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Vishal Kothari
मोहब्बत की मजारों तक चलेंगे... जरा चाय पी ले फिर कयामत तक चलेंगें।m3
Divylaxmi shukla
Mamta Singh
वो तड़प-तड़प कर मरते रहे फिर भी जय-जयकार तिंरगे की करते रहे वो मासूम थे, बलिदानी थे शहिदों की अगली पंक्ति में शामिल वो इतिहास की अमर कहानी थे किसी की मांग का सिंदूर थे तो किसी के बुढ़ापे की लाठी थे किसी के हाथ की राखी थे कुछ जो परवान भी न चढ़ पाते वो अधूरी जवानी थे उनके इस बलिदान का कुछ तो हम सम्मान करें वैमनस्य का बिज बोकर हम ना अपने इतिहास को बदनाम करे ©Mamta Singh शहिदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मिटने वालों का यही बाक़ी निशां होगा... वतन #जालियनवालाबाग #बलिदान #इतिहास
Mamta Singh
Nitesh Mishra
तुम पास आये नींदों में ख्वाबों में तुम साथ आये राहोें बाजारों मे, कैसे करें दिल यक़ीन तुम्हें प्यार नही हमसे जब तकलीफ़ में थे हम ना जाने कितनी दुआएं की मेरे लिए तुमने मन्दिरों,मजारों में!! तुम पास आये नींदों में ख्वाबों में तुम साथ आये राहोें बाजारों मे, कैसे करें दिल ये यक़ीन तुम्हें प्यार नही हमसे जब तकलीफ़ में थे हम ना जाने कि
INDIA CORE NEWS
गौरव दीक्षित(लव)
कोरोना अब गुजर रहा है, गांव शहर चौबारों से। इसको पानी खाद मिल रहा, मरकज और मजारों से । सीमाएँ तो सील हो गईं, भीड़ हटी बाजारों से। लेकिन ख़तरा बना हुआ है, छुपे हुए गद्दारों से।। गौरव दीक्षित (राहुल) कोरोना अब गुजर रहा है, गांव शहर चौबारों से। इसको पानी खाद मिल रहा, मरकज और मजारों से । सीमाएँ तो सील हो गईं, भीड़ हटी बाजारों से। लेकिन ख़तरा
SURAJ आफताबी
मौत हो जाती है मेरे झूठे ईमान-ओ-मज़हब की तब पूनम की ही रात में ढ़ल जाती है वो ही ईद वाली शब! ऐ मेरे खुदा गर कोई और भी मिले तुझे भगवान तो उनसे इतना कहना मंदिरों के गर्भग्रह और मस्जिदों की मजारों पर क्यों एक ही दुआ का चोला पहना! मानवत
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त