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Ravi Shankar Kumar Akela

#chandrayaan3 दुनिया की क्या परिभाषा है? दुनिया यदपि अरबी शब्द है परन्तु हिन्दी में धड्ल्ले से प्रयोग होता है। यह एक संज्ञा शब्द है तथा स्त #पौराणिककथा

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Abhishek Yadav

बरसती बूँदें अचानक ठहर गयी, बहती हुई तेज हवा भी थम गई चुपचाप। आपस में गुँथे हुये सब पर्वत ढीले होकर तकने लगे आकाश। उड़ते हुए रेत कण तटस्थ ह

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बरसती बूँदें अचानक ठहर गयी,
बहती हुई तेज हवा भी थम गई चुपचाप।
आपस में गुँथे हुये सब पर्वत
ढीले होकर तकने लगे आकाश।

उड़ते हुए रेत कण तटस्थ हो देखने लगे,
रास्ते सारे मुड़कर आने लगे झील की ओर। 
फिर चहकते हुये जीवों की सब बोलियाँ छीन ली गयीं
और तब उस पल झील की एक लहर जागृत हुई!

वह सोचने लगी...🤔

क्या जन्म और पुनर्जन्म की बहस 
उसके लिए भी है?
क्या उसका किनारे के पत्थरों से बार-बार टकरा जाना ,
पिछले जन्मों का परिणाम है?
या आगे आने वाले जन्मों के लिए,
जमा की जा रही कर्मों की पूँजी है?

यूँ उसका मचलना,
सूरज की किरणों में नाचना,
ये सब क्या वह खुद कर रही है 
या करवाने वाला कोई और ही है?
और वह सिर्फ एक माध्यम मात्र है!

उसको यह जिज्ञासा भी हुई,
कि उसके जीवन का रिव्यू कैसा होगा?

रोज एक ही कार्य समान रूप से करने पर,
निरंतरता के लिए प्रशंसा होगी!
या बार-बार दोहराने पर, 
मौलिकता के अभाव वाली आलोचना होगी?

उसने अपने चारों तरफ घूमकर देखा 
और खुद से पूछ बैठी-
क्या वह सुन्दर दृश्य में टांक दिए जाने के लिए है केवल? 
पहले से तय एक भूमिका निभा देने के लिए है बस?
कभी खुद तय करके किसी धारा में क्या बह पायेगी वह?

उसे पहाड़, हवा, रास्ते, रेत, कण
सब की दिनचर्या एकदम अपने जैसी लगी,
और उनसे जवाब पाने की उम्मीद खोकर 
वह और निराश हो गई।

इन गहरे सवालों के जवाब लहर को
न मिलने थे और न मिले।

रास्ते फिर चलने लगे वैसे ही दिशाहीन, 
जीव फिर से आवाज पा गए और निरर्थक कुछ कहने लगे।
पहाड़ों ने फिर लहरों को घेर लिया,
रेत, कण फिर उड़ने लगे तमाशा समाप्त देखकर।
हवायें फिर से पगलाकर सरसराने लगीं,
और लहरें फिर चल पड़ीं होकर उदास।😢

मगर! चलने के पहले 
एक लहर मेरे पास आयी और तपाक से बोली-
"तुमने फिर मुझमें अपनी छवि खोज ली न ?"😕😍
               -✍️ अभिषेक यादव बरसती बूँदें अचानक ठहर गयी,
बहती हुई तेज हवा भी थम गई चुपचाप।
आपस में गुँथे हुये सब पर्वत
ढीले होकर तकने लगे आकाश।

उड़ते हुए रेत कण तटस्थ ह

Divyanshu Pathak

कुछ लोगों को ब्राह्मणों से तो विशेष समस्या है ही।उनका यह प्रश्न भी है कि श्राद्ध में कौए की खाई हुई खीर हमारे पूर्वजों के पेट मे कैसे पहुँच #YourQuoteAndMine #पाठकपुराण

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श्राद्धपक्ष में करें पितरों के लिए तर्पण
(कल पितृपूर्णिमा हैं) कुछ लोगों को ब्राह्मणों से तो विशेष समस्या है ही।उनका यह प्रश्न भी है कि श्राद्ध में कौए की खाई हुई खीर हमारे पूर्वजों के पेट मे कैसे पहुँच

Mahfuz nisar

शीर्षक : अधूरी है ख़्वाहिश हर इंसान की चाहत होती है,कि वो जो भी जैसे भी चाहे उसे सबकुछ वैसे ही मिले,लेकिन ऐसा अमूमन होता नहीं है,कुछ ऐसी ही

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शीर्षक : अधूरी है ख़्वाहिश
हर इंसान की चाहत होती है,कि वो जो भी जैसे 
भी चाहे उसे सबकुछ वैसे ही मिले,लेकिन ऐसा अमूमन होता नहीं है,कुछ ऐसी ही

Tiya Chauhan

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Parasram Arora

पुनर्जन्म .......

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मुक्ति  चाहिए  मेरे मौन को मेरे शब्दों से
मुक्ति चहिये मेरे अस्तित्व को  मेरे मन से 
मुक्ती चाहिए. मेरे  विवेक को  मेरे अर्जित ज्ञान से 
 और जिस दिन  ये होगा .,कदाचित  वो  महानतम दिन होगा 
क्योकि  उसी  दिन  मेरे  इस जीवन का  पनर्जन्म  भी होगा पुनर्जन्म .......

Parasram Arora

पुनर्जन्म

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यही सनातन सत्य है  कि ......जीवित आदमी ही  मरने में सक्षम  हो सकता है .....लेकिन मुझे  संदेह है कि तुम नहीं मर सकते ......क्यों की  तुम मरने से पहले ही  मर चुके हो .....और ये भी निर्विवादित रूप से  सत्य है  कि मरा हुआ  आदमी  ही पनर्जिवित  हो सकता है पुनर्जन्म

'मनु' poetry -ek-khayaal

पुनर्जन्म... #poem

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Krushnarnav

पुनर्जन्म... #apart #मराठीकविता

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.....आणि 
कधीतरी एकदिवस तो तारा तुटेल... 
तेव्हा तू पुन्हा जन्माला येशील.... 
आणि मला अशीच अचानक भेटशील कुठेतरी...
तू नक्कीच विसरणार नाहीस मला...
पण जरा घाई कर... मी ही तारा झालो तर
हा ही जन्म असाच जायचा...

©Krushnarnav पुनर्जन्म...

#apart
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