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Parasram Arora
प्रेम मे होना. विलाप मे होने का. आमंत्रण है प्रेम और कुछ नहीं प्रतिक्षा का अनंत विस्तार है ©Parasram Arora प्रेम ( संकलित दीपक अरोड़ा की कविता से )
जिंदगी का जादू
छाया से दूर हुआ तो आंचल का मूल्य मैं जाना जब तपी ये दिल की धरती बादल का मूल्य मैं जाना वो छाया वो बदली बस एक जगह मिलती है सब मिलता दूर शहर में बस मां ही नहीं मिलती है पावस रजनी में जुगनू भट्ट के जैसे जंगल में पूछे राम जी वोन से कैसे हैं सब महल में वन में ना कोई दुख है पुण्य ज्योति जलती है देव मुनि सब मिलते बस मां ही नहीं मिलती है @गौतम माँ पर कविता