Find the Latest Status about हृदय विदारक है from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, हृदय विदारक है.
Nir@j
धूप में बैठी है वृद्ध नारी ये दुकाँ किसकी है। औलाद होते हुए सड़क पर ये जाँ किसकी है। आज स्टेटस में तो सारे लोग माँ के साथ दिखें, तो आज वृद्धाश्रम में पड़ी ये माँ किसकी है। भगवान ऐसी औलाद किसी को न दे जो अपनी जान समान माँ को वृद्धाश्रम में रखता हो ये बात और घटना अत्यंत हृदय विदारक है😥तथा माँ के लिए कोई विशेष दिन
Kulbhushan Arora
हत्यारा कौन???? जी ये कोई जासूसी कहानी नहीं, ना कोई वेब सीरीज का एपिसोड है ना ही क्राइम पेट्रोल का दिसंबर 1977, मेडिकल कॉलेज रोहतक ब्लेड बैंक रात आधी से ज़्यादा बीत चुकी, सर्दी अपने पूरे चर्म पर, ब्लड बैंक में अकेला और दो टेक्नीशियन lab मे
DR. SANJU TRIPATHI
माता-पिता ही होते हैं हमारे जन्मदाता, जीवन का आधार, हमारे लिए होते हैं हमारा पूरा संसार। जान देकर भी चुका नहीं सकते कभी, माता-पिता के होते हैं हमारे जीवन पर अगणित उपकार। ईश्वर से बढ़कर होते हैं माता-पिता,इनके प्यार से बढ़कर दुनियां में कोई भी प्यार नहीं होता है। रखती है नौं माह कोख में, सहती असहनीय दर्द, फिर भी मातृत्व देने में इनकार नहीं करती है। माँगते हैं माता-पिता जाने कितनी ही मन्नतें और दुआएँ, पूजते हैं पत्थर, हमारे जन्म की खातिर। जन्म के बाद बाँधते हैं काले धागे, उतारते हैं नजर, दुनियां की बुरी नजरों से बचाने की खातिर। अपने मुख का निवाला दे पालते-पोषते, खुद जहर के घूँट पीते,पर हमको अमृत ही पिलाते हैं। खुशी-खुशी हमारे सारे ही अरमान पूरे करते, लाड़ लड़ाते, हमारे लिए अपनी खुशियाँ लुटाते हैं। हमारे उज्जवल भविष्य के लिए, अपने वर्तमान का सारा सुख चैन गँवा कर भी प्यार लुटाते हैं। हो जाएँ चाहे हम कितने भी बड़े, कितने भी अमीर, माँ-बाप का कर्ज कभी चुका नहीं सकते हैं। माता-पिता की सेवा से बढ़कर कोई सेवा नहीं, इनको दुःख देकर बनना कभी पाप का भागी नहीं। माँ बलैय्यां लेती, पिता हैं मार्गदर्शक, खुद काँटो पर चलते, फूल बिछाते,इनकी महिमा का सार नहीं। ___संस्कारों की पाठशाला___ प्यारे दोस्तों, संस्कारों के बिना शिक्षा अधूरी है । इसलिए आज से संस्कारों की पाठशाला का भी आरंभ किया जा रहा है ।
Jupiter and its moon
हृदय भारी है! किसी को बताना है मेरी उलझन! किसी से कहना है कि मैं परेशान हूं, मेरा दम घुट रहा है! काग़ज़ से हीं सही! अंजान लोगों से हीं सही! मगर पता नहीं क्या लिखूं? कुछ तो लिखना है कुछ ऐसा जिससे मन हल्का हो जाए, दिल का सारा दर्द निकाल दूं काग़ज़ पर। और थोड़ा बेहतर महसूस करूं। पर क्या लिखना है पता नहीं? बस दु:खी हूं ये कहना चाहती हूं ख़ुशी का मुखौटा उतार दूं ऐसा जी करता है। अपनी व्यग्रता ज़ाहिर करूं। अपनी कमियां, अपनी ग़लतियां मान लूं, चीखूं, चिल्लाऊं, गुस्सा करूं, जी करे तो रो लूं, और बाहर निकलूं इस घुटन से। पर इतनी आज़ादी कहां? ज़िंदगी तो समाज़ की बंधक है। और मैं इतनी साहसी नहीं कि ये बंधन तोड़ दूं। मैं कायर हूं, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं। ज़िंदगी बस कट रही है सीने पर रक्खे बोझ के साथ। जाने ये सिलसिला कब तक चलेगा? क्या कभी कुछ अच्छा होगा? पता नहीं? ऐसे हीं ज़िंदगी कट जाएगी क्या? ©Jupiter and its moon हृदय भारी है!
Prashant Mishra
लंबे समय से जो भटकी हुई थी वो ज़िन्दगी पटरी पे आय रही है इक सुकुमार, कली कचनार उमंगे हृदय में उठाय रही है वो भी मेरे प्रति सम्मोहित है, ये संकेतों में बताय रही है एक कुँवारी सी कन्या हृदय के द्वार मेरे खटकाय रही है --प्रशान्त मिश्रा हृदय के द्वार मेरे खटकाय रही है
Neeraj Pandey