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Nandu V

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Unsplash good morning 🌅

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Muhammad Ilyas Rathor

Mona a

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Khalil Siddiqui

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साँस लेती hui lash

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White उम्र गुज़री है माँजते ख़ुद को
साफ़ हैं पर चमक नहीं पाए

डाल ने फूल की तरह पाला
ख़ार थे ना महक नहीं पाए

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Bharat Bhushan pathak

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White जीवन ये नदिया बहती-सी धारा।
ढूँढे यहाँ पे सभी किनारा।

©Bharat Bhushan pathak #sad_quotes  sad urdu poetry poetry on love urdu poetry sad urdu poetry poetry in hindi

दीक्षा गुणवंत

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मैं उसको इस कदर आंख भर के देखूं,
वो जाए दूर फिर भी आह भर के देखूं।
एक इंसान ने यूं ही इस कदर पा लिया उसे,
मैं उसे खुद के किस ख्वाब में देखूं?

चंद लम्हे बिताए उसके साथ में,
पर सपने हजार मैं देखूं।
साथ में होकर भी रास्ते अलग से हैं हमारे,
खुद अकेले चलकर उसे किसी और के साथ मैं देखूं।।

कुछ कह कर भी किसी के एहसास-ए-मोहब्बत से 
वाकिफ होने से महरूम है ये दुनिया।
यूं तो बिन कहे, बिन सुने समझ लेते हैं एक दूजे को,
उसकी आंखों में खुद के लिए प्यार बेशुमार मैं देखूं।।

यूं बिखरी जुल्फें, यूं बदहवास सी हालत, यूं आंखों के दरमियां घेरे काले काले,
उसे पसंद हूं मैं इन खामियों के साथ।
वो कहे मेहताब का नूर मुझे,
उसकी नजरों से आईने में खुद का दीदार हजार बार मैं देखूं।।

वो मेला, वो झूले, वो रास्ता तेरे साथ में,
याद है वो आखरी दिन मेरा हाथ तेरे हाथ में।
वो बिंदी, वो लाली, फिर भी कुछ कमी सी थी श्रृंगार में,
वो तेरी पसंद के झुमके पहन खुद को बार-बार मैं देखूं।।

मोहज़्ज़ब(सभ्य) मोहब्बत और ये बेइंतेहा चाहत हमारे दरमियां,
एक पायल उसने अपने हाथों से पहनाई जो मुझे।
कुछ इस तरह छुआ मेरे पैरों से मेरे दिल को,
उस लम्हे को तन्हाई में हजार बार मैं देखूं।।


बेबसी का आलम कुछ इस कदर है मेरे आशना,
वो साथ होकर भी साथ नहीं है मेरे।
मेरा होकर भी मेरा ना हो सका वो,
उसे पाया भी नहीं, फिर भी खो देने का आज़ार(दर्द) मैं देखूं।।

-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाड़ी"









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©दीक्षा गुणवंत   sad urdu poetry poetry urdu poetry poetry on love poetry in hindi

Ritu Nisha

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कहने के लिए ख़ुद को मेरा कहते हो। 
जानती हूँ कितनी लड़कीओं में रहते हो। 

कहीं न कहीं आ टकराती है सब मुझसे, 
तुम जिन जिन की आँखों में बहते हो। 

मुझे बेवफ़ा ओ बदउनवान कहने वाले, 
मैं क्या झेल रही हूँ जो तुम सब सहते हो। 

मेरी जानिब से चाहते हो तमाम उम्र मेरी, 
ख़ुद आए रोज़ किसी आँचल में ढहते हो।

©Ritu Nisha #good_night  urdu poetry deep poetry in urdu poetry lovers poetry on love

Mehmood Mehar

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luv_ki_lines

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White अब तो खुद से भी नफरत होने लगी है मुझे ,
के मैं तुमसे नफरत क्यू कर ना पाया ।

तुम घंटों खड़ी देखती रही मुझे ,
मैं इज़हार ए मोहब्बत क्यू कर ना पाया।

अब कहता हूं तो तुम सुनती नहीं हो ,
जब सुनती थी तो क्यू कह ना पाया।

इतनी भी क्या जिद्द थी आवारगी की ,
के अपने ही काबू में क्यू रह न पाया ।

आगाज़ से ही निभाया इस मरियल ताल्लुक को ,
किसी और मर्ज से अपने घाव , क्यू भर न पाया।

सालों बसर किए सहरा में तन्हा यूं ही ,
इतनी तिश्नगी के बाद भी क्यू मर न पाया।

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