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Saurav Das
एक दाग है जो सिने में छूपाया है! ये सराहना देने कौन आया है? जिसे मालूम नहीं संघर्ष का मतलब! वो ज़िन्दगी को परिभाषित करने आया है!! ©Saurav Das #ज़िन्दगी #परिभाषित #Light
Lovely Soni
चंचल सी हुँ मै , थोडी शोख सी हुँ मैं , हाँ थोडी - थोडी निर्मल नदी सी हुँ मैं , गंभीर सी हुँ मैं , थोडी दृढ़ सी हुँ मैं , हाँ थोडी - थोडी चट्टान सी हुँ मैं , नाजुक सी हुँ मैं , थोडी कठोर सी हुँ मैं , हाँ थोडी - थोडी काँटो मे खिली गुलाब सी हुँ मैं , माँ हुँ , बेटी हुँ , बहन हुँ , पत्नी हुँ , हाँ थोडी - थोडी प्रेमिका सी हुँ मैं , विशाल सी हुँ मैं , थोड़ी उदार सी हुँ मैं , हाँ थोडी - थोडी नीले आँसमाँ सी हुँ मैं , पूज्नीय हूँ , वंदनीय हुँ , जननी हुँ मैं , हाँ थोडी - थोडी उस खुदा की मुरत सी हुँ मैं ...।।। #हाँ #प्यार #को #परिभाषित #करने #वाली #नारी #हुँ #मैं ©Lovely Sony® #life® #Happiness
life® #Happiness
read moreSaurav Das
मेरे साथ मुस्कुराते हुए अपने गम को छूपा लेती है, दूसरों की नज़र न लगे,अपने आचल में छूपा लेती है! हमेशा जीत माँ की हुई है हर परिस्थिति से लड़ने में! लाखों,करोड़ो शब्द कम पड़ जाएंगे, माँ को परिभाषित करने में!! ©Saurav Das #शब्द #कम #है #माँ #को #परिभाषित #करने_में #माँ_दिवस्_की_हर्दिक
Vibhooti Gondavi.
कैसे लिखूं, माॅ पर, निःशब्द हो जाता हूं मैं, ज्ञान शून्य हो जाता हूं मैं । कैसे लिखूं, माॅ पर, कोई शब्द ही नही, जो माॅ को परिभाषित कर सके । कैसे लिखूं, माॅ पर, माॅ के त्याग को, कोई परिभाषित कर सकता नही । कैसे लिखूं, माॅ पर, माॅ के दर्द को, कोई परिभाषित कर सकता नही । माॅ वो कल्पवृक्ष है, जिसकी छांव में ही ये जीवन गुलजार है, नही तो ये जीवन, बेजान है । --विभूति गोण्डवी 7800044130 #मॉ
Anupama Mishra
मां क्या कहूं तेरे बारे में.... मेरे शब्दों के समन्दर में, एक भी शब्द ऐसा भी है जिससे मैं तुझे परिभाषित कर पाऊ, तेरा मेरे लिए उस चिंता को, उस फिकर को परिभाषित कर पाऊ, बस इतना कहूंगी की, तू नितांत मम्मत्व की सागर है, जो अपने मम्मत्व रूपी अमृत, से हमे सदैव सींचती रहती है...... मां का प्यार एक अथाह सागर है, जो कभी कम नही होता!!
मां का प्यार एक अथाह सागर है, जो कभी कम नही होता!!
read moreRamesh Singh
हृदय वेदना का शब्दों में जब जब भी उत्थान हुआ। अंतर्मन ने देखा जग को तब कवि का निर्माण हुआ।। , तन से निश्छल मन से निश्छल होकर कवि ने क्या पाया। तन को विह्वल मन को विह्वल कर के कवि ने क्या पाया।। , वर्षो का तप कठिन परीक्षा, निरुद्देश्य ही पार किया। कण कण में जो भाव छिपे थे कवि ने उन्हें आधार किया।। , सतत कर्म की परिभाषा को परिभाषित करते करते। चिर वियोग या मनो योग को परिभाषित करते करते।। , लिख डाले अध्याय कई पर उनको न अभिमान हुआ। अंतर्मन ने देखा जग को तब कवि का निर्माण हुआ।। , विपदा बाधा देखी उसनें जीवन से संघर्ष किया। समय चक्र ने तब जाकर के भावों को उत्कर्ष किया।। , अपने क्रंदन और रुदन को शब्दों में सीते सीते। अश्रु पूरित नयनों के ही विप्लव में जीते जीते।। , स्वयं हारकर नई कहानी और अमरता लिख डाली। असफलता को देखा उसने और सफलता लिख डाली।। , नित नित नए आयामों पर भी चर्चा खूब निभाई थी। अनुभव अनुभव अनुभव अनुभव गाढ़ी बड़ी कमाई थी।। , चला गया जग से वो जब ,तब शब्दों से यशगान हुआ। अंतर्मन ने देखा जग को तब कवि का निर्माण हुआ।।
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