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BANDHETIYA OFFICIAL
बुड़बक का धन होशियार का नाश्ता--- कहावत। होशियार का धन बुड़बक का भोजन-- सियासत। मद्देनजर मुखिया-चुनाव झारखंड ।😄😄 ©BANDHETIYA OFFICIAL मद्देनजर। #Journey
Rabindra Kumar Ram
" तमाम खत्म हलात हुए , तेरी खामोशि के मद्देनजर , जिसकी कि कुछ गुंजाइश रही , वो भी तुझे देखते रहने का दौर खत्म हुआ ." --- रबिन्द्र राम " तमाम खत्म हलात हुए , तेरी खामोशि के मद्देनजर , जिसकी कि कुछ गुंजाइश रही , वो भी तुझे देखते रहने का दौर खत्म हुआ ."
Rabindra Kumar Ram
" जो कस्मेकम में है ताउम्र रहे ये ज़िन्दगी , जो ख्याल है ताउम्र रहे ये दूश्वारिया , जो जूस्तजु नहीं है ना आये ख्याल , तेरी खामोशि के मद्देनजर ये भी ख्याल रखेंगे ." --- रबिन्द्र राम " जो कस्मेकम में है ताउम्र रहे ये ज़िन्दगी , जो ख्याल है ताउम्र रहे ये दूश्वारिया , जो जूस्तजु नहीं है ना आये ख्याल , तेरी खामोशि के मद्देनज
Rabindra Kumar Ram
" तमाम खत्म हलात हुए , तेरी खामोशि के मद्देनजर , जिसकी कि कुछ गुंजाइश रही , वो भी तुझे देखते रहने का दौर खत्म हुआ ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " तमाम खत्म हलात हुए , तेरी खामोशि के मद्देनजर , जिसकी कि कुछ गुंजाइश रही , वो भी तुझे देखते रहने का दौर खत्म हुआ ."
Rabindra Kumar Ram
" जो कस्मेकम में है ताउम्र रहे ये ज़िन्दगी , जो ख्याल है ताउम्र रहे ये दूश्वारिया , जो जूस्तजु नहीं है ना आये ख्याल , तेरी खामोशि के मद्देनजर ये भी ख्याल रखेंगे ." --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " जो कस्मेकम में है ताउम्र रहे ये ज़िन्दगी , जो ख्याल है ताउम्र रहे ये दूश्वारिया , जो जूस्तजु नहीं है ना आये ख्याल , तेरी खामोशि के मद्देनज
Durga Bangari
#आने वाले दिन# काफी वक्त बीत गया बिना लिखे,तो सोचा फिर कुछ लिखा जाए।कलम को चलाया तो नीली स्याही अब खत्म हो चुकी थी। फ़ौरन दौरा किया दुकान का, (अमूमन जैसे किसी बड़ी घटना के बाद राजनेताओं के,उस घटना स्थल पर।) दुकान में स्याही नहीं थी। कारण पूछा! तो दुकानदार साहब बोले-कि सारी स्याही तो ले गए,खादी धारी और सफेद कुर्ते वाले लोग। फिर कुछ गुड़मुड़ा कर बोला कि इतिहास तो अब वही लिखेंगे। कई और दुकानों की खाक छानी कुछ हासिल नहीं हुआ।मुझे लिखना था।तो आव देखा न ताव फ़ौरन अखबार के दफ्तर का रुख किया। इस आस में "कि भला उनके पास स्याही की क्या कमी नीली नही,तो काली ही सही?" दफ्तर शानदार........। रिसेप्शन पर जाके वहाँ जाने का कारण बताया तो मोहतरमा ने इंग्लिश में किटपिट करते उँगली से एक तरफ इशारा कर दिया। उधर जाते ही फ़ौरन पूछा एक महोदय से स्याही मिल जाएगी थोड़ा बहुत। उन्होंने बड़े भौचक्के होकर मेरी तरफ देखा बोले-मोह माया सब खत्म हो चुकी है क्या? रुककर बोले-आलाकमान से पहले लेटर में लिखवा के लेके आयो। मैंने पूछा-क्यों? तो बोले स्याही सरकार के पास है,हम तो बस छापते है फिर थोड़ा चुप हो गए..... ( तो मेरे दिमाग में जवाब आया छापते होंगे-नोट) रुक कर देर से जवाब आया "खबर"। फिर बोले-अब सरकार तय करती है,कब,कहाँ,कितनी स्याही लगेगी? दबी आवाज में बोले-सुना है,किसके नाखून(वोट देने के बाद वाली)में स्याही लगनी है या नहीं।ये भी अब उनका ही काम है। मैं मरे मन से मायूस वापस लौट रहा था,कि तभी उस दफ्तर के इर्द गिर्द कुछ लिख-लिखकर दम तोड़ने अदृश्य आवाजें सुनाई दे रही थी......138-140 138-140 .....टाइप कुछ बुद-बुदा रही थी। अदृश्य इसलिए क्योंकि अभी जो दफ्तर में थे,वो लगभग मौन ही थे। लिखने के मोह को मैं!...वही तर्पण कर आया। #gif #aanewaledin #politics जिस कदर राजनीति में तब्दीलियाँ हो रही है/हुई है। उसे मद्देनजर रखते हुए आने वाले हालात क्या हो सकते है। चित्रण। title
indira
असफलता एक चुनौती है,इसे स्वीकार करो मजबूत इरादे लिए तुम फिर अपने सपनो को नई उड़ान भरो बाधाएँ तो मार्ग में यूँ ही आती रहेगी तुम अपना चित्त मजबूत रखे इन बाधाओं को तुम निर्भीकता से पार करो असफलता एक........इसे स्वीकार करो दृढनिष्ठा का संकल्प कर अपने सपनो की उड़ान भरो उड़ान को रोकने वाले,तुम्हारी हिम्मत को तोड़ने वाले बहुत मिलेंगे परन्तु तुम बिन आवाज किए अपनी उड़ान भरो अपने अंतर्मन की तुम पुकार सुनो असफलता एक.......इसे स्वीकार करो सपनो को साकार करने में समय कभी तुम्हारे अनुकूल तो कभी प्रतिकूल होगा समय के अनुकूल प्रतिकूल के इस भंवर में तुम ना उलझो तुम तो पूरी लगन,मेहनत से अपने सपनो को साकार करने में लगो असफलता हार कर ,सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी इस पंक्ति का अनुसरण करते हुवे तुम जिंदगी में आगे बढ़ते चलो असफलता एक.......इसे स्वीकार करो ( इंदिरा✍️) हिंदी के प्रकांड विद्वान श्री हरिवंश राय बच्चन जी की एक पंक्ति असफलता एक चुनौती है इसे स्वीकार करो को मद्देनजर रखते हुए आगे की पंक्तिया लि
Rabindra Kumar Ram
" तमाम हसरतें ख्याल रहा , मेरे चाहतों का यही अंजाम रहा , तेरी खामोशियों के मद्देनजर , दिल खुश से जिरह करता मुसलसल , रास आये तुझे मेरी मुहब्बत बिन बातों के , तुझसे मिलता रहा बिन बातों के मेरी आरज़ू का ये अंजाम रहा . " --- रबिन्द्र राम " तमाम हसरतें ख्याल रहा , मेरे चाहतों का यही अंजाम रहा , तेरी खामोशियों के मद्देनजर , दिल खुश से जिरह करता मुसलसल , रास आये तुझे मेरी मुहब्ब
Ravendra