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Vijay Kumar
White कश्ती पुरानी ही सही मगर दरिया बदल गया मेरी तलाश का नज़रिया भी बदल गया.... ना शक्ल बदली और ना ही किरदार बदला, लोगों को देखने का नज़रिया बदल गया.... ©Vijay Kumar #कश्ती पुरानी ही सही मगर दरिया बदल गया #
Yogi Sonu
योग का एक फ़ायदा है पति कुछ भी बोले पत्नी कुछ भी बोले फ़र्क ही नही पड़ता योग का यह सबसे मजेदार लाभ है है न मजेदार ©Yogi Sonu योग का एक फ़ायदा है पति कुछ भी बोले पत्नी कुछ भी बोले फ़र्क ही नही पड़ता योग का यह सबसे मजेदार लाभ है है न मजेदार #jokas #teatime
HintsOfHeart.
पहाड़ियों पर चढ़ना शायद, दरिया का ख़्वाब हो और पहाड़ को धारा के संग, चलना पसंद हो; क्या ऐन* चाहिए हमें, शायद ही जान पायें हम आग की लपटों को शायद, पिघलना पसंद हो। *Exactly. ©HintsOfHeart. #We may never know, what we want exactly. #दरिया #ख़वाब #आग . . . Miss Anu...thoughts vineetapanchal Anshu writer
paritosh@run
उनको देखना और देखते रहे जाना... मानो दरिया में उतारना और बहे जाना.. ©paritosh@run मानो दरिया में उतारना.. Radhey Ray Mukesh Poonia Ak.writer_2.0 Vibhooti Gondavi. Arshad Siddiqui Sethi Ji indu singh बाबा ब्राऊनबियर्ड AD G
Ankit Singh
" ताज़ी अच्छी रोटी नहीं वो बासी भी खा लेते हैं बिना कुछ बोले ही वो मासूम अपना दर्द बता देते हैं " ©Ankit Singh ताज़ी अच्छी रोटी नहीं वो बासी भी खा लेते हैं बिना कुछ बोले ही वो मासूम अपना दर्द बता देते हैं #animals
Internet Jockey
तारा टूट भी जाए तो नीचे नहीं गिरता, गिरती हैं नदियाँ सागर में, पर सागर कभी दरिया में नहीं गिरता ©Internet Jockey तारा टूट भी जाए तो नीचे नहीं गिरता, गिरती हैं नदियाँ सागर में, पर सागर कभी दरिया में नहीं गिरता
mithilani.@
कभी पढ़ तो सही....❤️ मेरे आँखों को .... यहाँ दरिया बहता है ..... तेरी मोहब्बत का....😍 ©mithilani.@ कभी पढ़ तो सही....मेरे आँखों को यहाँ दरिया बहता है तेरी मोहब्बत का....
USTAD ISMAIL WASIF
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Village Life सन्ध्या छन्द 221 111 22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा ।। साधू कब तक बोले । लोभी मन मत डोले ।। इच्छा जब बढ़ती है । वो तो फिर डसती है ।। हो जीवन फिर बाधा । बोले गिरधर राधा ।। मीठी सुनकर वाणी । दौड़े सब अब प्राणी ।। सोचा नहिँ कुछ आगे । जोड़े मन-मन धागे ।। १४/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सन्ध्या छन्द 221 111 22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा