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Deepak Sisodia
रंग रूप सब खिल उठता है , धूप पड़े जो यौवन ऊपर मस्तक स्वेद चमकता जैसे, मोती श्वेत झरे झर झर दीपक सिसोदिया ग्राम सुन्दरी
Ajay Kumar Dwivedi
शीर्षक - ब्रम्हाण्ड सुन्दरी मृत्यु। मृत्यु तो एक दिन आनी है, मृत्यु से इतनी दूरी क्यूँ। जीवन के पिछे भागे हम, है जीवन ये मजबूरी क्यूँ। मृत्यु हंसकर गले लगातीं, जीवन हाथ छुड़ाता है। फिर भी बना हुआ है जीवन, सबकें लिए जरूरी क्यूँ। जीवन के पिछे भागते हम, मृत्यु के आगे आते हैं। फिर भी न जानें क्यूँ मृत्यु से, इतना हम घबराते हैं। मृत्यु ही सत्य है जीवन का, है जीवन एक असत्य बड़ा। यह जानते हैं हम सब फिर भी, मन को अपने बहलाते हैं। यह जीवन एक धारावाहिक है, ईश्वर इसका निर्माता है। हम सब वैसे ही नाचते हैं, जैसा वो हमें नचाता है। हम सब तो एक अभिनेता है, है हम सबका निर्देशक वो। हैं जितने भी किरदार यहां, वह सबका भाग्यविधाता है। किरदार दिया जैसा हमको, वैसा किरदार निभाना है। उस निर्माता निर्देशक के, चरणों शीश नवाना है। किरदार छोड़कर जायेंगे, जब निर्माता वो चाहेगा। ब्रम्हाण्ड सुन्दरी मृत्यु को, हमें एक दिन गले लगाना है। अजय कुमार द्विवेदी #अजयकुमारव्दिवेदी शीर्षक - ब्रम्हाण्ड सुन्दरी मृत्यु।
vandana,s hobby & crafts
Samit Sharma
दि कु पां
गौर सरीर स्याम मन माहीं।कालकूट मुख पयमुख नाहीं॥ सहज टेढ़ अनुहरइ न तोही। नीचु मीचु सम देख न मोही।। . . . . . . बोले रामहि देइ निहोरा। बचउँ बिचारि बंधु लघु तोरा॥ मनु मलीन तनु सुंदर कैसें। बिष रस भरा कनक घटु जैसें॥4॥ 😂😂😂😂😂 #धोखेबाज #सुन्दरी #homour #YourQuoteAndMine Collaborating with शिवशक्ति साक्षी 🌻🥀
BinTu Galiyon
सन्त गरीब दास जी की वाणी से:- बीबी पड़दै रहे थी, ड्योडी लगती बाहर। अब गात उघाड़ै फिरती हैं, बन कुतिया बाजार। वे पड़दे की सुन्दरी, सुनांे संदेश
Pooran Bhatt
सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां , फुलन छै के बुरूंश ! जंगल जस जलि जां । सल्ल छ , दयार छ , पई अयांर छ , सबनाक फाडन में पुडनक भार छ , पै त्वि में दिलैकि आग , त्वि में छ ज्वानिक फाग , रगन में नयी ल्वै छ प्यारक खुमार छ । सारि दुनि में मेरी सू ज , लै क्वे न्हां , मेरि सू कैं रे त्योर फूल जै अत्ती माँ । काफल कुसुम्यारु छ , आरु छ , आँखोड़ छ , हिसालु , किलमोड़ त पिहल सुनुक तोड़ छ , पै त्वि में जीवन छ , मस्ती छ , पागलपन छ , फूलि बुंरुश ! त्योर जंगल में को जोड़ छ ? सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां , मेरि सू कैं रे त्योर फुलनक म' सुंहा ॥ - सुमित्रानंदन पन्त छाया वाद के आधार स्तम्भ पंत जी ने अपने जीवन काल मे अपनी मातृ बोली कुमाऊँनी मे सिर्फ एक ही कविता लिखी यहाँ भी प्रकृति सौंदर्य को शब्दों मे ढा