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CK JOHNY
मुँह में रहे न दाँत पेट में रही न आँत मन सदा है भ्रांत। इच्छाएं हुई न शांत। मिटे मन के कल्मष कोई बताये मुझे जा बसुँ किस प्रांत। सतगुरू नगरी जा प्यारे। सतगुर चरणों में मन टिकांत। आशा मनसा
Deepali Singh
मोर की मनसा आसमान से गिरा जो हीरा मिट्टी की मिट गयी सब पीड़ा उड़ते सोन्हे खुशबु का सवेरा रग-रग में जैसे डाले रहा डेरा चिड़ियों की वो डाली वो बसेरा हिलते-डुलते पत्तों का हिलोरा सुनहरे पंखों की वो नीली छाया बूंदों ने मन उसके ठाठ जमाया अपने अंगड़ाई में नभ को समाये झट उठ घुम घुमकर आगे आये गाढ़े काले रंग में गुम झूमे नाचे बादलों से करे बयाँ हाल वो ऐसे मायूस सा सोया रहा आस में तेरे खोया सा रहता पर अपने समेटे बिन तेरे तड़प रहा बिन थिरके पग भी अब थक गए रुके- रुके क्या भाता नहीं तुझे मेरा नृत्य ये नाराज़ हूँ तुझसे मैं भी कब से एक तो आया है इतनी देर से और ऐसे बरसा भी ना वर्षों से। ©Deepali Singh मोर की मनसा
HP
यह एक पुरानी कहावत है कि शंका डायन, मनसा भूत सचमुच ही जब मन में किसी बात के ऊपर शंका, सन्देह, चिन्ता, भय उत्पन्न हो जाता है तो एक प्रकार की डायन साथ हो लेती है। सब जानते हैं कि चिन्ता, चिता की छोटी बहिन है किन्तु शंका चिन्ता की बड़ी बहिन है। जिसे यह डर लग जाता है कि मेरे पीछे भूत पड़ा हुआ है, उसके लिए घड़ा भी भूत बन जाता है। भूतों के उत्पन्न होने का स्थान मन है। मन में भूतों की कल्पना उठी कि पेट में चूहे लोटे। शाम को भूतों की कहानी सुनी कि रात को स्वप्न में मसान छाती पर चढ़ा। भ्रमवश रस्सी को सर्प समझने का उदाहरण वेदान्ती बार- बार दोहराते हैं। अशिक्षित जातियों में भूत प्रेतों पर अधिक विश्वास होता है, उन पर आये दिन जिन्न सवार रहते हैं। जो उन्हें नहीं मानते उनसे वे भी डरते हैं। डरपोक आदमियों के मन में यह विश्वास जमा रहता है कि अमुक घर, पेड़, मरघट, तालाब पर भूतों का डेरा है। वे उन स्थानों में रात बिरात अकेले नहीं जा सकते। यदि जावें तो समझते है कि सचमुच भूत उन्हें दिखाई दें और वे बीमार पड़ जाय। किन्तु ऐसे भी किसान आदि होते हैं जो उन्हीं कठिन भुतही जगहों में अँधेरी रातों में रहते हैं उनका कोई कुछ नहीं बिगड़ता। शंका डायन मनसा भूत
damu _kumawat_01
मत देखो परिंदों की उड़ान जब उड़ान आएंगी जब हम नहीं रहेंगे जब हम नहीं रहेंगे तो जिंदगी जीने का मकसद भी नहीं रहेगा जैसे हो वैसे रहो जय सियाराम ©damesh kumawat मन का भाव मनसा