का एकमात्र उपाय ज्ञान है और सब दुखों का नाश आत्म अनुभव से होता है =योग वाशिष्ठ रामायण से ©Nathalal Gokalbhai #ऋषि वाल्मीकि रचित योग वाशिष्ठ रामायण में से कुछ बातें
Nathalal Gokalbhai
वाल्मीकि ऋषि रचित योग वाशिष्ठ रामायण जो बातें इस ग्रंथ में है वह और ग्रंथ में भी मिलेगी और जो इसमें नहीं है वह आपको कहीं नहीं मिलेगी ©Nathalal Gokalbhai #योग वाशिष्ठ रामायण वाल्मीकि ऋषि रचित
PRASAD
चूल्हा मिट्टी का मिट्टी तालाब की तालाब ठाकुर का । भूख रोटी की रोटी बाजरे की बाजरा खेत का खेत ठाकुर का । बैल ठाकुर का हल ठाकुर का हल की मूठ पर हथेली अपनी फ़सल ठाकुर की । कुआँ ठाकुर का पानी ठाकुर का खेत-खलिहान ठाकुर के गली-मुहल्ले ठाकुर के फिर अपना क्या ? गाँव ? शहर ? देश ? ©PRASAD #BehtiHawaa ठाकुर का कुआँ ।। ओमप्रकाश वाल्मीकि की
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
सोच तो हमारी थी बहुत ऊपर तक जानें कि पर हम तो उस मोड़ ही रोक दिए गए, अब न तो हम ऊपर आ पाए और न नीचे आ पाए। अगर विश्वास नहीं हों तो विश्वास नहीं तो मेरी सारी पोस्ट उठा कर देख लो। मेरी प्रोफ़ाइल एक बार चैक करके देख लो। ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma मै तितली ही रहीं#titliyan Ravi vibhute ओमप्रकाश कटारिया Lalit Saxena ए-कलम पथिक
N S Yadav GoldMine
आज हम भगवान राम ने अपने वनवास के 14 वर्ष कहाँ-कहाँ बिताएं इसके बारें में विस्तार से जानेंगे !!💥💥{Bolo Ji Radhey Radhey} वनवास के 14 वर्ष कहाँ-कहाँ बिताएं :- 🔆 भगवान श्रीराम को चौदह वर्षों का कठोर वनवास मिला था जिसके अनुसार उन्हें केवल वनों में रहना था तथा किसी भी नगर में जाना प्रतिबंधित था। श्रीराम ने अपने वचन का भलीभांति पालन किया तथा चौदह वर्षों तक अपनी पत्नी सीता तथा भाई लक्ष्मण के साथ वनवासियों की भांति जीवन व्यतीत किया। इस दौरान वे भारत के उत्तरी तट से लेकर दक्षिणी तट तक गए। इसलिये आज हम भगवान श्रीराम के वनवास का मार्ग तथा इस दौरान वे कहाँ-कहाँ रुके और क्या-क्या कार्य किये, इसके बारें में विस्तार से जानेंगे। भगवान श्रीराम के वनवास का मार्ग :- तमसा नदी के तट पर :- 🔆 सबसे पहले अयोध्या से विदा लेने के पश्चात भगवान राम रथ में बैठकर आर्य सुमंत के साथ तमसा नदी के तट तक पहुंचे। वहां तक अयोध्या की प्रजा भी उनके साथ आयी जो उन्हें अकेले जाने देने को लेकर तैयार नही थी तथा उनके साथ चलने की जिद्द लिए बैठी थी। इसलिये उस रात श्रीराम ने अपना डेरा तमसा नदी के तट पर ही डाला तथा सूर्योदय से पहले अयोध्या की प्रजा को बिना जगाये सीता, लक्ष्मण तथा सुमंत के साथ कोशल देश की नगरी से बाहर निकल गए। श्रृंगवेरपुर नगरी :- 🔆 इसके पश्चात वे अपने मित्र निषादराज गुह की नगरी श्रृंगवेरपुर के पास के वनों में पहुंचे तथा वही एक दिन के लिए विश्राम किया। उनके मित्र गुह ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। अगले दिन उन्होंने सुमंत को रथ लेकर अयोध्या लौट जाने का आदेश दिया तथा वहां से आगे पैदल ही यात्रा करने का निर्णय किया। फिर उन्होंने केवट के सहारे गंगा नदी को पार किया तथा उस पार कुरई गाँव उतरे। प्रयाग :- 🔆 गंगा पार करके श्रीराम माता सीता, लक्ष्मण तथा निषादराज गुह के साथ प्रयाग चले गए। वहां उन्होंने त्रिवेणी की सुंदरता को देखा तथा आगे मुनि भारद्वाज के आश्रम पहुंचे। यहाँ उन्होंने मुनि भारद्वाज से अपने रहने के लिए उत्तम स्थान पूछा जिन्होंने यमुना पार चित्रकूट को