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Sonal Panwar
ईश्वर ने जब सृष्टि की रचना की तब जाति, धर्म, ऊंच-नीच इन सबसे परे उस ईश्वर ने एक मनुष्य को उसका अस्तित्त्व दिया ! ये जाति, धर्म सब कुछ हमने बनाये है ! इसलिए मेरा ये मानना है कि केवल जप, चिंतन, ध्यान या साधना से ज्ञानोदय सम्भव नहीं है ! सही मायने में हमें ज्ञानोदय की प्राप्ति तभी हो सकती है जब हम आपस के राग-द्वेष, भेदभाव आदि को भूलकर ‘हम’ की भावना के साथ आगे बढ़े और एक सच्चे इंसान होने का आत्मबोध हमें सही राह दिखाएं ! तभी उस ईश्वर के आशीष से हमारा ज्ञानोदय सम्भव है ! यही मेरी इस कविता का आशय है ! ” ज्ञानोदय “ जब आशा के दीप-सा प्रज्ज्वलित हो नया सवेरा , आतंक की काली छाया का न हो अनमिट अँधेरा , जीवन में हो सुख-दुःख के संगम का बसेरा , यहाँ मानव का मानव के प्रति प्यार हो गहरा , भ्रष्टाचार की नीति का अंत हो घनेरा , राग-द्वेष से उन्मुक्त हो मन और झूठ से चेहरा , बुराई पर हो अच्छाई की जीत का सेहरा , क्रिसमस, ईद, होली हो या हो दशहरा , हर त्यौहार में हो चारों तरफ खुशियों का डेरा , इंसानियत की यहाँ बहती हो निर्मल धारा , इस आत्मबोध से प्रकाशित हो जन संसार ये सारा , तब होगा सच्चा ज्ञानोदय , और मिलेगा ईश्वर का सानिध्य गहरा , उदीयमान होगा ये जीवन प्रखर ज्योति पुंज-सा , और बनेगा ये कल स्वर्णिम सुनहरा ! – सोनल पंवार ©Sonal Panwar " ज्ञानोदय " #MereKhayaal
Divyanshu Pathak
अवचेतन मन जीवन को चलाता है। जो कुछ यहां स्मृति में संग्रहीत है, वही कार्यरत होता है। चेतना का जागरण बिना दृढ़ संकल्प के नहीं हो पाता। शिक्षा और तकनीकी विकास ने व्यक्ति के सामने इतने सारे विकल्प और चकाचौंध खड़ी कर दी है कि वह विकल्पों में खो गया। लक्ष्य से भटक गया। पेट भरने के अलावा जीवन में अन्य लक्ष्य ही नहीं रह गया। कर्ता बनकर अपने ही जाल में फंस गया। #preeti dadhich#deepali suyal# ragini jha गुलाब कोठारी लेखक पत्रिका समूह के प्रधान संपादक हैं
VINOD VANDEMATRAM
राजस्थान पत्रिका में बधाई संदेश, शोक, व्यावसायिक सहित सभी प्रकार के विज्ञापनों के लिए संपर्क करें: विनोद त्रिवेदी निखार पब्लिसिटी पालोदा। मो: 9929794894 ©VINOD VANDEMATRAM #vTp राजस्थान पत्रिका
Aaradhana Anand
चित् तरंगिणी पत्रिका दिव्य शब्द संग्रह खाली है सडक लेकिन ,मोड बहुत है । दिखती है साफ सुथरी लेकिन , जोड बहुत है ।। चित् तरंगिणी पत्रिका
Aaradhana Anand
“भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा” यानी भारत की दो प्रतिष्ठायें हैं पहली संस्कृत व दूसरी संस्कृति..... “संस्कृताश्रिता संस्कृति:” यानि भारत की संस्कृति संस्कृतभाषा पर ही आश्रित है। चित् तरंगिणी पत्रिका
Aaradhana Anand
करके साधु की हत्या , मिला कौन सा मान । कुकर्मो से मानव न सुधरे , कैसे बसा ये अभिमान ।। नमन करो तो ज्ञान मिले , मिले धर्म का ध्यान । साधु की हत्या करे जो, न हो कभी कल्याण ।। मानव की बुद्धि भ्रष्ट हुई , यहां पापी बने महान । दुनिया मे हाहाकार मचा , ये ही कर्मो का परिणाम ।। चित् तरंगिणी पत्रिका