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Manoj Mishra

सुना है तुम मेरी बात नहीं करते
किसी रोज किसी से भी याद नहीं करते
अपने अंदर दिल की आखिरी जगह पर दफना दिए हो
सोते हो पर बिन मेरे रात नहीं करते
दाग़ ऐसे दिए थे कि तुमको मैंने
फिर भी जेहन में जलाकर राख नहीं करते
लौट कर आना जब अपने शहर में
पलकों से अपने पूछना कि तुम प्यार नहीं करते
मसला तुम्हे पाने का हरगिज नहीं है..फिर भी
क्या?तुम अपने दिल में मुझे बर्बाद नहीं करते
आयत सा दुआ है तमन्ना है
की मेरी मौत की फरियाद नहीं करते..
जिस्म अपना सम्भाल कर रखना
रूह की आत्मा को बेबाक नहीं करते
ख़ैर मुनासिब नहीं है मिलना
दूरियों से अब सवलात नहीं करते
एक अर्ज है मान भी जाओ
आंखो को सैलाब से बर्बाद नहीं करते
तुम में मै हूं कि नहीं
खमोशी से मुझे क्यों तुम आजाद नहीं करते..
लिपट कर आगोश में ले कर सो जाओ 
फिर एक दिन को ही हम क्यूं नहीं रात करते..
मेरे नाम पर तुम्हारी धड़कनों
की रफ्तार रुकती है
रगों में मै गुजरता हूं तुम इनकार क्यूं नहीं करते
रब्त नहीं है जानिब मुझसे अगर तेरी मंजिल के आगे
रास्तों में क्यों मेरे आहट के ख्वाब करते
चला जाऊं इस दुनिया से अगर मै
लोगो से कहना अब वो मेरी बात नहीं करते #अर्द्धांश

savita singh Meera

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रघुराम

#Nawaaz अर्द्धॉगिनी #शायरी

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करिश्मा ताब

अर्द्धनारीश्वर शिवशक्ति मेरी प्रेरणा
जीवन की आत्मा #sketchedbyme #अर्द्धनारीश्वर

Narendra Sonkar

*'सोनकरन' के अर्धशतक दोहे*---

01.
वे नरेन्द्र पशुतुल्य हैं, क्या ब्राह्मण क्या सूद।
अंतस  में  जिनके  नही, मानवता मौजूद।।

02.
खून मांस भी एक है , जाति योनि भी एक।
फिर नरेन्द्र हैं क्यों नही,सभी आदमी एक।।

03.
जिस मिट्टी के आप हैं, उसी मिट्टी के सूद।
ब्राह्मण देवता बोलिए,क्यों हैं सूद अछूत।।

04.
शत प्रतिशत अब साथियों,हुई बात ये सिद्ध।
धरती  पर  दूजा  नही, मानव  जैसा  गिद्ध।।

05.
स्वर्ग धरा को मानिए, करिए काम अनूप।
हैं नरेन्द्र माता-पिता, स्वयं  ईश के रूप।।

06.
माता  तो  सुमाता  है, मां  से  बड़ा  न  कोय।
स्वर्ग,सुख,सुरभोग,सुकूं,मां-आंचल में होय।।

07.
लिंग  भेद  के  तर्ज़ पर , जिन्हें  रहा  है बांट।
समझ मुरख मानव उन्हें, एक नदी दो घाट।।

08.
पेड़ पेड़ सब कोय कहें,प्राण कहे ना कोय।
पेड़  जगत के  प्राण हैं, पेड़ न काटे कोय।।

09.
मिथ्या  होता  फूल  है , कड़वा  होता  शूल।
फूल सहज स्वीकार्य हैं,अस्वीकार्य हैं शूल।।

10.
लुट रहा यहां आदमी, किसे  कहूं  मैं चोर।
चोर हवस की खोपड़ी,नही आदमी चोर।।

11.
गूंगे  बहरे  हैं  यहां , अंधे  सारे  लोग।
जिंदी लाशे जल रहीं, मुर्दे बैठे लोग।।

12.
मिहनत करके जो रहें, देश,गांव,घर साधि।
लोग उन्हीं को दे रहें,खच्चर-गधा उपाधि।।

13.
फलीभूत कर देश को, समझे  खुद को धन्य।
मगर कहां सुख है उसे,सुख के भोगी अन्य।।

14.
क्षण  क्षण  बीते  खेत  में , वर्षा  हो  या  धूप।
आय कृषक की ना हुई,मिहनत के अनुरूप।।