उत्तम बताया। चित्रकूट :- 🔆 इसके पश्चात श्रीराम ने अपने मित्र निषादराज गुह को भी वहां से वापस अपनी नगरी लौट जाने का आदश दिया तथा माता सीता व लक्ष्मण के साथ यमुना पार करके चित्रकूट चले गए। चित्रकूट पहुँचते ही उन्होंने वाल्मीकि आश्रम में उनसे भेंट की तथा गंगा की धारा मंदाकिनी नदी के किनारे अपनी झोपड़ी बनाकर रहने लगे। यही पर उनका भरत से मिलन हुआ था जब भरत अयोध्या के राजपरिवार, सभी गुरुओं, मंत्रियों के साथ श्रीराम को वापस लेने पहुंचे थे लेकिन श्रीराम ने वापस लौटने से मना कर दिया था। इसके कुछ समय पश्चात श्रीराम चित्रकूट भी छोड़कर चले गए थे क्योंकि उन्हें डर था कि अब अयोध्या की प्रजा यहाँ निरंतर आती रहेगी जिससे ऋषि मुनियों के ध्यान में बाधा पहुंचेगी। दंडकारण्य :- 🔆 दंडकारण्य के वनों में पहुंचकर सर्वप्रथम उन्होंने ऋषि अत्री तथा माता अनुसूया से उनके आश्रम में जाकर भेंट की। माता अनुसूया से माता सीता को कई बहुमूल्य रत्न, आभूषण तथा वस्त्र प्राप्त हुए। ऋषि अत्री से ज्ञान पाकर वे आगे बढ़ गए। इसके पश्चात उनका विराध राक्षस से सामना हुआ जिसका उन्होंने वध किया। तब वे शरभंग ऋषि से मिले जिनकी मृत्यु समीप ही थी। श्रीराम से भेंट के पश्चात ऋषि शरभंग ने अपने प्राण त्याग दिए तथा प्रभु धाम में चले गए। इसके पश्चात भगवान राम दंडकारण्य के वनों में घूम-घूमकर राक्षसों का अंत करने लगे। प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल का ज्यादातर समय दंडकारण्य के वनों में ही बिताया था। जब दंडकारण्य के वनों में प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल के 10 से 12 वर्ष बिता दिए तब उनकी भेंट महान ऋषि अगस्त्य मुनि से हुई। अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को उनका अगला पड़ाव दक्षिण में गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में बनाने को कहा। अगस्त्य मुनि से आज्ञा पाकर श्रीराम पंचवटी के लिए निकल गए। पंचवटी :- 🔆 अब श्रीराम गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे जहाँ उनकी भेंट जटायु से हुई। जटायु उनकी कुटिया की रक्षा में प्रहरी के तौर पर तैनात रहते थे। इसी स्थल पर शूर्पनखा ने श्रीराम को देखा था तथा माता सीता पर आक्रमण करने का प्रयास किया था। तब लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी थी। तब उनका रावण के भाई खर व दूषण से युद्ध हुआ व श्रीराम ने उनका राक्षसी सेना समेत वध कर डाला। उसके कुछ समय पश्चात रावण ने अपने मामा मारीच की सहायता से माता सीता का अपहरण कर लिया। रावण ने उनकी सुरक्षा में तैनात जटायु का भी वध कर डाला। भगवान श्रीराम तथा लक्ष्मण माता सीता को ढूंढते हुए वहां से निकल गए। ©N S Yadav GoldMine #phool आज हम भगवान राम ने अपने वनवास के 14 वर्ष कहाँ-कहाँ बिताएं इसके बारें में विस्तार से जानेंगे !!💥💥{Bolo Ji Radhey Radhey} वनवास के 14 व
N S Yadav GoldMine
नारदजी विष्णु भगवान के परम भक्तों में से एक माने जाते हैं आइये विस्तार से जानिए !!🌲🌲 {Bolo Ji Radhey Radhey} नारद जयंती :- 🎻 नारदजी विष्णु भगवान के परम भक्तों में से एक माने जाते हैं। देवर्षि नारद मुनि विभिन्न लोकों में यात्रा करते थे, जिनमें पृथ्वी, आकाश और पाताल का समावेश होता था। ताकि देवी-देवताओं तक संदेश और सूचना का संचार किया जा सके। नारद मुनि के हाथ में हमेशा वीणा मौजूद रहता है। 