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Vandana
एक उम्र के बाद जाने क्यों उसका ख्याल आया,कैसी होगी वो,हाल उसका याद, आया,क्या फुर्सत के पलों में याद उसको आती होगी,या उसके जेहन में कभी जिक्र मेरा होता होगा,काली जुल्फे सुनहरी हो गई होंगी,चेहरा मासूमियत से गंभीर हो गया होगा,वक्त की लकीरें झलक रही होंगी चेहरे की सिलवटों से,जाने कितने रिश्तों के बंधन में बंधी होगी वो,क्या वो वैसी होगी जैसा मैंने सोचा था,,, दिन की दुपहरी में,आधी नींद के झोंकों,में लिख दिया कुछ भी,, कलम कागज और चश्मे को देखकर जो भी विचार आए बस बना दी कुछ पंक्तियां,,,
ashish gupta
लव पर सजा कर जरा सी हंसी तेरे नाम कर दी हमने सारी खुशी तू माने न माने मगर है सच यही जिंदगी तेरे लिए, हमने किया ही क्या है जेठ की दुपहरी में तुझे छाव दिया सावन की बाढ़ से पहले तुझे नाव दिया पौष की रातों में हाथो में अपने सुरज लिए रहे खड़े तू माने न माने है सच यही जिंदगी तेरे लिए किया ही क्या है लव पर सजा कर जरा सी हसीं तेरे नाम कर दी सारी खुशी तुम्हारे होठों पर बनी रहे बसंती पूर्वाही तू रहे लहराती सदा ये कसम उठाई हमने सारा जीवन भूल कर सारी जिंदगी तुझ को सींचा ठोकर खाकर हमने तेरी मुस्कान है बचाई तू माने न माने पर ये है सच्चाई ©ashish gupta लव पर सजा कर जरा सी हंसी तेरे नाम कर दी हमने सारी खुशी तू माने न माने मगर है सच यही जिंदगी तेरे लिए, हमने किया ही क्या है जेठ की दुपहरी में
Anita Saini
आज भी याद है "वो बरगद" जमती थी यारों की महफ़िल! जेठ की दुपहरी में, सुलझा लेते थे वो झगड़े जो दायर होते थे अपनी कचहरी में। वो ताश के पत्ते वो उर्दू, मजलिस पर आपकी फ़रमाइश पर बजते फिल्मी गीत! भुलाए नहीं भूलते बरगद पर चढ़ना नँगें पाँव ! Ac को मात देती, उसकी शीतल छाँव। साथ में तालाब किनारा एक और पसंदीदा हमारा। गुम हो गई हैं जो अतीत के गर्त में तलाश है उन खुशियों की! वो बरगद जमती थी यारों की महफ़िल! जेठ की दुपहरी में, सुलझा लेते थे वो झगड़े जो दायर होते थे अपनी कचहरी में। वो ताश के पत्ते
sonu kishor
अब कठिन हो गया है लड़कियों को! सुनसान रास्तों के बीच से गुजरना। (अनुशीर्षक में पढ़े) ©Sonu yadav अब कठिन हो गया है लड़कियों को, सुनसान रास्ते के, बीच से गुजरना जेठ की दुपहरी में यात्रा लौटते किसी पेड़ के नीचे खड़े हो सुस्ताना जाड़े
Abhijeet
Mahfuz nisar
मज़दूर दिवस चौड़े पंजों वाला, मजबूत पिंडलियों वाला, बग़ैर जूतों का पाँव, मजबूत कंधे पर गमछी, जो वक़्त बेवक़्त, बारिश और धूप में छाता, काम के समय पसीने पोछने में, थक कर बैठ कर भोजन करने में, जेठ की दुपहरी में इस पर लेट कर आराम करने में, तरह तरह से काम आती है, चेहरे पर छितरायी संघर्ष की पीड़ा को अन्वरत मुस्कान से छुपाये, काम की तलाश में हर दिन किसी चौराहे पर खड़ा कर देती है ज़िंदगी, दूसरों के काम पूरी लगन से करना, कुछ मीठी शाबाशी तो कुछ तीखे बोल सुनना, कभी किसी घर से पेट भर भोजन मिलना, कभी सत्तू तो कभी कपड़े में लपेटे कुछ रोटियों को चुपचाप खा कर काम में दुबारा लग जाना, शाम ढलने पर अपने मेहनताने का जोड़-तोड़ करते हुए साइकिल पर गाने गुनगुनाते हुए चलते चले जाना, कुछ एक-आध किलो भर चावल, शेर भर आटा, कुछ दाल,सौ ग्राम तेल, और आध किलो आलू,परिवार के पेट भरने का सामान जुटाते समय उसके आँखों के तेज़ ऐसे होते हैं, जैसे तेज़ हमारे देश के नेताओं की आँखों में शपथ ग्रहण करते समय होती है। लेकिन दोनों तेज़ के भीतर एक गहरी खाई जितनी दूरी है। बहुत प्रेम है इनके मेहनतकश हृदय में, नहीं है इनके घर पर मजबूत छत और प्रयाप्त बिस्तर, फिर भी इनकी नींद बहुत ईमानदार है, ठीक इनके कर्म की भाँति, ससमय आ जाती है। और फिर अगली सुबह अगले काम की तलाश में ये घर से निकल पड़ते हैं। ये मज़दूर हैं, जो संघर्ष के बावजूद मजबूर नहीं, मजबूत बने रहते हैं। अपील: इनके हाथों से चल रहा दुनिया का काम, मनुष्य बनो करो इनका सम्मान, कितनी योजना और लाओगे, जो है उससे ही कर दो इनका कल्याण। मज़दूर दिवस,,,,,। ✍महफूज़ मज़दूर दिवस चौड़े पंजों वाला, मजबूत पिंडलियों वाला, बग़ैर जूतों का पाँव, मजबूत कंधे पर गमछी, जो वक़्त बेवक़्त, बारिश और धूप में छाता,
Vandana
गुरु जी ने 8 मार्च को अपना ब्लड डोनेशन का महान कार्य शुरू किया था,,, गुरु जी ने 8 मार्च को अपना ब्लड डोनेशन का महान कार्य शुरू किया था,,, 35 साल तक उन्होंने अपना कीमती समय और तन में बह रहा कीमती लहू का एक-एक