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Chandrakant Ghodeswar
आयुष्याचे कोडे चुकले अन् गरिबी नशिबी आली, कसे जगावे काही कळेना, कारण साली हि जिंदगी च झाट झाली.. कमाई चार पैशाची अन् "महागाई" राक्षस झाली, मर मर कष्ट करून हि शेवट ,हात मात्र खाली... कसे जगावे काही कळेना, कारण साली हि जिंदगी च झाट झाली.. शिक्षणाचा बाजार मांडला, आमचे होतात खिसे खाली, सरकारचीही फक्त खोटी आश्वासने मात्र कोणीच नाही वाली, कसे जगावे काही कळेना, कारण साली हि जिंदगी च झाट झाली.. विद्रोही कविता
Anamika Nautiyal
सिंक में रखे हुए आख़िरी झूठे प्याले के साथ सब्ज़ी कौन सी बने इस उधेड़बुन में फूलती रोटियों के बीच धीमी कभी तेज आँच पर स्वेटर पर ऊन से लेटेस्ट डिजाइन बनाते हुए कभी उलझे केशों को सँवारते हुए कभी जूडे़ में ही बंधे हुए घूँघट को सिर पर सरकाते दबे मुँह की बातें गालों पर अँगुलियों के निशान छुपाते इन्ही सबके बीच कहीं ना कहीं से जन्म ले ही लेती है गृहिणियों की कविता!! विद्रोही कविता #अनाम_ख़्याल #रात्रिख़्याल #गृहिणी #कविता
Bhimrao Tambe