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||स्वयं लेखन||
स्वांग रचकर, झूठ की दौड़ में जो रिश्तों को ना बांधना और न स्वयं बंधना जानती, रखती नहीं लालसा वो मूल्यवान साजो - सामान की, आत्मविश्वास से निखरकर चमक उठती है सत्य से परिपूर्ण उसकी बेबाकी। करती है पूरे स्वप्न स्वयं के घर भी बखूबी संभालना है जानती, नहीं सुनती तो केवल अनर्गल बातों की है मनमानी, यूं तो झुकती नहीं,करती नहीं जी हजूरी वो किसी की, हां लेकिन झुका देती है उसे रिश्तों, प्रेम और सत्य की मजबूरी। यूं तो फिजूल की बहस वो करती नहीं, मगर तर्क करने में पीछे भी रहती नहीं, पौरुषता के आगे नतमस्तक वो होती नहीं, मगर निस्वार्थ प्रेम के आगे है झुक जाती । दिखावे और छलावे से है टूट जाती, झूठे प्रेम के भावों से फ़िर नहीं जुड़ पाती। स्वाभिमानी नारी स्वाभिमान से है जीती, स्वतंत्र विचार रख प्रतिदिन आलोचनाओं से है गुजरती। दृढ़ निश्चय से आगे बढ़ हर दर्द पर है विजय पाती, है वो स्त्री स्वर्णिम आभा स्वाभिमान की स्वयं के लिए संयम से है लड़ती । ©||स्वयं लेखन|| स्वांग रचकर, झूठ की दौड़ में जो रिश्तों कोना बांधना और न स्वयं बंधना जानती, रखती नहीं लालसा वो मूल्यवान साजो - सामान की, आत्मविश्वास से नि
कंचन
Amit Singhal "Aseemit"
केवल वही होती हैं स्वर्णिम कामनाएं, जिनमें स्वच्छ होती हैं हमारी भावनाएं। अपनों के सुखमय जीवन की इच्छा करें, जो काम करें, सभी के लिए अच्छा करें। ©Amit Singhal "Aseemit" #स्वर्णिम #कामनाएं
Shailendra Anand
जंरचना दिनांक 13,,११,,२०२३ वार सोमवार समय ््सुबह ९,,००बजे ््््् शीर्षक ्् शीर्षक छाया चित्र मौरपंख में विराजित कृष्ण कन्हैया लाल सेठिया जी सेठ जी अन्नपूर्णा अन्नंअनामय में विराजित अन्नकूट महोत्सव प्रसाद ने संजाया गया श्रीनाथजी मंदिर को मन प्रसन्न है।। ््््् ईश्वर सत्य है अन्नंअनामय देवी भवानी सिंह वाहिनी कूष्माण्डा शुभदास्तु सदा करुणाकरणं श्रीं महालक्ष्मी देवीभ्यों से अपनी रूह मे खो कर प्यार करने वाले ।। श्रीं नाथजी से सुसज्जित श्रीनाथ जी के श्री चरणों में समर्पित अपनत्व करिष्यामि तदपश्यात कर्म भूमि वर्चस्व है ,, अन्नपूर्णा अन्नंअनामय में अन्नकूट प्रसादी ग्रहण में मंगलमय हो,, प्यारा सा जीवन फूलों से सजाया गया है।।्््् ्््््कवि शैलेंद्र आनंद १३नवम्बर २०२३httpshttps://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz://m.facebook.comhttps://m.facebook.com/story.php?story_fbidhttps://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid0SaYbpvrxPdF4gFsocrBaRhNK1yoMJwWhuyrT2Tsf2g8UnC4mg1TyesHcF5nv3bGTl&id=100086162924811&mibextid=Nif5oz है।। ©Shailendra Anand #ShubhDeepawअन्नकूटमहोत्सवव श्रीनाथ नाथद्वारा जी के श्रीचरणों में यह रचना मेरी ्शैलेन्द़ आनंद देवास गन्धर्व नगरी मध्यप्रदेश से ali
Anil Ray
मत हँसा कर जिंदगी! अनिल अकेला है तेरी यादें अब भी मेरी सांसों के है संग.. रूदन बेचकर हास्यास्पद हूँ आजकल मैं तेरे जाने के बाद भी न छुटा वों प्रेम रंग.. हाँ! वों पहले वाली खुशियाँ नही इस पर्व बिन तेरे, यह दीपोत्सव! भी हुआ बेरंग.. बदनाम नही हो जाये प्रेम-गलियाँ प्रिया! बस इसीलिए नही दिखते अब हम तंग.. चल यार आगामी पर्व की अग्रिम बधाइयां कुदरत! तुमको दे खुशी का हर खुशरंग.. ©Anil Ray 🌺 द्वंद्व भ्रम - अकेलापन जिंदगी है 🌺 दिल की ख्वाहिश! तो धड़कन में ही रही कमबख्त! जिंदगी है जी कर चली गयी। सुना है, मातम पर मेरी आये वों चे
Ashutosh Mishra
