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Vishal Chaudhary
कहीं दूर है नगर एक जहाँ रहती हैं खुशियां अनेक चल तुझे वहां में लेके चलूँ नई आशायें संग लिये संग तेरे में बहके चलूं। भोर हो तो उजाले हों कोई गमों की बदली ना छाये हर दिन गीत निराले हों कोई राग विरह के ना गाये प्यार का संसार नया आज तुझे में देके चलूं कहीं दूर॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰बहके चलूं। आंशू भी गर गिरे आंख से वो खुशियों में नहाया हो होठ सुनायें गीत कोई तो प्रेम से उसे सजाया हो लिख रहे हम कथा प्रेम की दुनिया से में कहके चलूं कहीं दूर॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰बहके चलूं। -विशाल चौधरी कहीं दूर है नगर एक #faraway
Anekanth Bahubali
नगर कितना नकली - नकली है यह नगर बिल्कुल असली -असली - सा लगता है । लोग यहाँ के बिल्कुल लोग जैसे लगते हैं और मकाने - दुकानें सब कुछ उन जैसे ही लगते हैं पर न जाने क्यों सब कुछ अजीब -अजीब -सा लगता है । यहाँ कोई कभी अपना - अपना -सा लगता है । फिर सब कुछ सपना-सपना -सा लगता है । भीड़ में घुस जाओ अगर तुम तो सब कुछ कितना अजीब - अजीब -सा लगता है । सब कुछ सपना - सपना- सा लगता है । - बाहुबली भोसगे नगर #City
Anekanth B
नगर कितना नकली - नकली है यह नगर बिल्कुल असली -असली - सा लगता है । लोग यहाँ के बिल्कुल लोग जैसे लगते हैं और मकाने - दुकानें सब कुछ उन जैसे ही लगते हैं पर न जाने क्यों सब कुछ अजीब -अजीब -सा लगता है । यहाँ कोई कभी अपना - अपना -सा लगता है । फिर सब कुछ सपना-सपना -सा लगता है । भीड़ में घुस जाओ अगर तुम तो सब कुछ कितना अजीब - अजीब -सा लगता है । सब कुछ सपना - सपना- सा लगता है । - बाहुबली भोसगे नगर #City
Parasram Arora
मंजिल तो मुझे मिल गई किसी तरह ओर मेरा हमसफर मुझे अभी भीम मिला नहीं हैँ मंजिल पाबे का जश्न अब हम अकेले मनाये कैसे?. दोस्त की छोड़ो क्कोई दुश्मन भी तो आस पास नहीं दिख रहा अब तुम ही बताओ इस जश्न को मनाने की. दीवानगी का हम क्या करें सुख का नगर मैं केसे बसाऊ ? ©Parasram Arora सुख क़ा नगर
Adarshkumar
चांदनी चांद से होती सितारों से नहीं मोहब्बत एक से होती हजारों से नहीं फूल खिलता एक बार अंधेरी में भी रोशनी एक हो जाती है ©Adarshkumar #City कानपुर नगर
Parasram Arora
जिंदगी एक लम्बा सफऱ और मौत हमारी मंजिल है ये भी सच है कि अमृत एक ख्वाब और जिंदगी एक ज़हर है ज़िंदा हैँ हमफिर भी इस दुनिया मे किसका ये असर है इतना जहर पिलाया जिंदगी ने फिर भी ये बेअसर है कितना मुश्किल यहां पता लगाना कौन अपना कौन पराया है अपने मुझसे डरते हैँ जबकि अपनों का ही मुझ पे कहर है कितना दूर है किनारा मेरी जिंदगी क़े सफऱ का घंचक्कर की तरह घूम रहा सब तरफ भंवर ही भंवर है सब तरफ यहाँ जुल्म और रंजिश को दौर दिख रहा जिस तरफ देखिये उजड़ा हुआ नगर है ©Parasram Arora उजड़ा हुआ नगर.......