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writervinayazad
✍️✍️ कानों के कच्चे और अक्ल के बच्चे कभी बड़े नहीं होते ©writervinayazad ✍️✍️ कानों के कच्चे और अक्ल के बच्चे कभी बड़े नहीं होते #writervinayazad
Mahi
मेरी चाहत को दुल्हन तू , बना लेना मगर सुन ले, जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता। -kv. दस्तक और आवाज कानों के लिए, रुह को सुनाई दे उसे खामोशी कहते हैं.!
Mahi
दस्तक और आवाज कानों के लिए, रुह को सुनाई दे उसे खामोशी कहते हैं.! दस्तक और आवाज कानों के लिए, रुह को सुनाई दे उसे खामोशी कहते हैं.!
Sanjyoti
--💞js💞-- “कानों के पीछे रंगों के निशान छोड़, यादों का बस्ता लिये होली जा रही है ….” 😔 “कानों के पीछे रंगों के निशान छोड़, यादों का बस्ता लिये होली जा रही है ….”. 😔
Mahesh Yogi
दस्तक़ और आवाज़ तो बस कानों के लिए है, जो रूह को सुनाई दे उसे खामोशी कहते हैं...!! ©Mahesh Yogi दस्तक़ और आवाज़ तो बस कानों के लिए है, जो रूह को सुनाई दे उसे खामोशी कहते हैं...!!
Rishabh Arya
जब उसकी जुल्फों से आँख हटाई थी हमने, तब कानों के पीछे से दो तिल झांक रहे थे। जब उसकी जुल्फों से आँख हटाई थी हमने, तब कानों के पीछे से दो तिल झांक रहे थे। ~Rishabh Arya✍️
Asif B. Pathan
ये सुर्ख लब, ये रुखसार, ये मदहोश नजरें , ये नाक की नथनीऔर ये कानों के झुमके...! इतने कम फासलों पर तो मयखाने भी नहीं होते।💞 ये सुर्ख लब, ये रुखसार, ये मदहोश नजरें , ये नाक की नथनीऔर ये कानों के झुमके...! इतने कम फासलों पर तो मयखाने भी नहीं होते।💞
Anushiii Sharma
मेरी तरह मेरी इन बिखरी हुई जुल्फों को भी इंतज़ार है तुम्हारा,, कि किसी रोज तुम आकर अपने हाथों से संवारोगे इन्हें,, ©Heartless Girl ❣❣ ये बिखरी हुई जुल्फें,, ये कानों के झुमके,, और आंखों में मेरे इंतज़ार तुम्हारा,,,❣☆❣ #Hindi #Nojoto
Poet Kuldeep Singh Ruhela
बहुत याद आयेगी वो चिट्ठी बड़े दिनों के बाद जब जब ये धुन सुनाएगी हमारे कानों के पास अच्छे लोग चले जाते है विदा होकर दुनिया से रह जाती हैं उनकी याद दिल में बड़े दिनों के बाद । ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #शायरी बहुत याद आयेगी वो चिट्ठी बड़े दिनों के बाद जब जब ये धुन सुनाएगी हमारे कानों के पास अच्छे लोग चले जाते है विदा होकर दुनिया से
rupesh sharma
असलियत पता नहीं मैं अनजान बना बैठा हूँ, गडू न किसी की आँखों में नक़ाब सिलाय बैठा हूँ, दबाए रक्खा हूँ ज़ुबान को खोल कानों के शामियाने को, वक़्त का इंतजार है बस अभी बेजान बना बैठा हूँ। ©rupesh sharma असलियत पता नहीं मैं अनजान बना बैठा हूँ, गडू न किसी की आँखों में नक़ाब सिलाय बैठा हूँ, दबाए रक्खा हूँ ज़ुबान को खोल कानों के शामियाने को, वक़्त