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Bhupendra Rawat
पर्वतों में जिसका वास है आभूषण उसका शेषनाग है गंगा जिसकी चोटी पर विराज है भोले शंकरा वो, शंभू विश्वनाथ है ©Bhupendra Rawat पर्वतों में जिसका वास है आभूषण उसका शेषनाग है गंगा जिसकी चोटी पर विराज है भोले शंकरा वो, शंभू विश्वनाथ है #Shiv
Divyanshu Pathak
ओउम् नमः शम्भवाय च मयो भवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।। यजुर्वेद अ०-16 मंत्र- 41 हे शिव। आपके व्यापक स्वरूप जो सुख देने वाला और मंगलकारी है। मैं प्रणाम करता हूँ। ओउम् नमः शम्भवाय च मयो भवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।। यजुर्वेद अ०-16 मंत्र- 41 हे शिव। आपके व्यापक स्वरूप
Divyanshu Pathak
शिवं शंकरमीशानं द्वादशार्द्धं त्रिलोचनम्। उमायासहितं देवं शिवमावाहयाम्यहम्।। OPEN FOR COLLAB✨ #ATlordshivabg • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ♥️ Adorn this beautiful bg with your soulful words.✨ • Must use has
N S Yadav GoldMine
मैहर माता का यह प्राचीन मंदिर माँ शारदा देवी की पूजा अर्चना और उनके चमत्कारों के लिए जाना जाता है पढ़िए विस्तार से !! 🔮🔮 {Bolo Ji Radhey Radhey} {जय माँ अम्बे, जय जगदम्बे} माँ शारदा मंदिर :-माँ शारदा मंदिर मैहर माता मध्य प्रदेश. 🎪 मैहर माता का मंदिर मध्य प्रदेश राज्य के सतना जिले के मैहर शहर में स्थित है। मैहर माता का यह प्राचीन मंदिर माँ शारदा देवी की पूजा अर्चना और उनके चमत्कारों के लिए जाना जाता है। त्रिकुटी की सबसे उंची पहाड़ी पर स्थित मैहर को भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए भी जाना जाता है। मैहर माता मंदिर की सबसे खास बात यह हैं कि देवी शारदा का यह मंदिर भारत में स्थित एक मात्र मंदिर हैं। मैहर माता मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हैं, देवी दुर्गा और देवी सरस्वती यहां भक्तो को दर्शन देती हैं। भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक मैहर माता मंदिर उत्तर भारतीय मंदिर को आमतौर पर शारदा देवी के रूप में जाना जाता है। 🎪 मध्य प्रदेश में स्थित मैहर देवी मंदिर हिंदू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं को समर्पित पवित्र स्थलों में से एक है। मैहर माता मंदिर को शारदा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। मंदिर परिसर में भगवान बाला गणपति, भगवान मुरुगा और आचार्य श्री शंकरा के मंदिर भी स्थापित है। मैहर माता मंदिर बहुत ही रमणीय और दर्शनीय स्थान है। मैहर माता मंदिर का इतिहास :-🎪 मैहर माता मंदिर के इतिहास के बारे में ऐसा माना जाता है की माँ शारदा का यह मंदिर आल्हा और उदल नामक दो योद्धाओं के द्वारा माँ शारदा देवी मदिर की खोज का प्रतीक है। योद्धा आल्हा और उदल ने राजा पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्घ किया था। इसी दौरान उन्होंने मंदिर की खोज की थी। ऐसा माना जाता है कि आल्हा ने मंदिर में 12 साल तक तप किया। जिससे मां ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था और माना जाता हैं कि आल्हा और उदल 900 साल से आज भी जीवित है। माना जाता हैं कि “मैहर माता मंदिर” में रात को आल्हा अब भी आते हैं। पट खुलने पर मंदिर के फर्श पर जल व देवी पर फूल अर्पित हुए दिखते है। 