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Sandeep Lucky Guru
उनसे मत डरिये जो बहस करते हैं बल्कि उनसे डरिये जो छल करते हैं। ©Sandeep L Guru #education #शरीयत #रहस्य
~anshul
मोहब्बत हो या डाउन-लोडिंग अगर अधूरी रह जाए तो बहुत दुःख देती है। #अंशुल मोहब्बत हो या डाउन-लोडिंग अगर अधूरी रह जाए तो बहुत दुःख देती है। saheli shayer 🙂 Kaju Gautam Pooja Singh Shivangi Bist Heart beat..... 💞
Abdul Gaffar Ghurail
काश ग़र ना होती मोहब्बत की शरीयत में बेवफाई Abdul तो ना-जाने आज कितने ही बेटे-बेटिया अपने माँ-बाप से जुदा ना होते✍🏻✍🏻✍🏻Mr.Abdul✍🏻✍🏻✍🏻
Ravendra
अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
Asif Hindustani Official
कुरान ए पाक का जो हुक्म है उस पर चलेंगे हम, नबी की सुन्नतो से यार नागुफ्ता नहीं होगा, भले कानून चाहे लाख हो तेरे मगर सुन ले, शरीअत के किसी मसले पर समझौता नहीं होगा ! ©Asif Hindustani भले कानून चाहे लाख हो तेरे मगर सुन ले शरीयत के किसी मसले पर समझौता नहीं होगा ! #DiyaSalaai #AsifHindustani #nabiﷺ #MithilaKaShayar #Nojoto
Sunny chauhan
अयोध्या की गलियां SunnychauhaN शीर्षक मे ⬇️ काशी भी मुझमें, काबा भी मुझमें दरगाह के मन्नत का धागा भी मुझमें कान्हा तेरे चरणों का फूल भी मुझमें मस्जिद भी मुझमें, मंदिर भी मुझमें अल्लाह
Farid Alam
Naresh Chandra
जयहिंद दोस्तों अनुशीर्षक मे जरूर पढिये 🙏🏻धन्यवाद🙏🏻 ©Naresh Chandra *ठंडे दिमाग से पढ़ें और विषय की गंभीरता को समझें।* यदि कोई *मुस्लिम* व्यक्ति सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हो जाता है और उसकी मृत्यु के बाद श
Sachin Ratnaparkhe
ग़ज़ल अगर यहीं के हो ,तो इतना "डर" कैसे, मगर चोरी से घुसे हो तो ये तुम्हारा "घर" कैसे?? अगर तुम "अमनपसंद" हो तो इतनी "गदर" कैसे? जिसे खुद "खाक" कर रहे हो,वो तुम्हारा "शहर" कैसे?? कल तक सिर्फ कोहरा था,मेरे शहर की फ़िज़ा में, आज़ नफरत का धुआं है तो सुहानी "सहर" कैसे? इज़हार ए नाराज़ी करो आईन(constitution)की ज़द में, मगर गली कूंचों में, इतनी "मज़हबी लहर" कैसे? सिर्फ लहज़ा सख्त होता, तो हम चुप भी रह लेते, मगर तुम्हारे लफ़्ज़ों और नारों में, "जिहादी ज़हर" कैसे? सियासत से ख़िलाफ़त करो, हमे कोई गिला नही है, रियासत (Nation)से दग़ा होगी, तो हम करें "सबर" कैसे? अगर यहीँ के हो तो इतना "डर" कैसे? मगर चोरी से घुसे हो, तो ये तुम्हारा "घर" कैसे?? 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 :- अज्ञात यह ग़ज़ल मेरे द्वारा नहीं रची गई है मगर जिसने भी रची है उसका साभार। यह ग़ज़ल किसी एक धर्म विशेष के खिलाफ नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति पर कुठ