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गणेश अाँसु
एक्कासी हावाको झोक्का आयो धुलोको कण सहित पातहरू उडे डाँठहरू उडे निर्दोष फूल हरु उडे सजाएका सपनाहरु सबै उडे जिन्दगी जिन्दगी रहेन क्षण भरमै जिउँदो लास सरी भयो 😭😭😭😭 गणेश आँसु कावासोती ८ नवलपुर 😭जिन्दगीको गोरेटोमा अनेकौं पीडा हरु 😭
Anmol Singh
और वह शब्द सुनने लगा तब हरुमा ने पूरी रामकथा सुनाई दशरथ के जन्म से तब माता सीता कहती हैं जिन्होंने यह कहानी सुनाई मेरी उपस्थिति में आओ फिर हनुमा पेड़ से नीचे गिर गया फिर उसे देखकर डर गई तब हाना ने माता सीता को बताया मैं राम का दूत हूँ मैंने अंगूठी खरीदी पहचान के लिए राम ने खुद दिया था तब उसे शक हुआ कि वह बंदर है। राम एक इंसान थे उनके बीच दोस्ती कैसे संभव है। उसे संदेह हुआ कि क्या रावण बंदर के रूप में प्रच्छन्न था तब हनुमान ने उन्हें बताया कि राम उनसे "रुष्यमक" में मिले थे और फिर वैली की मौत। कैसे उसने समुद्र को पार किया और विभीषण से मिला तो उसने हनुमा पर विश्वास कर लिया आपने मुझे राम की पीड़ा से बचाया राम एक योद्धा थे और उनके भाई लक्ष्मण महान योद्धा भी वे क्यों नहीं मुझे रावण की कैद से बचाओ कहकर वह रो पड़ी तब हनुमा ने उसे बताया राम और लक्षमा "रुष्यमुका" में ठीक थे आप पर राम का प्यार आपकी अनुपस्थिति में दोगुना भगवान राम को गलती मत करो वह तुम्हें खोज रहा है कहां से अगवा किया गया है। ©Anmol Singh और वह शब्द सुनने लगा तब हरुमा ने पूरी रामकथा सुनाई दशरथ के जन्म से तब माता सीता कहती हैं
Yudi Shah
"निर्मला हरु बचाउ" मेरो आमा न रोए पनि कसैको आमा त रुदैछन न्यायका लागि क्यौ दिनसम्म बहिनी र आमा कुरिदैछन न्याय पाउने आसमा र निर्मला हरु बचाउ हुने खासमा बाच्दैछन सुन्दा र हेर्दा ती अखबारका पन्नाहरु अब जलाउन मन गर्दैछन... क्यौ वर्षदेखी निर्मला झैँ बलात्कृत हुदैछन कहिले यहाँ त कहिले वहाँ कोहि रुदैछन अझपनि यी हाम्रा समाजका निर्मलाहरुको आत्मसम्मान माथी चिरहरण हुदैछन कहाँ गए त ? ती समाजका बुद्धिजीवीहरु निर्मला हरु बचाउ हात समाती सगोल भै खै केही भन्दैछन... ©Yudi Shah "निर्मला हरु बचाउ" मेरो आमा न रोए पनि कसैको आमा त रुदैछन न्यायका लागि क्यौ दिनसम्म बहिनी र आमा कुरिदैछन न्याय पाउने आसमा र निर्मला हरु बचाउ
Laba Gorkha Poudyal
#छोरा छोरा,भरपुर यौवन बाटनै हाम्रो जाति माथि चतुर दाउपेच खेल्ने शासक र जाति भित्रै रहेका पाखण्डी शोसक हरूलाई ठीक लगाउने अदम्य साहस, विश्वास
Sangeeta Kalbhor
कमब्खत जिंदगी.. ना जीने देती है ना मरने देती है.. चलना भी चाहो तो ना चलने देती है.. समझौता .... किस किससे करुँ कबतक अपने दिल को हरुँ ना समझ में आती है ना समझाने आती है कमब्खत जिंदगी ना जीने देती है ना मरने देती है हौसला.... कबतक रखूँ गम के अब्र को कबतक ढ़कूँ ना सँभलने देती है ना सँभालने आती है कमब्खत जिंदगी ना जीने देती है ना मरने देती है रिश्ता.... नही समझता कोई ना ही नही परखता कोई ना साथ देती है ना साथी होती है कमब्खत जिंदगी ना जीने देती है .....मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #poetrymonth कमब्खत जिंदगी.. ना जीने देती है ना मरने देती है.. चलना भी चाहो तो ना चलने देती है.. समझौता ....
