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komal borkar
महान क्रांतिकारक, समाजसुधारक, स्त्री शिक्षणाची मुहूर्तमेढ रोवणारे महान विद्वान पंडित महात्मा ज्योतिबा फुले यांच्या जयंती निमित्त विनम्र अभिवादन. 🙏🙏🙏 एक क्रांतीची मशाल, स्त्री कर्तुत्वाची प्रेरणा, बहुजनांचे कैवारी, दिन दुबळ्यांचा महान सुर्य, समाजसुधारक म्हणजेच महात्मा ज्योतिबा फुले . ज्या महान सुर्याने स्वत:च संपूर्ण जीवन इथल्या बहुजन समाजासाठी खर्ची केल, बहुजनासाठीच नाही तर इथल्या ब्राह्मण वर्गातील स्त्रियांना लढण्याचे सामर्थ्य दिलं.स्त्रि ही जरी ब्राह्मण वर्गातील असली तरी तीलाही बंधने होती, पुरुषप्रधान संस्कृती असल्याने तीलाही हिन दर्जाची वागणूक मिळत होती म्हणून समाजातील सगळ्या स्त्रियांना सन्मानाने जगता यावं यासाठी त्यांनी अथक परिश्रम केले. 1940ला जेव्हा महात्मा ज्योतीबा फुलेंच लग्न माता सावित्रीआई सोबत झाले तेव्हा ज्योतीबा 12वर्षाचे आणि सावित्रीआई अवघ्या 9 वर्षाच्या होत्या, सावित्री आई शिकल्या नव्हत्या,परंतु सावित्रीला शिकण्याच धाडस होतं, त्या लहानपणापासूच कर्तुत्वान होत्या,परंतु त्या काळामध्ये स्त्रिया शिक्षण घेण म्हणजे महापाप समजल्या जात होतं. स्त्रियांना अबला समजल्या जात होत, स्त्री शिकली म्हणजे त्या अक्षरांच्या अळ्या पडतील आणि त्या मग नवऱ्याच्या ताटात पडतील अशा पद्धतीच्या जुलमी नियमांना त्यांना सामोरे जावे लागत होते , त्यांना घराबाहेर पडु देत नव्हते , अशा परिस्थितीत महात्मा ज्योतीबांना समजलं होत की शिक्षणाशिवाय दुसरा कोणताही पर्याय नाही,स्त्रि शिकली तर स्वतंत्र होणार, तीचे स्वतंत्र मत असणार,घरातील मुलां-मुलींना शिकवणार, स्त्रि प्रगत होणार. म्हणून त्यांनी शिक्षणाची सुरूवात स्वत:च्याच घरापासुन केली आणि सावित्रीला शिकवलं. समाजासाठी त्यांनी स्वत:च्या घराचा त्याग केला, वडीलांनी विरोध केला, तरीही न डगमगता फुले दाम्पत्य लढण्यासाठी तत्पर झाले. हे फुले दाम्पत्य म्हणजे चंदनासारख सुंगध देणार होतं, ज्या मनुवादी संस्कृतीमुळे स्त्रिवर अत्याचार केला ,स्त्रिला सती जाव लागे, नवरा मेल्यावर तीच मुंडण केल्या जात होत,तीला दुसर लग्न करण्याचा अधिकार नव्हता , अशा गुलामीत जीवन जगणाऱ्या स्त्रियांना सक्षम करणारे विचार अठराव्या शतकात एखाद्या पुरुषांमध्ये असणे म्हणजे एक महान थोर विचारवंतच होय. स्त्री ही शिकली पाहिजे ,प्रगत झाली पाहिजे म्हणून 1 जानेवारी 1848ला पुण्यात बुधवार पेठेत भिडे यांच्या वाड्यात मुलींसाठी पहिली शाळा सुरू केली , आणि त्या शाळेच्या मुख्याध्यापिका सावित्रीआई ह्या होत्या .शाळा ही 6 मुलींनी सुरु झाली,हळुहळु मुलींची संख्या वाढु लागली फुले दाम्पत्यांना खुप आनंद झाला,आणि त्यांची प्रेरणा वाढत गेली आणि त्यानंतर एकापाठोपाठ एक शाळा सुरू केल्या. परंतु यामुळे मनुवादी लोकांच्या पोटात दुखायला लागलं ,धर्म बुडाला धर्म बुडाला म्हणून ओरडु लागले याकडे दुर्लक्ष करत आपले कार्य सुरळीतपणे चालू ठेवले. इ.स 1849 ला उस्मान शेख यांच्या वाड्यात प्रौढांसाठी शाळा सुरू केली.आणि तेव्हापासून खरी शिक्षणाची सुरुवात झाली, हि शिक्षणाची सुरुवात करत असतांना ज्योतीबांच्या अनेक मित्रपरिवारांचा सहभाग होता. केशवपन प्रथा बंद करण्यासाठी नाह्वाचा संप घडवून आणला, 1853मध्ये बालहत्या प्रतिबंधक ग्रहाची स्थापना केली,भृणहत्त्या टाळावी म्हणुन 1864 ला अनाथ बालकांसाठी अनाथाश्रम चालू केलं ज्योतीबांच हे कार्य अविरतपणे चालू होते. 1865 ला एका काशीबाई नावाच्या बालविधवेच्या मुलाला दत्तक घेतात आणि त्याच नाव यशवंत अस ठेवण्यात येते ,त्याला डॉ बनवतात,यशवंतही समाजासाठी योगदान देत असतो पाणी हि निसर्गाची देणगी आहे, सर्वांना पाणी पिता याव साठी 1868 ला स्वत:च्याच घरी अस्पृश्यांसाठी पाण्याचा हौद चालू केला. इ.