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Vivek Dixit swatantra
ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे रंग-ए-गुल और बू-ए-गुल दोनों हवा हो जाएँगे आँख से आँसू निकल जाएँगे और टहनी से फूल वक़्त बदलेगा तो सब क़ैदी रिहा हो जाएँगे फूल से ख़ुश्बू बिछड़ जाएगी सूरज से किरन साल से दिन वक़्त से लम्हे जुदा हो जाएँगे कितने पुर-उम्मीद कितने ख़ूबसूरत हैं ये लोग क्या ये सब बाज़ू ये सब चेहरे फ़ना हो जाएँगे अहमद मुश्ताक़ ©Vivek Dixit swatantra मुश्ताक अहमद
Mehfil-e-Mohabbat
ये कौन बोलता है मिरे दिल के अंदरूँ आवाज़ किस की गूँजती है इस मकान में ©Mehfil-e-Mohabbat #WoRaat अहमद रिज़वान