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 9 रावण को क्रोध आता है आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥ सीता के मुख से कठोर वचन अर्थात अपनेको खद्योत के (जुगनूके) तुल्य औररामचन्द्रजी को सुर्य के समान सुनकर रावण को बड़ा क्रोध हुआ जिससे उसने तलवार निकाल कर, बड़े गुस्से से आकर ये वचन कहे ॥9॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम रावण सीताजी को कृपाण से भय दिखाता है सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥ नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी॥ हे सीता! तूने मेरा मान भंग कर दिया है।इस वास्ते इस कठोर खडग (कृपान) से मैं तेरा सिर उड़ा दूंगा॥हे सुमुखी, या तो तू जल्दी मेरा कहना मान ले,नहीं तो तेरा जी जाता है,(नही तो जीवन से हाथ धोना पड़ेगा)॥ माता सीता के कठोर वचन स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥ सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥ रावण के ये वचन सुनकर सीताजी ने कहा,हे शठ रावण, सुन,मेरा भी तो ऐसा पक्का प्रण है की या तो इस कंठ पर श्याम कमलो की मालाके समान सुन्दर और हाथिओ के सुन्ड के समान (पुष्ट तथा विशाल) रामचन्द्रजी की भुजा रहेगी या तेरी यह भयानक तलवार।अर्थात रामचन्द्रजी के बिना मुझे मरना मंजूर है,पर अन्य का स्पर्श नहीं करूंगी॥ माता सीता तलवार से प्रार्थना करती है चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं॥ सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा॥ सीता उस तलवार से प्रार्थना करती है कि हे तलवार!तू मेरे संताप को दूर कर,क्योंकि मै रामचन्द्र जी की विरहरूप अग्निसे संतप्त हो रही हूँ॥ सीताजी कहती है, हे चन्द्रहास (तलवार)!तेरी शीतल धारासे (तू शीतल, तीव्र और श्रेष्ठ धारा बहाती है, तेरी धारा ठंडी और तेज है) मेरे भारी दुख़ को दूर कर॥ मंदोदरी रावण को समझाती है सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥ कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥ सीता जीके ये वचन सुन कर,रावण फिर सीताजी को मारने को दौड़ा। तब मय दैत्य की कन्या मंदोदरी ने निति के वचन कह कर उसको समझाया॥फिर रावण ने सीता जी की रखवारी सब राक्षसियों को बुलाकर कहा कि –तुम जाकर सीता को अनेक प्रकार से भय दिखाओ॥ रावण राक्षसियों को आदेश देता है मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥ यदि वह एक महीने के भीतर मेरा कहना नहीं मानेगी,तो मैं तलवार निकाल कर उसे मार डालूँगा॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 395 से 406 नाम 395 विरामः जिनमे प्राणियों का विराम (अंत) होता है 396 विरजः विषय सेवन में जिनका राग नहीं रहा है 397 मार्गः जिन्हे जानकार मुमुक्षुजन अमर हो जाते हैं 398 नेयः ज्ञान से जीव को परमात्वभाव की तरफ ले जाने वाले 399 नयः नेता 400 अनयः जिनका कोई और नेता नहीं है 401 वीरः विक्रमशाली 402 शक्तिमतां श्रेष्ठः सभी शक्तिमानों में श्रेष्ठ 403 धर्मः समस्त भूतों को धारण करने वाले 404 धर्मविदुत्तमः श्रुतियाँ और स्मृतियाँ जिनकी आज्ञास्वरूप है 405 वैकुण्ठः जगत के आरम्भ में बिखरे हुए भूतों को परस्पर मिलाकर उनकी गति रोकने वाले 406 पुरुषः सबसे पहले होने वाले 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 9 रावण को क्रोध आता है आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥ सीता के मुख से
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 11 सीताजी मन में सोचने लगती है जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच। मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥ फिर सब राक्षसियाँ मिलकर जहां तहां चली गयी-तब सीताजी अपने मनमें सोच करने लगी की –एक महिना बितने के बाद यह नीच राक्षस (रावण) मुझे मार डालेगा ॥11॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम सीताजी और त्रिजटा का संवाद माता सीता, त्रिजटा को, श्रीराम से विरहके दुःख के बारे में बताती है त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥ तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥ फिर त्रिजटाके पास हाथ जोड़कर सीताजी ने कहा की हे माता-तू मेरी सच्ची विपत्तिकी संगिनी (साथिन) है॥सीताजी कहती है की जल्दी उपाय कर नहीं तो मै अपना देह तजती हूँ(जल्दी कोई ऐसा उपाय कर जिससे मै शरीर छोड़ सकूँ)क्योंकि अब मुझसे अति दुखद विरहका दुःख सहा नहीं जाता॥ सीताजी का दुःख आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई॥ सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥ हे माता! अब तू जल्दी काठ ला और चिता बना कर मुझको जलानेके वास्ते जल्दी उसमे आग लगा दे॥ हे सयानी! तू मेरी प्रीति सत्य कर- रावण की शूल के समान दुःख देने वाली वाणी कानो से कौन सुने?सीता जी के ऐसे शूल के सामान महा भयानाक वचन सुनकर॥ त्रिजटा सीताजी को सांत्वना देती है सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥ निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी॥ त्रिजटा ने तुरंत सीताजी के चरण पकड़ कर उन्हे समझायाऔर प्रभु रामचन्द्रजी का प्रताप, बल और उनका सुयश सुनाया और सीताजी से कहा की हे राजपुत्री! हे सुकुमारी!अभी रात्री है, इसलिए अभी आग नहीं मिल सकत ऐसा कहा कर वहा अपने घरको चली गयी॥ सीताजी को प्रभु राम से विरह का दुःख आसमान के तारे कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। हिमिलि न पावक मिटिहि न सूला॥ देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा॥ तब अकेली बैठी बैठी सीताजी कहने लगी की क्या करूँ विधाता ही विपरीत हो गया-अब न तो अग्नि मिले और न मेरा दुःख कोई तरहसे मिट सके॥ऐसे कह तारो को देख कर सीताजी कहती है की ये आकाश के भीतर तो बहुत से अंगारे दिखाई दे रहे है,परंतु पृथ्वी पर पर इनमे से एक भी तारा नहीं आता॥ चन्द्रमा और अशोक वृक्ष पावकमय ससि स्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥ सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका॥ सीताजी चन्द्रमा को देखकर कहती है कि यह चन्द्रमा का स्वरुप अग्निमय दिख पड़ता है,पर यह भी मानो मुझको मंदभागिन जानकार आग को नहीं बरसाता॥अशोक के वृक्ष को देखकर उससे प्रार्थना करती है कि -हे अशोक वृक्ष!मेरी विनती सुनकर तू अपना नाम सत्य कर।अर्थात मुझे अशोक अर्थात शोकरहित कर।मेरे शोकको दूर कर (मेरा शोक हर ले)॥ सीताजी को दुखी देखकर हनुमानजी को दुःख होता है नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥ देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता॥ तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान है ,तुम मुझको अग्नि देकर मुझको शांत करो॥इस प्रकार सीताजीको विरह से अत्यन्त व्याकुल देखकर हनुमानजी का वह एक क्षण कल्प के समान बीतता गया॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 466 से 477 नाम 466 स्ववशः जगत की उत्पत्ति, स्थिति और लय के कारण हैं 467 व्यापी सर्वव्यापी 468 नैकात्मा जो विभिन्न विभूतियों के द्वारा नाना प्रकार से स्थित हैं 469 नैककर्मकृत् जो संसार की उत्पत्ति, उन्नति और विपत्ति आदि अनेक कर्म करते हैं 470 वत्सरः जिनमे सब कुछ बसा हुआ है 471 वत्सलः भक्तों के स्नेही 472 वत्सी वत्सों का पालन करने वाले 473 रत्नगर्भः रत्न जिनके गर्भरूप हैं 474 धनेश्वरः जो धनों के स्वामी हैं 475 धर्मगुब् धर्म का गोपन(रक्षा) करने वाले हैं 476 धर्मकृत् धर्म की मर्यादा के अनुसार आचरण वाले हैं 477 धर्मी धर्मों को धारण करने वाले हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 11 सीताजी मन में सोचने लगती है जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच। मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥ फिर सब रा
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 25 हनुमानजी का विशाल रूप और गर्जना हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास। अट्टहास करि गर्ज कपि बढ़ि लाग अकास॥25॥ उस समय भगवानकी प्रेरणा से उनचासो पवन बहने लगे और हनुमानजी ने अपना स्वरूप ऐसा बढ़ाया कि वह आकाश में जा लगा फिर अट्टहास करके बड़े जोरसे गरजे ॥25॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम लंका दहन का प्रसंग हनुमानजी एक महल से दूसरे महल पर जाते है देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥ जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला॥1॥ यद्यपि हनुमानजी का शरीर बहुत बड़ा था परंतु शरीर में बड़ी फुर्ती थी,जिससे वह एक घर से दूसरे घर पर चढ़ते चले जाते थे जिससे तमाम नगर जल गया।लोग सब बेहाल हो गये और झपट कर बहुत से विकराल कोट पर चढ़ गये॥ राक्षस लोग समझ जाते है की हनुमानजी देवता का रूप है तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहि अवसर को हमहि उबारा॥ हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई॥2॥ और सब लोग पुकारने लगे कि हे तात! हे माता!अब इस समय में हमें कौन बचाएगा॥हमने जो कहा था कि यह वानर नहीं है,कोई देवता वानर का रूप धरकर आया है। सो देख लीजिये यह बात ऐसी ही है॥ लंका नगरी जल जाती है साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥ जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥3॥ और यह नगर जो अनाथ के नगर के समान जला है सो तो साधु पुरुषोंका अपमान करनें का फल ऐसा ही हुआ करता है॥तुलसीदासजी कहते हैं कि हनुमानजी ने एक क्षण भर में तमाम नगर को जला दिया.केवल एक बिभीषण के घर को नहीं जलाया॥ सिर्फ विभीषण का घर क्यों नहीं जलता है? ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥ उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥4॥ महादेवजी कहते है कि हे पार्वती! जिन्होने अग्नि को बनाया है,उस परमेश्वर का विभीषण भक्त था,हनुमान् जी उन्ही के दूत है,इस कारण से उसका घर नहीं जला॥हनुमानजी ने उलट पलट कर (एक ओर से दूसरी ओर तक)तमाम लंका को जला कर फिर समुद्र के अंदर कूद पडे॥ आगे मंगलवार को ..., विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 981 से 992 नाम 981 यज्ञान्तकृत् यज्ञ के फल की प्राप्ति कराने वाले हैं 982 यज्ञगुह्यम् यज्ञ द्वारा प्राप्त होने वाले 983 अन्नम् भूतों से खाये जाते हैं 984 अन्नादः अन्न को खाने वाले हैं 985 आत्मयोनिः आत्मा ही योनि है इसलिए वे आत्मयोनि है 986 स्वयंजातः निमित्त कारण भी वही हैं 987 वैखानः जिन्होंने वराह रूप धारण करके पृथ्वी को खोदा था 988 सामगायनः सामगान करने वाले है 989 देवकीनन्दनः देवकी के पुत्र 990 स्रष्टा सम्पूर्ण लोकों के रचयिता हैं 991 क्षितीशः क्षिति अर्थात पृथ्वी के ईश (स्वामी) हैं 992 पापनाशनः पापों का नाश करने वाले हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 25 हनुमानजी का विशाल रूप और गर्जना हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास। अट्टहास करि गर्ज कपि बढ़ि लाग अकास॥25॥ उस समय भ