स 1876-77 मध्ये खुप दुष्काळ पडला होता, एक वेळच्या जेवणासाठी लोकं वनवन फिरु लागली होती, भुकेने लोकांची जीव जात होते तेव्हा फुले दाम्पत्याने 52अन्नछत्रे चालु केली. महात्मा ज्योतीबा फुलेंना स्वत:च मुल नव्हतं म्हणून त्यांच्या वडिलांनी म्हणजे गोविंदरावांनी दुसर लग्न करण्याचा सल्ला दिला आणि यासाठी सावित्रीआईचा सुध्दा होकार होता तेव्हा ज्योतीबा रागानेच सावित्रीला म्हणाले, "तुही असं म्हणते साऊ " तेव्हा सावित्री हो म्हणतात,आपला 'वारसा ' समोर नेण्यासाठी, तेव्हा ज्योतीबा म्हणतात- की जो माझे कार्य समोर नेणार तो फुल्यांचे नाव चालवील, त्या साठी दुसरं लग्न करण्याची गरज नाही,यावरून महात्मा ज्योतिबांचे किती महान विचार होते हे समजून येते. स्वता 40वर्ष चंदनासारखे झिजले ,सर्वांना स्वतंत्र जगण्याची संधी दिली अशा महान व्यक्तीला 1888 ला महात्मा ही पदवी मिळाली. त्यांच्या या कार्याची दखल घेत कोल्हापूरचे राजरत्न सयाजीराव गायकवाड त्यांच्या कार्याची महान चर्चा बघुन फुले दाम्पत्याला भेटायला आले, त्यांचे कार्य बघुन त्यांना गहिवरून आलं, अशा महान सुर्याच महापरिनिर्वाण 28 नोव्हेंबर 1890 झालं, या महान क्रांतिकारकांचे विचार मात्र संपणार नाही, यासाठी आजच्या तरुण पिढीला सक्षम होण्याची गरज आहे. असे महान क्रांतिकारक या जगात पुन्हा होणे शक्य नाही,परंतु त्यांचे कार्य समोर घेऊन जाण्याच निर्धार करूया आणि त्यांच्या महान विचारांना वदंन करूया. जय ज्योती जय क्रांती ©komal borkar महात्मा ज्योतीबा फुले जयंती
ARTI DEVI(Modern Mira Bai)
अल्लाह का नाम कबीर है! सुरत-फुर्कानि २५ आयत ५८: हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु मानते हैं वह कुरान ज्ञान दाता अल्लाह (प्रभु) किसी और पूर्ण प्रभु (अल्लाह) की तरफ संकेत कर रहा है कि हे पैगम्बर! उस कबीर परमात्मा पर विश्वास रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था। #AlKabir_Islamic #SaintRampalJi ©ARTI DEVI(Modern Mira Bai) #ramadan #IPL2024 #भक्ति #hunarbaaz #शायरी #कॉमेडी #लव #IPL अल्लाह का नाम कबीर है! सुरत-फुर्कानि २५ आयत ५८: हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु
N S Yadav GoldMine
जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 32-50 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं; यह काल का उलट-फेर तो देखो। माधव। निश्चय ही दैव के लिये कोई भी कार्य अधिक कठिन नहीं है; क्योंकि उसने क्षत्रियों द्वारा ही इन शूरवीर क्षत्रिय षिरोमणियों का संहार कर डाला है। 📜 श्रीकृष्ण मेरे वेगशाली पुत्र तो उसी दिन मारे डाले गये, जबकि तुम अपूर्ण मनोरथ होकर पुनः उपप्लव्य को लौट गये थे। मुझे तो शान्तनुनन्दन भीष्म तथा ज्ञानी विदुर ने उसी दिन कह दिया था, कि अब तुम अपने पुत्रों पर स्नेह न करो। है जनार्दन। उन दोनों की यह दृष्टि मिथ्या नहीं हो सकती थी, अतः थोड़े ही समय में मेरे सारे पुत्र युद्ध की आग में जल कर भस्म हो गये। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- भारत। ऐसा कहकर शोक से मूर्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दु:ख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। 📜 उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ दिया। गान्धारी ने कहा- श्रीकृष्ण। है जनार्दन। पाण्डव और धृतराष्ट्र के पुत्र आपस में लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? महाबाहु मधुसूदन। तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत से सेवक और सैनिक थे। 📜 तुम महान् बल में प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षों से अपनी बात मनवा लेने की सामथ्र्य तुम में मौजूद थी। तुमने वेद-षास्त्रों और महात्माओं की बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छा से कुरू कुल के नाश की उपेक्षा की- जान-बूझकर इस वंष का विनाश होने दिया। 📜 यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो। चक्र और गदा धारण करने वाले है केशव। मैंने पति की सेवा से कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से तुम्हें शाप दे रही हूं। गोविन्द। 