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संजीव निगम अनाम
आंख लगी अकुलाय जिया,सुध भूलि रही बस राह निहारे, आय रहे प्रभु राम सखा सम भ्रात समेत उसी घर द्वारे। आकुल व्याकुल घूमि रही,कित मान करे कित पांव पखारे, बेर बटोरि चखे सबरी,कटु फेंकि दये शहदी ढिंग डारे| संजीव निगम "अनाम" #शबरी
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कौन थी शबरी शबरी की कहानी रामायण के अरण्य काण्ड मैं आती है। वह भीलराज की अकेली पुत्री थी। जाति प्रथा के आधार पर वह एक निम्न जाति मैं पैदा हुई थी। विवाह मैं उनके होने वाले पति ने अनेक जानवरों को मारने के लिए मंगवाया। इससे दुखी होकर उन्होंने विवाह से इनकार कर दिया। फिर वह अपने पिता का घर त्यागकर जंगल मैं चली गई और वहाँ ऋषि मतंग के आश्रम मैं शरण ली। ऋषि मतंग ने उन्हें अपनी शिष्या स्वीकार कर लिया। इसका भारी विरोध हुआ। दूसरे ऋषि इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि किसी निम्न जाति की स्त्री को कोई ऋषि अपनी शिष्या बनाये। ऋषि मतंग ने इस विरोध की परवाह नहीं की। ऋषि मतंग जब परम धाम को जाने लगे तब उन्होंने शबरी को उपदेश किया कि वह परमात्मा मैं अपना ध्यान और विश्वास बनाये रखें। उन्होंने कहा कि परमात्मा सबसे प्रेम करते हैं। उनके लिए कोई इंसान उच्च या निम्न जाति का नहीं है। उनके लिए सब समान हैं। फिर उन्होंने शबरी को बताया कि एक दिन प्रभु राम उनके द्वार पर आयेंगे। ऋषि मतंग के स्वर्गवास के बाद शबरी ईश्वर भजन मैं लगी रही और प्रभु राम के आने की प्रतीक्षा करती रहीं। लोग उन्हें भला बुरा कहते, उनकी हँसी उड़ाते पर वह परवाह नहीं करती। उनकी आंखें बस प्रभु राम का ही रास्ता देखती रहतीं। और एक दिन प्रभु राम उनके दरवाजे पर आ गए। शबरी धन्य हो गयीं। उनका ध्यान और विश्वास उनके इष्टदेव को उनके द्वार तक खींच लाया। भगवान् भक्त के वश मैं हैं यह उन्होंने साबित कर दिखाया। उन्होंने प्रभु राम को अपने झूठे फल खिलाये और दयामय प्रभु ने उन्हें स्वाद लेकर खाया। फ़िर वह प्रभु के आदेशानुसार प्रभुधाम को चली गयीं। शबरी की कहानी से क्या शिक्षा मिलती है? आइये इस पर विचार करें। कोई जन्म से ऊंचा या नीचा नहीं होता। व्यक्ति के कर्म उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं। हम किस परिवार मैं जन्म लेंगे इस पर हमारा कोई अधिकार नहीं हैं पर हम क्या कर्म करें इस पर हमारा पूरा अधिकार है। जिस काम पर हमारा कोई अधिकार ही नहीं हैं वह हमारी जाति का कारण कैसे हो सकता है। व्यक्ति की जाति उसके कर्म से ही तय होती है, ऐसा भगवान् ख़ुद कहते हैं। कहे रघुपति सुन भामिनी बाता, मानहु एक भगति कर नाता। प्रभु राम ने शबरी को भामिनी कह कर संबोधित किया। भामिनी शब्द एक अत्यन्त आदरणीय नारी के लिए प्रयोग किया जाता है। प्रभु राम ने कहा की हे भामिनी सुनो मैं केवल प्रेम के रिश्ते को मानता हूँ। तुम कौन हो, तुम किस परिवार मैं पैदा हुईं, तुम्हारी जाति क्या है, यह सब मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। तुम्हारा मेरे प्रति प्रेम ही मुझे तम्हारे द्वार पर लेकर आया है। कौन थी शबरी
Anjana Gupta Astrologer
दुर्गा सप्तशती में स्पष्ट लिखा है , व्याप्तं तयैतत्सकलम ब्रह्मांडम मनुजेश्वर! महाकाल्या महाकाले महामारी स्वरूपया!! सैव काले महामारी सैव सृष्टिर्भवत्यजा, स्थितिम् करोति भूतानां सैवकाले सनातनी!! भवकाले नृणां सैव लक्ष्मीवर्द्धिप्रदा गृहे, सैवाभावे तथाअलक्ष्मीरविनाशायोपजायते!! अर्थात- महाप्रलय के समय महामारी का स्वरूप धारण करने वाली महाकाली ही इस समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त है ! वे ही समय-समय पर महामारी होती है और वे ही स्वयं अजन्मा होती हुई भी सृष्टि के रूप में प्रकट होती है,वे सनातनी देवी ही समयानुसार सम्पूर्ण भूतों की रक्षा करती है ! इसलिए सभी सनातनियो से निवेदन है कि इस संकट की घड़ी में कल से नित्य " दैवीकवच" का पाठ करे और नित्य दैवी उपासना करें ,वैसे भी शक्ति उपासना का पर्व आ रहा है तो इस मौके का लाभ अवश्य ले!🙏🌹 अंजना ज्योतिषाचार्य दुर्गा कवच
meena mallavarapu
अंधियारी वह रात , सूझे न हाथ को हाथ मेरे मन में भी घना अंधेरा उस काली गहन रात का है भी या नहीं सवेरा! छोटा सा दिया जलाया था नही विश्वास, सह पाएगा तूफ़ान का आक्रोश! कहां वह घनघोर घटा वह चकाचौंध करने वाली बिजली कहां दिए की छोटी सी लौ! छोटी सी पर सशक्त आवाज़ ने कहा दृढ़ लहज़े में आंधी तूफ़ां,बिजली बौछार नहीं बिगाड़ सकते कुछ उस दिए का जो जलता है हृदय के अन्दर आस्था और आत्मविश्वास सका सुरक्षा कवच! सुरक्षा कवच......