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sweta kumari
'साँवरी हूँ मैं' ............... कृष्ण-सा रंग,कृष्ण के संग बावरी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। घनानंद के प्रेम के पीर पर बलिहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। र्दुबुद्धि से उत्पन्न उसके बीज का संहारकारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। कदंब की अनोखी डाली-सी चमत्कारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। प्रकृति की नैसर्गिक छटा-सी मनोहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। संपूर्ण जगत में प्रेम की संचारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। मानव की मानवीयता का प्रतिहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। श्वेता कुमारी विशुनपूर(गायत्री नगर),धनबाद झारखंड। ©sweta kumari छायावाद को स्पर्श करती कविता #one session
siddharth vaidya
कमल कोश में विश्राम मिथ्या मृत्यु का अपमान है इस तुक्ष आकर्षण के लिए किस त्याग का अभिमान है सिद्धार्थ वैद्य #छायावाद की ओर
जगदीश्वर ' तश्नगी'
शशि- चांदनी -------- शशि किरणों में, मधुर गीत की राग,जैसे निर्झरिणी में नीर का अनुराग, अमा में चंद्र का विधान ,कृष्ण पक्ष में कला महान स्वबस बस कर बसु प्रेम जताए ,सुरपुर सी दुनिया बसाए। दुग्ध धवल सा रूप क्षण पाए ,रेशमी विभा में को कोई आए। रका में रजनीश मयुंखे , रजनी वासर जानाती। अवनि पर आकर रजत सी ,राज कन को आभा बनाती। अंबु नवीन सी वह धनी ,सभ्य जीवन जैसे सनी। रैन में चंद्र चांदनी,उजाला की रानी बनी। व्योम में मलयाज सस्मित हुआ , शशि चांदनी में सुधा भरा। चांदनी में जो अभिषेक किया ,सकल रूप शशि अमृत पिया। चारों तरफ़ आभा की लाली ,कृष्ण वस्तु पर लगे निराली। वह क्षणदा की दीप्ति साधनी ,बनी शशि की चांदनी। - जगदीश्वर कुशवाहा उत्कृष्ट भाषा शैली में "शशि- चांदनी" छायावाद की रचना की तरह with Ritisha Jain
Kishan Gupta
किचन की रानी, तू पसीने से लतपत, पंखा बना, मुझे घुमाये जा रही हो,, चाय कब तक यूँ ही, फीकी पिलाओगी, इलायची के इंतजार में, अदरक पीसे जा रही हो। ~किशन गुप्ता #कविता #कविता #
Awanish Singh
दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। पार जाऊँगा मेरा साहस, कभी हारा नहीं है। जो मिटा अस्तित्व दे, ऐसी कोई धारा नहीं है ।। कौन रोकेगा स्वयं तूफान, थककर रुक गये हैं । हर लहर मेरा किनारा, ध्येय तक बढ़ता रहूँगा।। दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। तोड़ दी अवरोध की सारी, शिलाएँ एक क्षण में । मैं धरा का प्यार मुझको, स्नेह देते सब डगर में।। शीत वर्षा और आतप कर, न पाये क्षीण गति को। बिजलियों की कौंध में भी, पंथ गढ़ता ही रहूँगा।। दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। ©Awanish Singh (AK Sir) #कविता #कविता
Balu Khaire
भीगी हुई आँखोका मंजर न मिलेगा, घर छोडकर मत जाओ कही घर ना मिलेगा। फिर याद बहुत आएगी जुल्फो की शाम, जब धूप मे साया कोई सर न मिलेगा। आंसू को काभि ओस का कतरा न समझना, ऐसा तुम्हे चाहत का समुदर ना मिलेगा। इस ख्वाब के माहोल मे बे-ख्वाब है आँखे, जब निंद बहुत आएगी बिस्तर ना मिलेगा। ये सोचलो आखरी साया है मोहब्बत, इस दरसे उठोगे तो कोई दर ना मिलेगा ©Balu Khaire कविता कविता #lonely
vijaysinh
writing quotes in hindi मन पीढ़ा से बैचेन हो जाता है, तब जा के क़लम कागज स्याही रोता है। क़लम खुद का नहीं,औरों का दुख रोता हैं। हर पन्ने पर क्रांति की बीज बोता है। दुनिया में सब से ज्यादा दुखी क़लम हैं, हर वक़्त खून के आंसू रोता है, खून रूपांतर चंद लकीरों में होता है। अब लोक उसे अल्फ़ाज़ समजते हैं पर वह अल्फ़ाज़ नहीं लब होते हैं जो क़लम के दिलसे निकले होते है। #कविता #क़लम कविता