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ranvir s
ना जाने कितने वर्ष लग जाते हैं बस्तियाँ बनाने में । पर उन जालिमों को शर्म नहीं आती लोगों की बस्तियाँ जलाने में । I love Delhi plzzz save Delhi. dil ki kalam se
ranvir s
kon kaheta hai tum dil me nahi bas tum hamare bin to pal rahe nahi pate hum tumse kuch kahe nahi paate dil ki kalam se
ranvir s
nahi koi sikwa tujhasee jindagi bas mere hi Kissmat ki sab kahani hai Rusva to mohobbat me meri rakibi hai Judai mein gujar rahi jindagani hai dil ki kalam se
Sagar Samrat
जिंदगी के सफ़र में भटकते रहे थक गया तब तुम्हारा खयाल आ गया चंद सपने जो देखे चांदनी रात में नींद खुल गई अमावस आ गया जिस खुशी के लिए हम तरसते रहे कोई गैर उसको चुरा ले गया ऐसी किस्मत कहा की उन्हे पा सके एक नज़र क्या मिली वो खफां हो गई इक चाहत थी बस उनके दीदार की जब मिली तब था घूंघट से चेहरा छिपा जो कफ़न में लिपट कर रहे थे हम सो रहे उनकी आंखो की दरिया में हम बह गए ना थी घूंघट ना आंचल से चेहरा ढंका उनके अपने उन्हे कोसते रह गए मेरे अपने हमें देखते रह गए dil ki kalam se
ranvir s
बहुत खुबसूरत हो तुम ।। बहुत खुबसूरत हो तुम । कैसे कहें हम तुमसे सनम।। दिल की जरुरत हो तुम । बहुत खूबसुरत हो तुम । बहुत खूबसूरत हो तुम ।। I am alone but miss my life. dil ki kalam se
ranvir s
तुम मुझे दिल से मिटाने की कोशिश करो। मैं तुम्हारे दिल में उतरने की कोशिश करूँगा ।। I love only u jindagi dil ki kalam se
Harry Baghel HR
हम शतरंज नही खेलते, क्योंकि दुश्मनों की हमारे सामने बैठने कि औकात नही और दोस्तो के खिलाफ़ हम चाल नही चलते. Harry Baghel HR #Dil ki kalam se
ranvir s
If there was a shop of happiness And If I knew about it I would buy every happiness for you Even if my life be the price of it..! Kaash koi khushiyon ki dukaan hoti Aur mujhe uski pehchaan hoti Khareed leta har khushi aapke liye Chahe uski keemat meri jaan bhi hoti..! dil ki kalam se
ranvir s
अख़बार बेचने वाला 10 वर्षीय बालक एक मकान का गेट बजा रहा है। मालकिन - बाहर आकर पूछी क्या है ? बालक - आंटी जी क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं ? मालकिन - नहीं, हमें नहीं करवाना है, और आज अखबार नही लाया । बालक - हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में.. "प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से साफ करूंगा,आज अखबार नही छपा,कल छुट्टी थी दशहरे की ।" मालकिन - द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा ?" बालक - पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना।" मालकिन- ओह !! आ जाओ अच्छे से काम करना । (लगता है बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ..मालकिन बुदबुदायी।) मालकिन- ऐ लड़के..पहले खाना खा ले, फिर काम करना । बालक -नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना। मालकिन - ठीक है, कहकर अपने काम में लग गयी। बालक - एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं। मालकिन -अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए। यहां बैठ, मैं खाना लाती हूँ। जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया, बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा। मालकिन - भूखे काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले। जरूरत होगी तो और दे दूंगी। बालक - नहीं आंटी, मेरी बीमार माँ घर पर है,सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है,पर डाॅ साहब ने कहा है दवा खाली पेट नहीं खाना है। मालकिन की पलके गीली हो गई..और अपने हाथों से मासूम को उसकी दूसरी माँ बनकर खाना खिलाया फिर उसकी माँ के लिए रोटियां बनाई और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आयी । और आते आते कह कर आयी "बहन आप बहुत अमीर हो जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है वो हम अपने बच्चों को नहीं दे पाते हैं" । माँ बेटे की तरफ डबडबाई आंखों से देखे जा रही थी...बेटा बीमार मां से लिपट गया... पसन्द आये तो कमेंट करे और शेयर भी 👍 Dil ki kalam se