15.
का छोटन की बात सुने, खुदहि बड़े हम लोग।
अनहद अहम की भावना,लेके जिये ल लोग।।

16.
इक ही उल्लू से हुआ, खाक गुलिस्ता राम।
बैठें हैं  हर शाख पर, क्या  होगा  अंजाम।।

17.
जनमानस कल्याण ही,है जिसका अस्तित्व।
माने  उसके  ज्ञान  का , लोहा  सारा  विश्व।।

18.
लड़े धर्म के  नाम पर, आये  दिन  इंसान।
देख सियासत धर्म की,हैरत में भगवान।।

19.
गला  काटकर  जो यहां, वहां चढ़ायें फूल।
रे नरेन्द्र मत छोड़ तू,उनको भोंक त्रिशूल।।

20.
जाति-धर्म  के  नाम  पर, छुआछूत का रोग।
नमक छिड़कते घाव पर,आयें हैं कुछ लोग।।

21.
पूज  रहें  पाथर  यहां ,  पाथर - दिल   इंसान ।
जीव-जगत पाथर समझ,पाथर को भगवान।।

22.
जिस दिन सच्चा आप भी,पढ़ लेंगे इतिहास।
हो  जाएगा  आप  ही,  खाक  अंधविश्वास।।

23.
रूप सज्जा या नरेन्द्र, बदलें लाख लिबास।
मगर आज भी है वही,नारी का इतिहास।।

24.
फैशन के इस  दौर में, बदल  रहा है  गांव।
कहाॅ पुरातन संस्कृति,कहाॅ पुरातन ठांव।।

25.
फैशन के इस दौर में,तन ही हुआ नकाब।
अर्धनग्नता देख रही, सुंदरता का ख्वाब।।

26.
लिए तिरंगा हाथ में, लड़ता रहा जवान।
हिंदू-मुस्लिम में रहा,उलझा हिंदुस्तान।।

27.
न्योछावर कर देश पर,अपना जिस्मो-जान।
सदा  निभाता गर्व से, अपना फर्ज़ जवान।।

28.
ले नरेन्द्र कागज-कलम,लिख दे इक दो छंद।
जग  आनंदित  जो  करे, वही  सच्चिदानंद।।

29.
सुन नरेन्द्र  तू  ध्यान  से, बोल  रहा  मन  मंद।
व्यक्ति नही व्यक्तित्व की,अलख विवेकानंद।।

30.
कहत कहत कबिरा चला,इस जीवन को छोड़।
लोग  समझ  पाए  कहां, अर्थ,महत्त्व,निचोड़।।

31.
रख नरेन्द्र  तू  स्वास्थ्य का, इतना  सा  नाॅलेज।
असाध्य-साध्य हर मर्ज की,औषधि है परहेज।।

32.
सोच समझ विकसित हुई,विकसित हुआ समाज।
वहीं   नरेन्दर   पी   गई,  दुनिया  लाज- लिहाज।।

33.
वर्ष  गयें  आते  रहें, गया  न  गम का दौर।
किया नरेन्द्र आपने,कितना इस पर गौर।।

34.
छोड़  दिसंबर चल पड़ा, सहगामी के संग।
देख  जनवरी  आ गई, लेकर नया उमंग।।

35.
सुन नरेन्द्र खुद कह रहें,ख़ुदा,गाॅड या ईश।
इक  शरीर  में आदमी,होते  हैं  दस बीस।।

36.
मां हिंदी में जानिए,है अपनी पहचान।
उर्दू मौसी में वहीं,मीठी सरस जुबान।।

37.
होता है जिस छंद में,जितना अधिक प्रवाह।
होता है उतना अधिक,शब्द शब्द पर वाह।।

38.
दिल की  जब  होगी  प्रिये,दिल  से  कोई  बात।
तभी समझ में आएगी,दिल को दिल की बात।।

39.
करना हो तो ही करो,सोच समझ लो खूब।
छोड़ूंगा फिर मैं नही,भले कि जाओ ऊब।।

40.
हुआ बावरा यूं प्रिये,तुम्हें देखकर आज।
यूं उड़ने जैसे लगे,नील गगन में बाज।।

41.
काट  रहें  कैसे नरेन्द्र,हम मजनू ये सर्द।
ये लैलाएं समझ नही, रही हमारा दर्द।।

42.
तुम बिन मुर्दा हूं प्रिये,कर लो ज़रा यकीन।
यूं जैसे बिन जल मरें,तड़प तड़प के मीन।।

43.
लगता है हर इक मुझे,लम्हा लम्हा नीक।
होता हूं जब पास में, प्रिय तेरे नजदीक।।

44.
दुनिया है किस पर खड़ी,किसने ले ली जान।
किस के खातिर सब मरे,किस पे सब कुर्बान।।

