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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मुक्तक :- मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता । फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता । शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है - यूँ मानों अब देख उसे मुझको मिलती शीतलता ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक :- चंचल मन मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता । फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता । शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुं
Rimpi chaube
मैं हमेशा लिखती रहूंगी प्रिय... कभी तुम्हारी यादों में,कभी तुम्हारी बातों पे कभी शरारत भरी अदा,कभी होंठो की मुस्कान पे मैं हमेशा सुनाती रहूंगी प्रिय... कभी तुम्हारे इश्क की धुन,कभी तुम्हारे प्रेम के गीत कभी तुमसे जुड़े तारों में,गूंजता हुआ जीवन संगीत मैं हमेशा बोलती रहूंगी प्रिय... तुमसे अपने मन की बात,यादों में तेरी कैसे गुजरी रात चाशनी में घुला हुआ सा,कैसा लगता तेरा साथ मैं हेमशा सोचती रहूंगी प्रिय... तुमसे अपने मिलन के पल,विरह में मन क्यूं हैं बेकल साथ तुम्हारा सदियों का,फिर ढूंढे क्यूं तुमको नैना चंचल।। ©Rimpi chaube #हमेशा_प्रिय ❤️🥰 मैं हमेशा लिखती रहूंगी प्रिय... कभी तुम्हारी यादों में,कभी तुम्हारी बातों पे कभी शरारत भरी अदा,कभी होंठो की मुस्कान पे मैं
Sarfaraj idrishi
कागा सब तन खाइयो,। चुन चुन खाइयो माँस ।। दो नैना मत खाइयो। मोहे अच्छे दिन की आस ।। आपका अंधभक्त 🤪 🤪 ©Sarfaraj idrishi कागा सब तन खाइयो,। चुन चुन खाइयो माँस ।। दो नैना मत खाइयो। मोहे अच्छे दिन की आस ।।Sethi Ji sana naaz Sudha Tripathi Parvaiz Ahmed
दूध नाथ वरुण
White क्यों बरसे ये नैना क्या जानूं,जिया लागे न काहे क्या जानूं। क्यों छोड़ गए मुझे मेरे पिया,क्या भूल हुई मोसे क्या जानूं।। ©दूध नाथ वरुण #क्यों #बरसे #ये #नैना
Mahadev Son
ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी माँ का डेरा वैसे तो रोज भटकाता है आज मेरा भी ज़ी करता तुझे भटकाने को बस अब ले चल सपनों में सही बस तू ले चल अब उस बस्ती में जहाँ माँ का डेरा है ©Mahadev Son ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी म
Dil galti kr baitha h
Village Life नैना थे कहां आपके इतने शराबी पहले चेहरा था कहां आपका इतना किताबी पहले आइना तो ज़रा देखिए लबों को चूमने के बाद क्या होंठ थे आपके इतने गुलाबी पहले। Happy Kiss Day ©Dil galti kr baitha h नैना थे कहां आपके इतने शराबी पहले चेहरा था कहां आपका इतना किताबी पहले आइना तो ज़रा देखिए लबों को चूमने के बाद क्या होंठ थे आपके इतने गुलाब
बादल सिंह 'कलमगार'
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- चंचल चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार । दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।। च़चल मन की वो खुशी , देख सके क्या आप । मन ही मन खिलता रहा , सुनकर ये पदचाप ।। चंचल मन ने बाँध ली , आज प्रेम की डोर । कैसे निकलेंगे सजन , नैना है चितचोर ।। चंचल दिखती है पवन , छेड़े मन के तार । आने वाले हैं सजन , लायी खत इस बार ।। चंचल मन वैरी हुआ , करके उनसे प्रीति । सुधि भी वह लेता नहीं , निभा रही मैं रीति ।। २७/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- चंचल चंचल मन की जो कभी , सुनते आप पुकार । दौड़े आते साजना , प्रियतम के ही द्वार ।।