🎻 उन्होंने गायन के माध्यम से संदेश देने के लिए अपनी वीणा का उपयोग किया। देवर्षि नारद व्यासजी, वाल्मीकि तथा परम ज्ञानी शुकदेव जी के गुरु माने जाते हैं। कहा जाता है कि नारद मुनि सच्चे सहायक के रूप में हमेशा सच्चे और निर्दोष लोगों की पुकार श्री हरि तक पहुंचाते थे। इन्होंने देवताओं के साथ-साथ असुरों का भी सही मार्गदर्शन किया। यही वजह है कि सभी लोकों में उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। नारद मुनि की जन्म कथा :- ब्रहमा के पुत्र होने से पहले नारद मुनि एक गंधर्व थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने पूर्व जन्म में नारद उपबर्हण नाम के गंधर्व थे। उन्हें अपने रूप पर बहुत ही घमंड था। एक बार स्वर्ग में अप्सराएँ और गंधर्व गीत और नृत्य से ब्रह्मा जी की उपासना कर रहे थे तब उपबर्हण स्त्रियों के साथ वहां आए और रासलीला में लग गए। यह देख ब्रह्मा जी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उस गंधर्व की श्राप दे दिया कि वह शूद्र योनि में जन्म लेगा। 🎻 बाद में गंधर्व का जन्म एक शूद्र दासी के पुत्र के रूप में हुआ। दोनों माता और पुत्र सच्चे मन से साधू संतो की सेवा करते। नारद मुनि बालक रुप में संतों का जूठा खाना खाते थे जिससे उनके ह्रदय के सारे पाप नष्ट हो गए। पांच वर्ष की आयु में उनकी माता की मृत्यु हो गई। अब वह एकदम अकेले हो गए। 🎻 माता की मृत्यु के पश्चात नारद ने अपना समस्त जीवन ईश्वर की भक्ति में लगाने का संकल्प लिया। कहते हैं एक दिन वह एक वृक्ष के नीचे ध्यान में बैठे थे तभी अचानक उन्हें भगवान की एक झलक दिखाई पड़ी जो तुरंत ही अदृश्य हो गई। इस घटना के बाद उस उनके मन में ईश्वर को जानने और उनके दर्शन करने की इच्छा और प्रबल हो गई। तभी अचानक आकाशवाणी हुई कि इस जन्म में उन्हें भगवान के दर्शन नहीं होंगे बल्कि अगले जन्म में वह उनके पार्षद के रूप उन्हें पुनः प्राप्त कर सकेगें। 🎻 समय आने पर यही बालक(नारद मुनि) ब्रह्मदेव के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए जो नारद मुनि के नाम से चारों ओर प्रसिद्ध हुए। देवर्षि नारद को श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष और योग जैसे कई शास्त्रों का प्रकांड विद्वान माना जाता है। N S Yadav..... नारद जयंती उत्सव और पूजा विधि :- 🎻 नारद मुनि भगवान विष्णु को अपना आराध्य मानते थे। उनकी भक्ति करते थे इसलिए नारद जयंती के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन करें। इसके बाद नारद मुनि की भी पूजा करें। गीता और दुर्गासप्त शती का पाठ करें। इस दिन भगवान विष्णु के मंदिर में भगवान श्री कृष्ण को बांसुरी भेट करें। अन्न और वस्त्रं का दान करें। इस दिन कई भक्त लोगों को ठंडा पानी भी पिलाते हैं। 🎻 ऋषि नारद आधुनिक दिन पत्रकार और जन संवाददाता का अग्रदूत है। इसलिए दिन को पत्रकार दिवस भी कहा जाता है और पूरे देश में इस रूप में मनाया जाता है। उन्हें संगीत वाद्य यंत्र वीना का आविष्कारक माना जाता है। उन्हें गंधर्व के प्रमुख नियुक्त किया गया है जो दिव्य संगीतकार थे। उत्तर भारत में इस अवसर पर बौद्धिक बैठकें, संगोष्ठियों और प्रार्थनाएं आयोजित की जाती हैं। इस दिन को आदर्श मानकर पत्रकार अपने आदर्शों का पालन करने, समाज के लोगों के प्रति दृष्टिकोण और जन कल्याण की दिशा में लक्ष्य रखने का प्रण करते हैं। ©N S Yadav GoldMine #boat नारदजी विष्णु भगवान के परम भक्तों में से एक माने जाते हैं आइये विस्तार से जानिए !!🌲🌲 {Bolo Ji Radhey Radhey} नारद जयंती :- 🎻 नारदजी वि