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Royal thinking
जंगल-जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को... कितना मुश्किल है तय करना खुद से खुद की दूरी को... जंगल-जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को
Ajay Daanav
हृदय से उपजे विचार हो तुम शब्दों का मेरे श्रृंगार हो तुम करती हुई झंकृत मन-वीणा सातों सुरों की झनकार हो तुम हूं मैं कविता छंदों में गढ़ी कविता का मेरी सार हो तुम हृदय से उपजे विचार हो तुम प्यार को परिभाषित नहीं किया जा सकता।
Akash Chaudhary
प्रेम को परिभाषित नहीं करते पात गन्दी रेत से लथपथ वो पत्ते जो कभी वृक्ष के वक्ष से कलाएं करते थे, कितनी ही चिड़िया तुमको छूकर गुजरी, मैं तुम पर आज ढूंढने बैठ गया उनके पैरों के निशान, क्या मन नहीं है तुम्हारा तुम उनको परिभाषित करो, क्या नहीं बताना चाहते मुझे अपने प्रेम के विषय में, तुम्हारी व्यथा और प्रेम से परिचित हूं मैं समझ रहा हूं पात तुम्हे मैं, तुम्हे पुरानी चिड़िया की याद आयी होगी, चलो मैं अपने दरवाजे से इंतजार में हूं जब चाहना तब दास्तां सुनाना......, तुम्हारा मौन समझता हूं मैं, तुम बता रहे हो शायद मुझे प्रेम कभी शब्दों से नहीं किया जाता वो होता है बस ,बस होता है।। ©Akash Chaudhary प्रेम को परिभाषित नही किया जाता।।❤️
Shashank मणि Yadava "सनम"
भले बड़े बन जाओ यारों, लेकिन माँ को याद रखो।। मंदिर जाने से बेहतर है, माँ को अपने पास रखो।। माँ के प्यार, दुआ से बढ़कर, न कोई भगवान है।। जिसने माँ को मान दिया, वो सबसे सुखी इंसान है।। प्रभु पूजा की ख्वाहिश यारों, जब भी मन में लाता हूँ।। सच कहता हूँ यारों तब, मंदिर मस्जिद न जाता हूँ।। अपनी माँ की ममता के, आँचल में मैं सो जाता हूँ।। ©Shashank मणि Yadava "सनम" #Mother's love,,,,, माँ को परिभाषित करती हुई पंक्तियाँ
Dharmendra Azad
एक शे'र- सड़क जाती है जो जंगल से होकर उसी से फिर वो जंगल भी गुजरता @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले "आज़ाद" #जंगल
prathamesh zore
मकानों के जंगल मे एक पौधा अपना हो तुटी हुई छत, कर कर ता पंखा, जली हुई बत्ती, और निंदो मे एक सपना हो.... #जंगल
Randeep Yagyik
रणदीप का प्रणाम तुम जंगल काटो वहां शहर वसा दो तुम कहते हो न जंगलों में असभ्यता है याद है..................? राम ने वहां मान पाया जंगल से ही सभ्यता का सबको पाठ पढ़ाया जंगल नहीं होगा तब वनवास नहीं होगा अतः तब फिरसे कोई राम नहीं होगा ! - रणदीप 'पुष्पवीर' ©Randeep Yagyik " जंगल"