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Parasram Arora
ज़ब मानवता प्रकाश की नदी बनकर सीमित से असीमित की तरफ या प्रकाश की नदी.बन कर अनादि से अनंत क़ि ओर प्रवाहशील होकर बहने लगती है तो लगता है मानव ने सभ्यता की आकाशगंगा को पार कर लिया है और उस कल्पवृक्ष को भी खोज लिया है जो मानव की हर ख्वाहिश को पूरा करने क़े लिए कटिबद्ध है ©Parasram Arora #सभ्यता की आकाशगंगा......
#सभ्यता की आकाशगंगा......
read moreDeepak satyarthi
।।पुरानी खोज।। आजकल हमारे देश मे लोग संस्कृति और सभ्यता को भूल रहे है मिट्टी को दिए छोड़ कर कसा और पीतल की दिया जला रहे है हम अपना संस्कृति पर मध्य नजर डाले तो मिट्टी ही खाना कैसे मिट्टी से अनाज की उत्पत्ति और उपज इतना ही नही मिट्टी ही स्वर्ग वाश मिट्टी ही महल सारी दुनिया मिट्टी ही मिट्टी साहब तो अपना सभ्यता और संस्कृति को जिंदा रखिये भारत की सभ्यता
भारत की सभ्यता
read moreManmohan Dheer
पटक पटक के फोड़ डाला समूचा नारियल उसने भी फिर दांत से खुरच के कभी और नाखूनों से निकाल के खाने लगा था धो लिए वो टुकड़े उसने जो उचक गए थे इधर उधर बाद में खाने को रख चला गया बहुत कुछ सीख गया था वो इंसानों को देख समझ के या हम ही नहीं बढ़ पाए हैं एक भी कदम आगे की ओर जिसे सभ्यता कहते हैं .... सभ्यता
सभ्यता
read moreNitoo Yadav
एक अच्छी society हमेशा एक अच्छी सभ्यता को जन्म देती है।। writer Nitoo yadav. ©Nitoo Yadav सभ्यता@#
सभ्यता@# #विचार
read moreSachin Ratnaparkhe
ग़ज़ल मेरा बोझ है की बस बढ़ता ही जा रहा है, भरोसा ज़िन्दगी से उतरता ही जा रहा है। अब रात भी खत्म होने को आई है मगर, दूर क्षितिज पे सूरज चड़ता ही जा रहा है। सब कुछ तो हो रहा है नज़रों के सामने, फिर भी झूठा इतिहास गड़ता ही जा रहा है। ज़माना बिक चुका अपनी जान की खातिर, दो कौड़ी में सौदा तय करता ही जा रहा है। कुछ भी न बचेगा अंत तक इस तरह तो, सभ्यता का वक्त अब ढलता ही जा रहा है। की थी नाकामयाब कोशिश सब संभालने की, मगर मरने वाला भी बेमौत मरता ही जा रहा है। #सभ्यता
dilip khan anpadh
सभ्यता ***** सभ्यता के कुछ बीज उर्वर ज़मीं पर फेंके थे आदम और हौवा ने उन्हें भनक भी ना लगी वो कब पनपा सघन हुआ और सघन फिर निगलने लगा अपने छांव में उगने वाले तमाम अन्य बिजौद्भव को। एक तरफ उसकी सघन छांव में बंदर से इंसान का सफर तय हुआ दूसरी तरफ उसकी छांव ने मिटाया न जाने और कितनी सभ्यताओं को जो फलित हुआ था आदम और हौवा जैसे ही किसी अन्य फरिश्ते से। आदम और हौवा दोनो रोए होंगे जब उसने देखा होगा तृष्णा,द्वेष और अनिष्ट का फलन होते उस कल्प-बृक्ष पर फिर दम तोड़ दिया होगा और दफन कर दिया होगा अपने प्रेम चिन्ह को जो पोषित करते होंगे ऐसी सभ्यताओं को। इस आस में कि इनके बीज से और न पनप सके इससे बदतर कुछ और..... दिलीप कुमार खाँ"""अनपढ़"" #सभ्यता
Sangam Ki Sargam
बोलना व प्रतिक्रिया देना भी आवश्यक है परन्तु संयम व सभ्यता का दामन नही छूटना चाहिए। कोई मेरा लाख बुरा कर दे, मैं बदले की भावना नहीं रखती। #सभ्यता