45.
सास ससुर फुलकी लगें,चाट लगे ससुराल।
जीरा जल  साली   लगे, पानी  पूड़ी  सार।।

46.
बना बहुत स्वादिष्ट हो, पड़ा  न  गर हो  नून।
सुलग जाता है क्रोध से,फिर तो सारा खून।।

47.
फर्क उसे कुछ भी नही,पड़ता है मेरे यार।
घाट तिरे माटी नही, जिसके आती यार।।

48.
जिसके आगे गले नही,किसी और की दाल।
कर सकता बांका भला, कोई उसका बाल।।

49.
दु:ख-दर्द हम बांटकर,खुशियां मोल खरीद।
चलो  मनाएं  साथ में, मिलकर  होली ईद।।

50.
मात - पिता  गुरु  आप  हैं,गूढ़  ज्ञान  के  धाम।
शीश नवा कर जोड़कर,शत-शत करूं प्रणाम।।

••••
नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन' प्रयागराज 🙏

©Narendra Sonkar #सोनकरन #के #अर्द्धशतक #दोहे

Vishal Chaudhary

अर्द्ध प्रेम #कविता

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मिलती नहीं अब वो हीर जहां में 
वो रांझे कहाँ से लाऊं मैं 
नहीं प्रीत सोहनी के जैसी
माहिवाल कैसे दिखलाऊं मैं।
अब मतलब की है प्रीत यहाँ 
मतलब की सब यारी हैं 
अब मतलब से बनते रिश्ते 
मतलब की रिश्तेदारी हैं 
जाता है कौन साथ यहाँ मृत्यु तक
किसका सावित्री सा प्रेम बताऊं मैं। 
मिलती नहीं अब वो हीर ••••••
प्रेम की खातिर दुनिया से वो लङ जाते थे 
छोडेंगे ना साथ कभी कहकर वो भिङ जाते थे 
अब तो बस इन बातों के शोर सुनाई देते हैं 
बिना लङे ही हारे जो वो जोर दिखाई देते हैं 
अब ना सस्सी सा प्रेम यहाँ 
फिर ताकत पन्नू सी कहाँ से लाऊं मैं। 
मिलती नहीं अब वो हीर•••••••
खोदी किसी ने नहर दूध की
कोई राजा से आम हुआ
किसी ने लङते लङते आंख मूंद ली
कोई सब जग में बदनाम हुआ 
अब कहाँ तङप वो लीलो वाली
किसका जिगर चमन सा दिखाऊं मैं। 
 मिलती नहीं  अब हीर जहां में 
वो रांझे कहाँ से लाऊ मैं। अर्द्ध प्रेम

Simran Simar

महादेव अर्द्धनारीश्वर कहलाते हैं।। #Shayari

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Badal

नींद की वो अर्द्धरात...!! #rajeshkumarbadallovestatus #rajeshkumarbadal #DryTree

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नींद की वो अर्द्धरात जो मुझे कभी मुक्कमल सोने देता ही नही...जाने वो तेरी यादें हैं या फिर तुम्हारा किया हुआ एहस़ान मुझपर...कुछ भी हो...


सच तो ये है की तुम्हारे बग़ैर मैं होता ही नहीं हूँ...!!

☢ नींद की वो अर्द्धरात...!!
#rajeshkumarbadallovestatus 
#rajeshkumarbadal

#DryTree

SUMIT

सब अर्द्ध निर्मित है #MyTopics #कविता

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Juhi Grover

मैं कभी अर्द्ध विराम
या फिर कभी अल्प विराम ही बन पाई थी,
तेरे आने के बाद पूर्ण विराम हो गई,
और.....
और.....
.....  .....
तेरे जाने के बाद प्रश्न चिन्ह बन कर रह गई,

अब न ही अर्द्ध विराम 
या फिर अल्प विराम ही बन सकती हूँ,
और.....
और.....
.....  .....
पूर्ण विराम बन कर फिर से प्रश्न चिन्ह नहीं बनना है,
प्रायः विस्मयादिबोधक चिन्ह बन कर उद्धरण चिन्ह में आने का भी शायद अवसर मिल ही जाए,

मग़र.....
.....  .....
निर्देशक चिन्ह बन कर किसी के संवाद का विषय बनना नहीं चाहती मैं। 13.09.2021

#विराम 
#अर्द्धविराम 
#अल्पविराम 
#पूर्णविराम 
#विस्मयादिबोधक 
#उद्धरण
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