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Sudhir Majoka
अच्छे दिन के चक्कर में उम्र गुजर जाती हैं.. फिर पता चलता है जो गुजर गए वहीं अच्छे दिन थे.. ©Sudhir Majoka जो गुजर गए वही अच्छे दिन थे,
Sagar Parasher
ना निकलने दिया एक भी आँसू, जब वो दूर हमसे जा रहे थे। एक एक कदम बढ़ाते हुए, मेरे सपनों को दफ़ना रहे थे। हम-नवाई के मंजर थे हर कहीं, बस हम चलते जा रहे थे। इतनी भी नकारा ना की थी मोहब्बत, जो धोखे हम ये खा रहे थे। ना पलट कर देखा उसने एक बार भी, हम ना नजरें उनसे हटा पा रहे थे। आंखों में उफनता समन्दर था, और वो वादे मुझे याद आ रहे थे। कहते थे धूप हो या फिर हो छांव, हर सुख दुख में साथ निभाएंगे। वो सपना था या ये सपना है, कैसे खुद को हम समझाएंगे। वो जो फ़ूलों से सहेजे थे सपने, कैसे उनको हम दफ़नाएंगे? हंसेगा आलम जब भी देखकर, कैसे उनको हम बतलाएंगे? अब ना सीखा किसी से मैंने लिखना, जाने ज़माना क्या पढ़ लेता है। जब जब लिखता हूँ मैं अपने दर्द को, उसे वो अपनी ही कहानी कहता है। ©Sagar Parasher ना निकलने दिया एक भी आँसू, जब वो दूर हमसे जा रहे थे। _Sagar Parasher 31.03.2024
Sagar Parasher
ना निकलने दिया एक भी आँसू, जब वो दूर हमसे जा रहे थे। एक एक कदम बढ़ाते हुए, मेरे सपनों को दफ़ना रहे थे। हम-नवाई के मंजर थे हर कहीं, बस हम चलते जा रहे थे। इतनी भी नकारा ना की थी मोहब्बत, जो धोखे हम ये खा रहे थे। ना पलट कर देखा उसने एक बार भी, हम ना नजरें उनसे हटा पा रहे थे। आंखों में उफनता समन्दर था, और वो वादे मुझे याद आ रहे थे। कहते थे धूप हो या फिर हो छांव, हर सुख दुख में साथ निभाएंगे। वो सपना था या ये सपना है, कैसे खुद को हम समझाएंगे। वो जो फ़ूलों से सहेजे थे सपने, कैसे उनको हम दफ़नाएंगे? हंसेगा आलम जब भी देखकर, कैसे उनको हम बतलाएंगे? अब ना सीखा किसी से मैंने लिखना, जाने ज़माना क्या पढ़ लेता है। जब जब लिखता हूँ मैं अपने दर्द को, उसे वो अपनी ही कहानी कहता है। ©Sagar Parasher ना निकलने दिया एक भी आँसू, जब वो दूर हमसे जा रहे थे। _Sagar Parasher 31.03.2024
Mukesh Poonia
वो दिन, वो नजारा भी आएगा समुद्र है अगर तो किनारा भी आएगा जिंदगी की परेशानियों से हार मत जाना ऐ दोस्त तुझसे मिलने एक दिन वो सितारा भी आएगा . ©Mukesh Poonia #lakeview वो #दिन, वो #नजारा भी आएगा #समुद्र है अगर तो #किनारा भी आएगा जिंदगी की #परेशानियों से हार मत जाना ऐ #दोस्त तुझसे मिलने एक दिन वो
Sanjeev Suman
वो दिन थे बेहद खास, जब मम्मी पापा होते थे पास, अब तो जिंदगी से है बस यही आस, दोबारा बचपन लौट आए मेरे पास..! न थी चिंता न थी कोई फिक्र, याद आया आज वो बिता लम्हा, जब तुमने किया बचपन का जिक्र..! ©Sanjeev Suman #bachpan #वो दिन थे बेहद खास
Arora PR
वो भी क्या दिन थे. ज़ब हम भी यारों क़ी महफिल मे शिरकत करते थे फिर वक़्त क्या बदला कि सब कुछ. बदल गया आज हम अपने बिस्तर पर पड़े पड़े या तो आसमान के तारो से मुख़ातिब होते है.. याफिर अपनी मंद होती हुई साँसो क़ो गिनते है ©Arora PR वो भी क्या दिन थे
Manthan's_kalam
" एक दिन जब तुम लौटोगे " कि एक दिन जब तुम लौटोगे और मै ना दिखुं तो क्या करोगे.....? उस डायरी में लिखी मेरी अधुरी इच्छाओं को क्या तुम पुरी कर पाओगे । मेरे रहते जो मुझे ना दे सके क्या मेरे जाने के बाद वो मुजतक पहुंचा पाओगे । कि एक दिन जब तुम लौटोगे और मुझे ना देख , मुझे कहां-कहां तलाशोगे। जहां हम अक्सर मिला करते थे मुझे धुंडते हुवे क्या वहां फिर आओगे। जहां ले जाना चाहते थे मुझे अब मुझे वहां केसे ले जाओगे। कि एक दिन जब तुम लौटोगे और मुझे ना देख तुम मेरे बारे में किस-किस को पुछोगे जो जानता होगा मेरे बारे में क्या तुम उनके तक पहुंच पाओगे। जो बताएगा मेरे बारे में उनकी मदद से क्या तुम मुझ तक पहुंच पाओगे। एक दिन जब तुम लौटोगे और मुझे ना देख......... ©Manthan's_kalam एक दिन जब तुम लौटोगे part 1
Pinki Khandelwal
विघार्थी जीवन यूं तो बेखौफ निड़र होते हैं बच्चे, अपने सपनों से अनजान अपनी ही मस्ती में मस्त रहते, जब मन करता पढ़ते और खेलते हैं, थोड़े शरारती थोड़े नौटंकीबाज भी होते हैं, ढाल दो जिस सांचे में ढल जाते हैं, प्यार अपनेपन की भाषा को वो जानते हैं, लड़ाई झगड़ा पल भर में भूल जाते हैं, ये बच्चे तो कागज के फूल है, जो मनचाही राहों पर मुड़ जाते हैं, बेशक मां बच्चो की सबसे बड़ी गुरु कहलाती है, फिर भी गुरु से मिला ज्ञान का भी उतना महत्व है, इसलिए बच्चों को विघालय में भेजा जाता है, ताकि सीख सकें शिष्टाचार अनुशासन का भी वो पाठ, आत्मविश्वासी हो बोलने में सशक्त बने, और अपनी पहचान बनाएं, शुरुआती दिनों में बच्चों को होती है मुश्किल, जाने में करते कभी कभी आनाकानी है, पर धीरे धीरे नये नये दोस्त बनाते, क ख ग बोलना भी सीख जाते, सच कहूं तो स्कूल लाइफ बेस्ट लाइफ होती है, यह बात बाद में सबको समझ आती है, और फिर, उन दिनो को याद कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, वो टाई बेल्ट दो चुटिया रिबन लगा कैसे कार्टून लगते थे, और मटक मटक कर जो हम स्कूल जाते थे, जाते जाते किसी की खिड़की पर पत्थर फैक आते थे, तो कभी स्कूल बहाने खेलने चले जाते थे, आज बड़े होकर स्कूल जाने का मन करता है, और पहले स्कूल जाने से भी डर लगता था, हम भी कितने अजीब है, जो बीत गया समय उसको याद कर मुस्कुराते हैं और जो चल रहा समय उसे रो रोकर बिताते हैं। ©Pinki Khandelwal वो दिन आज भी याद आते हैं...।