🎪 कुछ लोगों का यह मानना है कि मंदिर की स्थापना 502 विक्रम संवत में हुई थी। जबकि यहां मूर्ति की स्थापना 559 विक्रम संवत में हुई थी। मंदिर में सबसे पहले गुरु शुक्राचार्य ने पूजा की थी। महान इतिहासकार कनिंद्वम ने मंदिर के विषय में शोध कर बताया था कि प्राचीन काल में यहां पशु बलि दी जाती थी। बाद में 1922 में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने यहां पशुओं की बलि प्रतिबंधित कर दी। मैहर माता मंदिर की संरचना :-🎪 मैहर माता का मंदिर बहुत ही सुन्दर मंदिर है जिसकी स्थापना 502 विक्रम संबत में हुई थी। यह ऊँची पहाड़ी पर स्थित मंदिर है। यहाँ पर माँ शारदा की मूर्ति कुछ इस तरह से है जिसमे ऐसा प्रतीत होता है कि माँ एक हाथ में शहद का बर्तन पकड़े हुए सभी भक्तो की और देख के बड़ी दयालुता के साथ मुस्कुरा रही हैं और बाएं हाथ में पुस्तक लिए हुए है। मैहर माता मंदिर की कहानी :-🎪 मैहर माता मंदिर के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है कि ब्रह्मा जी के पुत्र राजा दक्ष प्रजापति ने कठिन तपस्या के बाद माँ दुर्गा को सती माता के रूप में अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त किया। माता सती ने भगवान शिवजी को अपने वर के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की और शिवजी को अपने पति के रूप में प्राप्त किया। माता सती के इस फैसले को राजा दक्ष प्रजापति ने नही माना क्योकि देवादिदेव महादेव राजा दक्ष को पसंद नही थे परन्तु फिर भी माता सती ने शिवजी से विवाह किया। एक बार राजा दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ करवाया जिसमे उन्होंने समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु महादेव को नही बुलाया। 🎪 देवी सती ने अपने पिता से भोलेनाथ को न बुलाने की वजह पूछी तो उन्होंने भोलनाथ का अपमान किया और अपशब्द कहे देवी सती अपने पति के इस अपमान को सह नहीं पाई और उन्होंने यज्ञ के हवन कुण्ड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। यह देख के शिवजी का तीसरा नेत्र खुल गया और उन्होंने देवी सती हवन कुण्ड से जलते हुए उठा लिया और तांडव करने लगे। जहां-जहां भी देवी सती के शरीर के भाग गिरे वहा-वहा शक्ति पीठ की स्थापना हुई। हालाकि यह माँ शारदा मंदिर शक्ति पीठ नही है परन्तु ऐसा माना जाता है की यहाँ पर माता सती के गले का हार गिरा था। इसलिए इस स्थान का नाम माई+हार से मिलके मैहर पड़ा । मैहर में कितनी सीढ़ियां हैं :-🎪 मैहर माता मंदिर में 1063 सीढियां हैं भक्तगण इन सीढ़ीयों सी चड़कर माता रानी के मंदिर में पहुंचते हैं और माता रानी के दर्शनों का लाभ उठाते हैं। वर्तमान में रोपवे सुविधा भी यहां उपलब्ध है। मैहर माता मंदिर कैसे पहुँचे :-🎪 मैहर माता मंदिर जाने के लिए आप फ्लाइट, ट्रेन और बस में से मैहर माता मंदिर कैसे पहुँचे :-🎪 मैहर माता मंदिर की यात्रा के लिए यदि आपने सड़क मार्ग का चुनाव किया है, तो हम आपको बता दें कि मैहर शहर सड़क मार्ग के माध्यम से आसपास के शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। जिसकी वजह से मैहर माता मंदिर तक सड़क मार्ग से जाने में आसानी होती हैं। मैहर बस स्टेशन सबसे नजदीकी स्टेशन है यहां से आप स्थानीय साधनों से मंदिर तक का सफ़र तय कर सकते हैं। ©N S Yadav GoldMine मैहर माता का यह प्राचीन मंदिर माँ शारदा देवी की पूजा अर्चना और उनके चमत्कारों के लिए जाना जाता है पढ़िए विस्तार से !! 