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Vikas Sharma Shivaaya'
✒️📇जीवन की पाठशाला 🖋️ 🙏माँ सरस्वती के आशीर्वाद एवं सतगुरु की प्रेरणा से मेरी कलम द्वारा स्वरचित मेरी 18th कविता वीणा वादिनी माँ सरस्वती को समर्पित 🌹 कृपया मेरे You Tube Channel (यू ट्यूब चैनल) को like( लाइक) करें पसंद आने पर subscribe (सब्सक्राइब) करें और अपनी comments (स्पष्ट टिपण्णी) देकर मार्गदर्शन करें ,नित प्रतिदिन इतिहास -वर्तमान नई रोचक जानकारियां -सकारात्मक क्वोट्स पढें ..., अगर आप भी कोई रोचक जानकारी ,सच्ची घटना या कुछ और मेरे यू ट्यूब चैनल के माध्यम से देना चाहें तो संपर्क करें : https://youtu.be/LEL7G1vLO1Y विषय - ठिठुरन ये रातें ये मौसम नदी का किनारा और ये ठिठुरन मेरे हाथों में आया जो हाथ तुम्हारा कम हुई कुछ ठिठुरन -1 सुबह उठते रजाई हटाते ही शरीर को छु गई ठिठुरन जब पेस्ट के लिए दिया हाथ पानी में तो मत पूछो ठिठुरन -2 जब गया वो नित्य क्रम वास्ते -जिस तरह से आई उसकी आवाज़ तो समझ आई उसकी ठिठुरन -3 चारों ऒर कोहरा और धुन्ध की चादर सर्द तीखी हवाएं समाई शरीर में तो बदन में चढ़ गई ठिठुरन -4 मुझे नाज है मेरे अन्नदाता किसान भाई तुम पर अपना फर्ज /कर्म निभाने से ना रोक पाई तुम्हें कोई ठिठुरन -5 चाय के प्याले से निकलता धुआं चाय खत्म होते ही फिर चढ़ गई एक नई ठिठुरन -6 अमीरों ने चलाया हीटर तो भी ना रुक पाई ठिठुरन आम आदमी ने चौराहे पर जलाया अलाव तो गरमाई ठिठुरन -7 एक नवविवाहित जोड़े का है ख्वाब ये ठिठुरन एक नया फूल उगाती है जनाब ये ठिठुरन -8 गरीबों ने जलाये कुछ अखबार तो भगाई ये ठिठुरन पैसे ने छलकाए दो जाम तो भगाई ये ठिठुरन -9 कहीं सरसों का साग मक्की की रोटी और ये ठिठुरन कहीं बेजुबान की बोटी संग रोटी और ये ठिठुरन -10 पैसे वाले के कई इंतजामात ना कोई ठिठुरन गरीब की हालत कर गई ख़राब हाय ये ठिठुरन -11 सलाम करता हूँ मैं तुझे माँ भारती के लाल क्यूंकि माइनस तापमान में भी तुझे हिला ना पाई ये ठिठुरन -12 बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा 🙏सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरुरी ...! 🌹सुप्रभात🙏 स्वरचित एवं स्वमौलिक "🔱विकास शर्मा'शिवाया '"🔱 जयपुर-राजस्थान https://youtu.be/LEL7G1vLO1Y ©Vikas Sharma Shivaaya' ✒️📇जीवन की पाठशाला 🖋️ 🙏माँ सरस्वती के आशीर्वाद एवं सतगुरु की प्रेरणा से मेरी कलम द्वारा स्वरचित मेरी 18th कविता वीणा वादिनी माँ सरस्वती को
✒️📇जीवन की पाठशाला 🖋️ 🙏माँ सरस्वती के आशीर्वाद एवं सतगुरु की प्रेरणा से मेरी कलम द्वारा स्वरचित मेरी 18th कविता वीणा वादिनी माँ सरस्वती को
read moreManesh Bhuriya
#जोहार चूल्हे की रोटी खाने का और बनाने का अलग ही मजा है..🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🥰 शेरनी की भूख और 😎आदिवासी का लूक दोनों ही जानलेवा है ,,, ©Manesh Bhuriya चूल्हे की रोटी
Dr Upama Singh
