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ज़हर
ज़हर मेरी उदासियां तुम्हे कैसे नज़र आएंगी, तुम्हे देखकर जो हम मुस्कुराने लगते है ©ज़हर #ManKeUjaale #ज़हर #sad_feeling #hindi_shayari ज़हर मेरी उदासियां तुम्हे कैसे नज़र आएंगी, तुम्हे देखकर जो हम मुस्कुराने लगते है
aditi the writer
White जब रजनी के सूने क्षण में, तन-मन के एकाकीपन में कवि अपनी विव्हल वाणी से अपना व्याकुल मन बहलाता, त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन! जब उर की पीडा से रोकर, फिर कुछ सोच समझ चुप होकर विरही अपने ही हाथों से अपने आंसू पोंछ हटाता, त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन! पंथी चलते-चलते थक कर, बैठ किसी पथ के पत्थर पर जब अपने ही थकित करों से अपना विथकित पांव दबाता, त्राहि, त्राहि कर उठता जीवन! हरिवंश राय बच्चन ©aditi the writer #Dosti Niaz (Harf) Kundan Dubey Kumar Shaurya आगाज़ AK Haryanvi
Chetram Nagauri
White तुम्हें दिल की बात ना बोलूं तो ये दिल में दफ़न रह जायेंगी पट दिल के अगर ना खोलूं तो ये दिल में ही बंद रह जाएगी तुम्हें आज बता दूं ए जानम मेरे बीते दिनों की वो बातें कैसे गुजरी कैसे बीती मेरी प्यार मोहोबत की रातें खुश तू भी ना होगी ये सुनकर तुझे बात ना दिल को भाएगी पट दिल के अगर ना खोलू तो ये दिल में ही बंद रहजायेगी ©Chetram Nagauri #Moon #बेवफा #प्यार #love #lastnight #शायरी writer Mohabbat aazmi poonam atrey Suman Zaniyan @hemantgarg_author advocate SURAJ PAL SINGH
Pooja Ranga
White "Har raat ke baad ek naya savera hai, Har dukh ko tum apni taqdeer bana lo. Utho, chalo, aur sapnon ko pankh do, Kyun ki zindagi ka har pal hai anmol." ©Pooja Ranga " Har raat k baad ak Naya savera hain " #NayaSavera #Shayari #motivational_Shayari #motivationalshayari #motivating #lifeshayari #Shayari
an aspirant nilu
White लड़की बनके है जन्म लिया मानू मैं हर मर्यादा समाज की में तो शुभचिंतक हूं समाज की । पुरुषवादी सत्ता के जो आडम्बर बने है आज भी मैं पालना करू हर उस बात की मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की । बचपन से लेकर अब तक यही है मुझको सिखलाया बेटी को संस्कार सभी हो कहा फिक्र करता कोई पुरुषों के संस्कार की। मै तो शुभ चिंतक हू समाज की। मां से मेने सीखे हर गुण स्त्रीत्व वाले भी वो घूंघट की ओट में अपने विचारो पर ताले भी। मैं क्या ही बात करू अधिकार की मै तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।। मेरी लाज काज के रक्षक वो है । फिर भोगी में बलात्कार की कोई प्रश्न करू लज्जित हो जाऊ बात उठती ही नहीं सम्मान की। मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की कोई भोर भरे उठ जाता है कोई जोर जोर चिल्लाता है मध्य रात्रि में भी उठ उठ कर पालना करती पति को हर बात की मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की कुमकुम ,पायल ,बिंदी और कंगन निशानिया मुझे ही तो दिखानी है सुहाग की करवाचौथ की भूख से लेकर सती कुण्ड की आग तक नारी हूं बलिदानी बन के रक्षा करू उनके स्वाभिमान की । मैं तो शुभचिंतक हु समाज की ।। वक्त बदल रहा हालत की अब दशा कुछ और है स्त्री कमजोर नहीं मगर पुरषो के समाज को स्त्री वर्ग का ही एक हिस्सा मजबूत बनाता है जो आज भी स्त्री होकर खुद स्त्री को समाज के पुरुषवादी विचारो के आधार पर जीने के लिए एक माहोल को सजाए हुए है ये कविता उन्ही स्त्रीयों के लिए जो पुरुषवाद की शुभचितक तो है मगर मानवता वाद की समानता भूल गई है ©an aspirant nilu #Road Ajay Kumar Ak Brajesh Kumar Bebak N.B.Mia