🔮🔮 {Bolo Ji Radhey Radh
रामजी राजावत
Devanand Jadhav
🕉️ll शिवपंचाक्षर स्तोत्र ll🕉️ श्रावणी सोमवारची उपासना शिवपंचाक्षरी स्तोत्राने करा. शिवपंचाक्षरी स्तोत्राची रचना आदी शंकराचार्यांनी केली होती. नमः शिवायची पहिली पाच अक्षरे न, म, शि, वा आणि य यातून श्र्लोकांची रचना केली गेली आहे. या माध्यमातून शंकराचार्यांनी शिवशंकराचा महिमा विस्तृत करून दिला आहे, जो प्रत्यक्ष शिव शिवशंकरा समान आहे. श्लोक- नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै 'न' काराय नमः शिवायः॥ अर्थ :- ज्यांच्या गळ्यात सर्पमाला आहे, ज्यांना तीन डोळे आहेत, ज्यांची काया भस्माविलेपित आहे, दिशा ज्यांचे वस्त्र आहे, त्या अविनाशी महेश्वर, 'न' कार स्वरूप शिवशंकराला माझा नमस्कार असो. श्लोक- मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै 'म' काराय नमः शिवायः॥ अर्थ :- गंगाजल आणि चन्दनाने ज्यांचे स्नान झाले आहे, मंदार व इतर फुलांनी ज्यांची पुजा झाली आहे, त्या नंदीच्या अधिपती आणि प्रथम गणांचे स्वामी महेश्वर 'म' कार स्वरूप शिवशंकराला माझा नमस्कार असो. श्लोक- शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै 'शि' काराय नमः शिवायः॥ अर्थ :- जे कल्याण स्वरूप आहे, माता पार्वतीचे मुखकमल प्रसन्न करण्यासाठी जे सूर्य स्वरूप आहे, जे दक्ष राजाच्या यज्ञाचा नाश करणार आहे,ज्यांच्या ध्वजावर बैलाचे चिन्ह आहे, त्या शोभायमान नीलकंठ 'शि' कार स्वरूप शिवशंकराला माझा नमस्कार असो. श्लोक- वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय। चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै 'व' काराय नमः शिवायः॥ अर्थ :- वशिष्ठ, आगस्ती, व गौतम इत्यादी महान ऋषि मुनींनी तसेच इंद्रादी देवदेवतांनी ज्यांच्या मस्तकाची पुजा केली आहे त्या 'व' कार स्वरूप शिवशंकराला माझा नमस्कार असो. श्लोक- यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै 'य' काराय नमः शिवायः॥ अर्थ :- यक्षरूप धारण केलेल्या जटाधारी, ज्यांच्या हाती 'पिनाक' नावाचे धनुष्य आहे, व जे दिव्या सनातनी पुरुष आहे त्या दिंगबर देव 'य' कार स्वरूप शिवशंकराला माझा नमस्कार असो. श्लोक- पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥ अर्थ :- जो कोणी हा पवित्र पंचाक्षरी मंत्राचा जप भगवान श्री शिव शंकरा जवळबसून करीन, तो शिवलोकी प्राप्त होऊन तेथे शिवशंकरा बरोबर आनंदी होईल. || इति श्रीशिवपंञ्चाक्षरस्तोत्रं संपुर्ण || अनुवाद :- देवानंद जाधव jdevad@gmail.com 9892800137 ©Devanand Jadhav 🕉️ शिवपंचाक्षर स्तोत्र 🕉️ श्रावणी सोमवारची उपासना शिवपंचाक्षरी स्तोत्राने करा. शिवपंचाक्षरी स्तोत्राची रचना आदी शंकराचार्यांनी केली होती.