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RUPESH Kr SINHA

#घट गये जीवन का एक वर्ष

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©RUPESH Kr SINHA #घट गये जीवन का एक वर्ष

Ghumnam Gautam

मक़ाम पाया है रोशनी ने तुम्हारे चेहरे पे आके आख़िर
तुम्हारे कारण ही हो सका है हमारा परिचय भी रोशनी से

©Ghumnam Gautam #रोशनी 
#परिचय 
#ghumnamgautam 
#कारण

Nayra ~ ALL IN ONE

जीवन में संतुष्ट रहने का मूल मंत्र nojoto

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Rahul Jangid 'Rahh'

कविता तिवारी #कविसम्मेलन #कविता #viral whindi poetry

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poet-Akash kumar

अdiति वरुण तिवारी

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soniya verma

#जीवन का सत्य

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White  जीवन मे कभी भी किसीकी भी औकात दिखाने का 
अहम आ जाये ना तो एक बार अपनी मुट्ठी मे 
मिट्टी भरना और भरकर मुट्ठी से मिट्टी को ज़मीन पर छोड़ना 
जो मुट्ठी मे थीं वो मिट्टी थीं जो हाथों से गिरी वो 
ज़िन्दगी थीं और जो हाथों छूट कर मिट्टी, मिट्टी मे 
मिल गयी वो औकात थी बस ये है इंसान कि औकात 
जिसके पीछे हम अपना पूरा जीवन व्यर्थ करदेते है 
बिना ये सोचे कि हम आखिर इस दुनिया मे आए क्यों है उस प्रभु को भूलकर अपना लक्ष्य भूलकर बस उलझे है

©soniya verma #जीवन का सत्य

Parasram Arora

i एक नूई कविता का प्रजनन

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White उलझन वाले छंदो 
मे उलझ कर 
कविता मेरी थक
 कर हाफने लगी है

लगता है  अब एक
 नई कविता 
मन के केनवास पर 
कहीं जन्म न लें रहीं हो

©Parasram Arora i एक नूई कविता का प्रजनन

neelu

#good_night जीवन देख कर चलने का नाम नहीं जीवन सिख कर चलने का नाम है

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White जीवन देख कर चलने का नाम नहीं
 जीवन सिख कर चलने का नाम है.
aapke vichar kya hai is par

©neelu #good_night जीवन देख कर चलने का नाम नहीं जीवन सिख कर चलने का नाम है

Bachan Manikpuri

धर्मी का जीवन

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नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

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जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
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