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Babita Bharati
गिरता है जो शिखरों से पानी, वो तेरे आंसुओं की धार नहीं। जगमाते हैं जो दूसरों के घरों में दिये, वो तेरे मन के अंधेरों को ललकार नहीं। जीते हैं सब अपने लिए, मर जाते हैं अपने संग। तेरा हिसाब तेरे कर्मों तक ही है, उसमें किसी और की रेज़गारी नहीं। ©Babita Bharati रेजगारी - छोटे पैसे। #hindipoetry #insecurity #Shayari #quoteoftheday #hindiwriters #Nojoto
AK__Alfaaz..
खोया हुआ था, उसका सोलहवें साल का बसंत, वो जेठ की दुपहरी, वो सावन का टिप टिप बरसता पानी, वो शरद पूर्णिमा की रात, वो..और उसका सब कुछ, साँझ-सुबह, चूल्हे के साथ तप रही थी वो, रोटियों की गोलाई मे, अपने अस्तित्व की सीमा तय कर रही थी वो, कुछ आग बची थी सीने में, कुछ को उसने ढ़ाँक दिया था राख मे, कल के लिए, पास ही पड़ी चक्की से याद आया, पीसना अभी बाकी है, और..पिसना,,,अभी बाकी है, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #सपनों_की_रेजगारी खोया हुआ था, उसका सोलहवें साल का बसंत, वो जेठ की दुपहरी, वो सावन का टिप टिप बरसता पानी,
Anita Saini
जीवन की बेगारी में संबंधों की चारदीवारी में कभी समय की लाचारी में ख़ुद से मिलना रहा उधारी में.. ख़ुद से ख़फ़ा हुई कई दफ़ा फिर सँभली दुश्वारी में बिखर गयी ख़्वाहिशें चिल्लर और रेजगारी में.. आज भी ज़िंदगी मुहाल है ज़माने की अनकही अनदेखी पहरेदारी में.! ख़ुद को किस गुनाह की माफी दूँ! ख़ुद पता नहीं किस बात से दुःखी होऊँ किस बात से राजी हूँ एक मुस्कान ओढ़ ली मैंने हर रोग की दवा कर ली मैंने! जीवन की बेगारी में संबंधों की चारदीवारी में कभी समय की लाचारी में ख़ुद से मिलना रहा उधारी में.. ख़ुद से ख़फ़ा हुई कई दफ़ा फिर सँभली दुश्वारी में
Dr Jayanti Pandey
जो रेज़गारी से बचे हैं उनको बेरोजगारी दिवस मनाने दो अपने पौरूष का संबल कर तुम अपना भाग्य जगा डालो। सब संभव है, सब कर सकते हो अपने ऊपर विश्वास करो सीमित संसाधन हो सकते हैं पर क्षमताओं का तो स्वाद चखो। कोई भी काम न छोटा है कोई बारीक है, कोई मोटा है पुरुषार्थी बनो और समझो हर अवरोध एक अवसर होता है। (कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) आज का समय मुसीबतों का समय है। हर कोई अपनी अपनी परिस्थितियों से जूझ रहा है ।ऐसे में बेरोजगारी की समस्या बहुत बड़ी समस्या है। उस पर राजनीति भी
AK__Alfaaz..
कल आसमां से, चमकते सितारों की, चंद रेजगारी गिरी, मेरी हथेलियों पर, मैंने उठा कर, वो दुआओं के नेग, रख लिए अपनी, बुशर्ट की जेब मे, कल के उत्सव मे खरीदने को, खुशियों की रेवड़ियां, — % & कल आसमां से, चमकते सितारों की, चंद रेजगारी गिरी, मेरी हथेलियों पर, मैंने उठा कर, वो दुआओं के नेग, रख लिए अपनी, बुशर्ट की जेब मे,
AK__Alfaaz..
बहती नदी के, किनारे पर रूकी सी रेत, और ...उसमें, चलते पाँवों के, डूबते पद्चिन्ह उसके, उसकी छनकती, पाजेब के दम घोंट रही थी, उसके पाँव के, तलवों मे लिपटी रेत, घूमना चाहती है, पूरी धरती, वो..धरती, जो उसके हिस्से, मात्र रसोई से बिस्तर तक है, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #किंजल_अक्षिता बहती नदी के, किनारे पर रूकी सी रेत, और ...उसमें, चलते पाँवों के,
AK__Alfaaz..
हृदय के मकान मे, इक दिन, उम्मीद की खिड़की से, आशा की इक, नवजात किरण, तुलसी के आँगन मे, उसके आँचल तले, गोद मे उसकी, सर रख...मुस्काने लगी, ममता से तुलसी ने, माथा चूमा, और..अपनी पवित्रता, अपने नेहाश्रुओं संग, उसे थमा दी, हृदय के मकान मे, इक दिन, उम्मीद की खिड़की से, आशा की इक, नवजात किरण, तुलसी के आँगन मे, उसके आँचल तले, गोद मे उसकी,