📜 तुमने आपस में मार-काट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों ओर पाण्डवों की उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओं का भी विनाश कर डालोगे। हैं मधुसूदन। आज से छत्तीसवां वर्ष उपस्थित होने पर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेंगे। 📜 तुम सबसे अपरिचित और लोगों की आंखों से ओझल होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे, और किसी निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे। इन भरतवंषी स्त्रियों के समान तुम्हारे कुल की स्त्रियां भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओं के मारे जाने पर इसी प्रकार सगे-सम्बन्धियों की लाशों पर गिरेगी। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- राजन। वह घोर वचन सुनकर माहमनस्वी वसुदेव नन्दन श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए से गान्धारी से कहा- क्षत्राणी। मैं जानता हूं, यह ऐसा ही होने वाला है। तुम तो किये हुए को ही कह रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णिवंष के यादव देव से ही नष्ट होंगे। 📜 शुभे। वृष्णिकुल का संहार करने वाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवों के लिये भी अवध्य हैं; अतः अपस में ही लड़कर नष्ट होंगे। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। ये सब-के-सब अपने जीवन से निराष हो गये। एन एस यादव।। ©N S Yadav GoldMine #traintrack जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभार
N S Yadav GoldMine
White महाभारत: आश्रमवासिक पर्व एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-20 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📒 जनमेजय ने पूछा - ब्राह्मण। जब अपनी धर्म पत्नी गान्धारी और बहू कुन्ती के साथ नृपश्रेष्ठ पृथ्वी पति धृतराष्ट्र वनवास के लिये चले गये, विदुर जी सिद्धि को प्राप्त होकर धर्मराज युधिष्ठिर के शरीर में प्रविष्ट हो गये और समस्त पाण्डव आश्रम मण्डल में निवास करने लगे, उस समय परम तेजस्वी व्यास जी ने जो यह कहा था कि मैं आश्चर्यजनक घटना प्रकट करूँगा वह किस प्रकार हुई? यह मुझे बतायें। अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले कुरूवंशी राजा युधिष्ठिर कितने दिनों तक सब लोगों के साथ वन में रहे थे? प्रभो। निष्पाप मुने। सैनिकों और अन्तःपुर की स्त्रियों के साथ वे महात्मा पाण्डव क्या आहार करके वहाँ निवास करते थे? वैशम्पायन जी ने कहा । कुरूराज धर्तराष्ट्र पाण्डवों को नाना प्रकार के अन्न-पान ग्रहण करने की आज्ञा दे दी थी, अतः वे वहाँ विश्राम पाकर सभी तरह के उत्तम भोजन करते थे। 📒 इसी बीच में जैसाकि मैनें तुम्हें बताया है, वहाँ व्यास जी का आगमन हुआ। राजन्। राजा धृतराष्ट्रके समीप व्यास जी के पीछे उन सब लोगों में जब उपयुक्त बातें होती रहीं, उसी समय वहाँ दूसरे-दूसरे मुनि भी आये। भारत। उन में नारद, पर्वत, महातपस्वी देवल, विश्वावसु, तुम्बरू तथा चित्रसेन भी थे। धृतराष्ट्र की आज्ञा से महातपस्वी कुरूराज युधिष्ठिर ने उन सब की भी यथोचित पूजा की। युधिष्ठिर से पूजा ग्रहण करके वे सब के सब मोरपंख के बने हुए पवित्र एवं श्रेष्ठ आसनों पर विराजमान हुए। कुरूश्रेष्ठ। उन सब के बैठ जाने पर पाण्डवों से घिरे हुए परम बुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र बैठे। गान्धारी, कुन्ती, द्रौपदी, सुभद्रा तथा दूसरी स्त्रियाँ अन्य स्त्रियों के साथ आस -पास ही एक साथ बैठ गयीं। नरेश्वर। उस समय उन लोगों में धर्म से सम्बन्ध रखने वाली दिव्य कथाएँ होने लगीं। प्राचीन ऋषियों तथा देवताओं और असुरों से सम्बन्ध रखने वाली चर्चाएँ छिड़ गयीं। 