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Stories related to वीरता का संदेश देने वाली कविता

Nurul Shabd

#तुझे #खो #देने #का #डर था  मुझे Shayari #Hindi

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Vilas Bhoir

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व्यक्त व्हावे तुजपाशी 
बोलून सारे मनातले
अन् कवेत घ्यावे 
ऋतू सुगंधी क्षणातले

©Vilas Bhoir #You&Me  मराठी प्रेम कविता चारोळ्या फक्त प्रेम वेडे मराठी प्रेम कविता मराठी प्रेमाच्या शायरी मराठी प्रेम संदेश Aj stories  Reeda  Khayal-e-p

विष्णु कांत

मेरी वाली

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Harshit Rajasthani Official

उधार देने वाले का स्वागत

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Parasram Arora

i एक नूई कविता का प्रजनन

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White उलझन वाले छंदो 
मे उलझ कर 
कविता मेरी थक
 कर हाफने लगी है

लगता है  अब एक
 नई कविता 
मन के केनवास पर 
कहीं जन्म न लें रहीं हो

©Parasram Arora i एक नूई कविता का प्रजनन

Anuj Ray

# ज़िन्दगी देने वाले"

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White ज़िन्दगी देने वाले"

प्यार के नाम पर सिर्फ़ मिलता है 
धोखा यहां, अब बदल से गए हुस्न वाले। 

फ़रेबी मोहब्बत से दिल भर गया,
अब नहीं चाहिए दर्द के रास्ते गम के नाले।

तेरी मर्ज़ी तू जब चाहे वापस बुला ले,
तेरी दुनिया से दिल भर गया ज़िन्दगी देने वाले।

©Anuj Ray # ज़िन्दगी देने वाले"

Ravendra

बाबा जय गुरुदेव उत्तराधिकारी पंकज जी महाराज का संदेश

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काव्यात्मक अंकुर

#चांदरात #अंकुर काव्यात्मकअंकुर🌱 #मराठीचारोळी #गारठा #थंडी #love_shayari #मराठीशायरी #marathi #marathicharolya मराठी प्रेम कविता शायरी मरा

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White चांदरात

थंडीतल्या त्या गारठ्यात
आठवणींने भरलेली चांदरात आहे
उमलून यावं पुन्हा कळीने 
म्हणून अंकुराचे दिवस जात आहे

©काव्यात्मक अंकुर #चांदरात #अंकुर #काव्यात्मकअंकुर🌱 #मराठीचारोळी #गारठा #थंडी #love_shayari #मराठीशायरी #marathi #marathicharolya  मराठी प्रेम कविता शायरी मरा

Anurag Nishad

बारिश पर कविता हिंदी कविता कविता कोश प्रेम कविता कविता

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नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

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जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
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