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Satish Deshmukh
लोक मला कुत्रा म्हणाया लागले ! सुधारणेला खत्रा म्हणाया लागले ! एंकातलो मी पाहुनिया झूंड त्यांचे धाडसाला खत्रा म्हणाया लागले ! समविचारी लोक काही भेटले चळवळीला जत्रा म्हणाया लागले ! शेवटीला सफल झालो यत्न करुनी वैरी जुने मित्रा म्हणाया लागले ! सतीश देशमुख शेंबाळपिंप्री. ©Satish Deshmukh कुत्रा
Satish Deshmukh
लोक मला कुत्रा म्हणाया लागले ! सुधारणेला खत्रा म्हणाया लागले ! एकांतलो मी पाहूनिया झूंड त्यांचे धाडसाला खत्रा म्हणाया लागले ! समविचारी लोक काही भेटले चळवळीला जत्रा म्हणाया लागले ! शेवटीला सफल झालो यत्न करुनी वैरी जूणे मित्रा म्हणाया लागले ! सतीश देशमुख शेंबाळपिंप्री,ता.पसद ©Satish Deshmukh कुत्रा हा
Krishna Kumar
| लोभी दरजी | | लोभी दरजी | एक था दरजी, एक थी दरजिन। दोनों लोभी थे। उनके घर कोई मेहमान आता, तो उन्हें लगता कि कोई आफत आ गई। एक बार उनके घर दो मेहमान आए। दरजी के मन में फिक्र हो गई। उसने सोचा कि ऐसी कोई तरकीब चाहिए कि ये मेहमान यहाँ से चले जाएं। दरजी ने घर के अन्दर जाकर दरजिन से कहा, "सुनो, जब मैं तुमको गालियां दूं, तो जवाब में तुम भी मुझे गालियां देना। और जब मैं अपना गज लेकर तुम्हें मारने दौडू़ तो तुम आटे वाली मटकी लेकर घर के बाहर निकल जाना। मैं तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ूंगा। मेहमान समझ जायेंगे कि इस घर में झगड़ा है, और वे वापस चले जाएंगे।" दरजिन बोली, "अच्छी बात है।" कुछ देर के बाद दरजी दुकान में बैठा-बैठा दरजिन को गालियां देने लगा। जवाब में दरजिन ने भी गालियां दीं। दरजी गज लेकर दौड़ा। दरजिन ने आटे वाली मटकी उठाई और भाग खड़ी हुई। मेहमान सोचने लगे, "लगता है यह दरजी लोभी है। यह हमको खिलाना नहीं चाहता, इसलिए यह सारा नाटक कर रहा है। लेकिन हम इसे छोड़ेंगे नहीं। चलो, हम पहली मंजिल पर चलें और वहां जाकर-सो जाएं। मेहमान ऊपर जाकर सो गए। यह मानकर कि मेहमान चले गए होंगे, कुछ देर के बाद दरजी और दरजिन दोनों घर लौटे। मेहमानों को घर में न देखकर दरजी बहुत खुश हुआ और बोला, "अच्छा हुआ बला टली।" फिर दरजी और दरजिन दोनों एक-दूसरे की तारीफ़ करने लगे। दरजी बोला, "मैं कितना होशियार हूं कि गज लेकर दौड़ा!" दरजिन बोली, "मैं कितनी फुरतीली हूं कि मटकी लेकर भागी।" मेहमानों ने बात सुनी, तो वे ऊपर से ही बोले, "और हम कितने चतुर हैं कि ऊपर आराम से सोए हैं।" सुनकर दरजी-दरजिन दोनों खिसिया गए। उन्होंने मेहमानों को नीचे बुला लिया और अच्छी तरह खिला-पिलाकर बिदा किया। ©Krishna Kumar लोभी दरजी
Shakuntala Sharma
पूजा की शादी नजदीक थी और उसके बडे भाई को दहेज की रकम का इंतजाम करना था। लड़के वाले दहेज में मोटी रकम मांग रहें थे। और पूजा भी हो उसी लड़के से प्यार करती थी। आखिर पूजा का भाई मजबूर था । वह अपनी बहन की खुशिया ही चाहता है । पर वह यह भी जानता था । कि दहेज के लोभी लोग पूजा को कभी खुश नही रख पायेंगे । पूजा के बडे भाई ने लाख कोशिश की पर दहेज की रकम का इंतजाम नही कर पाया । अतः में पूजा के बड़े भाई ने हताश होकर कहा कि में दहेज के लोभी लोगों को अपनी बहन का हाथ नही दे सकता। चाह मेरी बहन कँवारी क्यो ना रहे जाये । ©Shakuntala Sharma # दहेज के लोभी लोगों को में अपनी बहन नही दे सकता ।
vishnu prabhakar singh
बड़े लोभी राजनीति के दांव खेलते हैं लक्ष्य पर रहते हुए बदलाव की आस में जूझते और शोध करते हैं अपनी परवाह नहीं करते परिणाम से नहीं डरते आवश्यक नीति बनाते हैं जो जनता चाहती हो निभाते हैं बहुआयामी आचरण रखते हैं संविधान को झखते हैं कानूनची होते हैं उदाहरण बन जाते हैं लोभ में अंधे हो, बापू कहलाते हैं। कुछ लोभी सिर्फ पैसे बनाते हैं। #विप्रणु #yqdidi #yqbaba #yqhindi #inspiration #politics
maddylines
यूँ हीं नहीं मुक्कदर मेरा मर रहा था वो कहाँ तुमसे आगे निकलने की कर रहा था। अख्ज मुकर्रर किया गया मुकद्दर मेरा अदीबों का अदम प्रेम था जो बरस रहा था अबद के अब्र छा रहे थे चारो तरफ तब भी अपनी किस्मत के अश्क से तुम्हारी तकदीर की मिन्नत मसक्कत कर रहा था।। अख्ज ...लोभी अदीबों... विद्वान अदम...आभाव या शून्य अबद...अनन्तकाल अब्र..बादल