📒 बातचीत के अन्त में सम्पूर्ण वेदवेत्ताओं और वक्ताओं में श्रेष्ठ महातेजस्वी महर्षि व्यास जी ने प्रसन्न होकर प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र से पुन: वही बात कही। राजेन्द्र। तुम्हारे हृदय में जो कहने की इच्छा हो रही है, उसे मैं जानता हूँ। तुम निरन्तर अपने मरे हुए पुत्रों के शोक से जलते रहते हो। महाराजा। गान्धारी, कुन्ती और द्रौपदी के हृदय में भी जो दुःख सदा बना रहता है, वह भी मुझे ज्ञात है। श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा अपने पुत्र अभिमन्यु के मारे जाने का जो दुःसह दुःख हृदय में धारण करती है, वह भी मुझे अज्ञात नहीं है। कौरवनन्दन। नरेश्वर। वास्तव में तुम सब लोगों का यह समागम सुनकर तुम्हारे मानसिक संदेहों का निवारण करने के लिये मैं यहाँ आया हूँ। ये देवता, गन्धर्व और महर्षि सब लोग आज मेरी चिरसंचित तपस्या का प्रभाव देखें।l ©N S Yadav GoldMine #love_shayari महाभारत: आश्रमवासिक पर्व एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-20 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📒 जनमेजय ने पूछा - ब्राह्मण। जब अपनी धर्म पत्
N S Yadav GoldMine
अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर सुबह जल चढ़ाना चाहिए आइये विस्तार से जानिए !!🍋🍋 {Bolo Ji Radhey Radhey} वैशाख अमावस्या :- 🌿वैशाख का महीना हिन्दू वर्ष का दूसरा माह होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था। इस वजह से वैशाख अमावस्या का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है। दक्षिण भारत में वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती मनाई जाती है। धर्म-कर्म, स्नान-दान और पितरों के तर्पण के लिये अमावस्या का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी अमावस्या तिथि पर ज्योतिषीय उपाय किये जाते हैं. वैशाख अमावस्या व्रत और धार्मिक कर्म :- 🌿प्रत्येक अमावस्या पर पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए व्रत अवश्य रखना चाहिए। वैशाख अमावस्या पर किये जाने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं. 🌿इस दिन नदी, जलाशय या कुंड आदि में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते हुए जल में तिल प्रवाहित करें। 🌿पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण एवं उपवास करें और किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें। 🌿वैशाख अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है, इसलिए शनि देव तिल, तेल और पुष्प आदि चढ़ाकर पूजन करनी चाहिए। 🌿अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर सुबह जल चढ़ाना चाहिए और संध्या के समय दीपक जलाना चाहिए। 🌿निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन और यथाशक्ति वस्त्र और अन्न का दान करना चाहिए। पौराणिक कथा :- 🌿वैशाख अमावस्या के महत्व से जुड़ी एक कथा पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। प्राचीन काल में धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण हुआ करते थे। वे बहुत ही धार्मिक और ऋषि-मुनियों का आदर करने वाले व्यक्ति थे। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है। धर्मवर्ण ने इस बात को आत्मसात कर लिया और सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास लेकर भ्रमण करने लगा। एक दिन घूमते हुए वह पितृलोक पहुंचा। वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे। पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास के कारण हुई है। क्योंकि अब उनके लिये पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है। यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है। साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो। धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा। इसके बाद धर्मवर्ण ने संन्यासी जीवन छोड़कर पुनः सांसारिक जीवन को अपनाया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई। ©N S Yadav GoldMine #wholegrain अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर सुबह जल चढ़ाना चाहिए आइये विस्तार से जानिए !!🍋🍋 {Bolo Ji Radhey Radhey} वैशाख अमावस्या :- 🌿वैशा