"रोटी की मजबूरी" बहुत कुछ लिखा प्यार और प्यार के अभिव्यक्ति पर, पर आज सोच रही हूं लिखूं किसी नई परिस्थिति पर इसलिए लिख रही हूं आज कुछ नया पसंद अगर आए तो दुआ मुझे देना आज मैंने बारिश में गरीबी को भीगते देखा दो वक्त की रोटी के लिए मजदूरी करते देखा क्या करोना मारेगा इनको, गरीबी की विषम परिस्थिति पहले से ही है मारी मन इनका विचलित नहीं होता है क्या करेगा महामारी रोटी की कीमत पाने के लिए अपनी जान जोखिम में है डाली दो वक्त की रोटी के लिए उठा के चल दिए ठेला पहुंच गए लेकर लाश जहां लगा था शवों का मेला। "रोटी की मजबूरी"
"रोटी की मजबूरी"
read moreAuthor Sanjay Kaushik (YouTuber)
गटर में रोटी ©Sanjay Kaushik (YouTuber) रोटी की कीमत
रोटी की कीमत #thought
read moreNeelam bhola
ज्यादा की चाह में थोड़ा मत खो, जो है पास संभाल,पीछे मत रो, तीन वक्त खाना तो मजदूर भी खाता है, तू क्यों दिखावे के लिए चांदी के थाल सजाता है, दूसरे की थाली पे नज़र,अपना निवाला भूल जाता है, प्यास पानी से ही बुझती है जानवर की भी, क्या वक्त है तू पानी की कीमत चुकाता है, मेहनत कर पानी चख,कुछ अलग मजा आता है, तिनके चुन चिड़िया घोसले बनाती है, मिट्टी की झोपड़ी महलों से भाती है, क्यों तू किसी के महल को आह! लगाता है, सोना गहना,सब क्षणभंगुर है सारे, ख्याति रहती है,ये सब छूट जाता है, ये चीजें भला कौन साथ ले जाता है, कर अपनी मेहनत पर यकीन, क्यों दूसरे की मेहनत पर नजर लगाता है, कह गए हैं संत-जितनी चादर पैर उतने फैलाओ, संतुष्टि की रोटी हो,चाहे एक वक्त ही खाओ!!!! -नीलम भोला संतुष्टि की रोटी
संतुष्टि की रोटी #कविता
read moreSaurabh Baurai
किल्लत रोटी की तब जानी जब रोटी ने नाता तोड़ा। कीमत खुद की तब पहचानी जब अपनो ने हाथ ये छोड़ा।। भटक रहे थे खाली पेट तो अश्रुनीर से प्यास बुझाई। थाम रहे थे जब खुद को तो हर दहलीज़ से ठोकर पाई।। गगन में उड़ना चाहा जब भी जंज़ीरों से लिपट गए। छाव की चाह में जब भी बैठें वृक्ष भी बहुधा सिमट गए।। दर्द भी पहले आंशू बनकर हर क्षण टपका करते थे। पूरे जग से होकर अक्सर मुझपर अटका करते थे।। विवश का आंगन छोड़ के इक दिन पृथक सा बनना ठान लिया। झूठे गणित के विश्व मे मैंने खुद को शून्य सा मान लिया।। ना जाने क्यों अब हर कोई मेरा साथ यूँ चाहते है। जग के बड़े अंक भी देखो शून्य से जुड़ना चाहते है।। जान गया हूँ जग से इतना रक्त तो यहां बहाना है। यहाँ से पाई हर रोटी का मोल ये सबको चुकाना हैं।। रोटी की कीमत
रोटी की कीमत #कविता
read moreDr Upama Singh
"रोटी की मजबूरी" बहुत कुछ लिखा प्यार और प्यार के अभिव्यक्ति पर, पर आज सोच रही हूं लिखूं किसी नई परिस्थिति पर इसलिए लिख रही हूं आज कुछ नया पसंद अगर आए तो दुआ मुझे देना आज मैंने बारिश में गरीबी को भीगते देखा दो वक्त की रोटी के लिए मजदूरी करते देखा क्या करोना मारेगा इनको, गरीबी की विषम परिस्थिति पहले से ही है मारी मन इनका विचलित नहीं होता है क्या करेगा महामारी रोटी की कीमत पाने के लिए अपनी जान जोखिम में है डाली दो वक्त की रोटी के लिए उठा के चल दिए ठेला पहुंच गए लेकर लाश जहां लगा था शवों का मेला। "रोटी की मजबूरी"
"रोटी की मजबूरी"
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