जब अहसास अपने पराये का खत्म हो जाए। जब इच्छा खोने पाने की खत्म हो जाए,,,,,,,,, जब हार या जीत का अनुभव एक समान हो जाए। जब सारे प्रश्न समाप्त हो जाए,,,,,,,,,,,,,, तो ये जिंदगी का अंत नहीं। तो वहीं से जीवन का स्वर्णिम काल शुरू होता है। जीवन में एक नया अध्याय जुड़ जाता है,,,,,,,,,, अल्फ़ाज़ मेरे ✍️🙏🙏 ©Ashutosh Mishra #GoldenHour जब अहसास अपने प्यारे का खत्म हो जाए। जब इच्छा खोने पाने की खत्म हो जाए। जब हार जीत का अनुभव एक समान हो जाए। जब सारे प्रश्न खत्म
Pratibha Dwivedi urf muskan
*अनुभव* स्वार्थ वश जो अपनापन जताते हैं वो चार दिन में गायब भी हो जाते हैं, इसलिए शुरुआती दोस्ती में मन नहीं लगाना चाहिए ना ही विश्वास करना चाहिए, परिचय जितना पुराना होगा, विश्वास और स्थायित्व भी उसी व्यक्ति से खरा हो सकता है... लेकिन सतर्कता फिर भी जरूरी क्योंकि धोखा हमेशा वही देता है जो रग-रग से वाकिफ होता है। इसलिए ईश्वर को ही ईष्ट बनाओ और उनको ही अभीष्ट भी । ये अनुभव अपने जीवन में सभी को कभी ना कभी हो ही जाता है। कुछ विरले ही होते हैं जो औरों के अनुभव से सीख लेते हैं और वही अक्लमंद हैं बाकी सब अक्लबंद .... क्योंकि काम करके पछताना मूर्खता ही है। कुछ भी करने के पहले दस बार सोचो समझ में आता है। काम करने के बाद का सोचना समय की बर्बादी है। यही बर्बादी रोकने के लिए साहित्य सृजन किया जाता है। इसलिए श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन करते रहना चाहिए। ✍️ प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान© सागर मध्यप्रदेश भारत (17 अक्टूबर 2023) ©Pratibha Dwivedi urf muskan #Dhund #धुंध #विश्वास #धोखा #अपने #साहित्य #प्रतिभाउवाच #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कान© #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कानकीकलमसे #विचार पढ़िए लेखिका
Ravendra
Nitu Singh जज़्बातदिलके
प्रेम की डोरी... प्रेम की डोरी उसकी ही थाली मेँ रह गयी रखी, जब भईया की वीरगति की खबर ले दौड़ी आई सखी। राह तक रही बडी आस से बहना के हाथोँ से थी थाली छूटी, उस दिन आँच गिरी हृदय पर डोरी थी जीवन से ही थी टूटी, गिर पड़ी यकायक जमीन चाटती भईया की प्यारी बहना, टूट गया था स्वर्णिम रिश्तोँ का सुनहरा तब एक गहना, हृदय तार तार हुआ जाता था मन स्तब्ध बस रोता था, विधना अपनी चाल चल गया शायद केवल वह खुश होता था। जमघट लगा था उस घर पर जिसने बेटा जवान एक खोया था, माता ने छाती कूटी थी और बापू सिसक सिसक कर रोया था। कुछ क्षण बीते महारुदन के बीच उठ खडी हुयी प्यारी बहना, और सिसकियां ले लेकर सबको लगी सुनाने थी कहना माँ भारती का सच्चा सेवक था मेरा भाई प्यारा, माता की रक्षा करते करते जो जीवन से भले गया हारा। स्वर्णिम अक्षर से मेरे भईया की गाथा गाई जाएगी, हर बहना अपने भईया को जब रेशम की डोर पहनाएगा। तब रक्षा का वचन सच्चे अर्थोँ मेँ समझ जग पाएगा, माँ भारती की रक्षा मेँ हर युवक जी जान लाएगा, भईया की कलाई पर अब मैँ ना राखी बांध पाऊँगी, पर उसकी अंतिम विदाई पर भी मैँ आँसू नहीँ बहाऊँगी। गर्व सदा मुझे रहेगा अपनी माता के रक्षक भाई पर, माँ भारती के उस सेवक पर और उसकी सेवकाई पर। तब अश्रु पोँछे थे बहना ने जनता ने जयकार लगाई थी, रक्षाबंधन का तब मतलब जाना ऐँसी राखी हमने मनाई थी। ©Nitu Singh(जज़्बातदिलके) #rakshabandhan प्रेम की डोरी... प्रेम की डोरी उसकी ही थाली मेँ रह गयी रखी, जब भईया की वीरगति की खबर ले दौड़ी आई सखी। राह तक रही बडी