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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- हर वजह आप लड़ने की बनते रहे । और वह हम हँसी में बदलते रहे ।।१ जिनको भोला बहुत तुम समझते रहे । वो दिलों को चुराकर निकलते रहे ।।२ एक वादे पर तेरे मेरे सनम । रात भर नींद में आज चलते रहे ।।३ खिडकियां बन्द जो आप करती गई । देख तस्वीर तेरी मचलते रहे ।।४ आज हमसा नही था दिवाना यहाँ । बात लेकर यही वो अकड़ते रहे ।।५ हो रही आज हिंसा नगर दर नगर । वो मगर बात से इस मुकरते रहे ।।६ झूठ की आज थाली परोसी गई । और सभी चाव से स्वाद चखते रहे ।।७ सब बने आज हमदर्द इंसान के । नाम मरहम लिया फिर खुरचते रहे ।।८ बेंचकर चटपटी वो खबर देख लो । आसमानों से ऊपर उठते रहे ।।९ हम समझते जिन्हें थे इंसान है । अब वही रंग इतने बदलते रहे ।।१० वो इसे आज व्यापार कहते सुनों तुम जिसे देख अखबार कहते रहे ।। ११ आज तो मानिए बेवजह थी वजह । जिसलिए आप हमसे झगड़ते रहे ।।१२ वो अगर आज आए हमारे यहाँ । तो प्रखर दीद को ना तरसते रहे ।।१३ २९/०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- हर वजह आप लड़ने की बनते रहे । और वह हम हँसी में बदलते रहे ।।१ जिनको भोला बहुत तुम समझते रहे । वो दिलों को चुराकर निकलते रहे ।।२
ग़ज़ल :- हर वजह आप लड़ने की बनते रहे । और वह हम हँसी में बदलते रहे ।।१ जिनको भोला बहुत तुम समझते रहे । वो दिलों को चुराकर निकलते रहे ।।२ #शायरी
read moreAshutosh jain
छोले चावल सा प्रेम... उस दिन तुम मेरे घर मेरे बनाए हुए छोले चावल खाने आने वाली थी.... बहुत घबराहट थी मन में कि पता नही तुम्हें कैसे लगेंगे ....इंतजार ही रहा था कि एक स्कूटी मेरे घर के बाहर आ कर रूकी ! मैंने तुम्हे खिड़की से देख लिया था ... जैसे ही दरवाजा खोला तुमने मुझसे कुछ कहा था लेकिन सच बताऊं तो मैं आपको देखने में इतना व्यस्त हो गया था कि कुछ सुना ही नहीं..... खुशी घर के अंदर आना मना है क्या अभय ?? अभय अरे नहीं नहीं माफ करना ... आओ ना बैठो.. ... (बहुत शर्मिंदा हुआ था उस दिन ) तुम्हे याद है उस दिन तुमने महरून रंग का सलवार सूट पहना हुआ था..... तुम्हारे माथे की काली बिंदी बहुत फब रही थी तुम पर...लेकिन मेरी हिम्मत नही हुई थी कि तुम्हें बता दूं कि तुम कितनी प्यारी लग रही हो....बातों बातों में एक घंटा कब बीत गया पता ही नहीं चला .... खुशी छोले चावल खिलाने का विचार नहीं है क्या अभय ??? (एक बार फिर शर्मिंदा हुआ मैं...) थाली परोसने के बाद हम खाने बैठे .. खुशी अभय छोले चावल बहुत तीखे हैं...लेकिन बहुत स्वादिस्ट बने हैं... मैं असमंजस में था कि तुम्हारी आंखों से आंसू बह रहे थे और फिर भी तुम्हें पसंद आए छोले चावल ... खुशी अभय मुझे तीखा बहुत पसंद है .... अभय खुशी तुम्हारे लिए गुलाबजामुन और रसमलाई भी लाया हूं.... तुमने कुछ कहा नहीं बस एक टक मुझे देखती रही और मेरे पास आकर अपने हाथों से मुझे एक गुलाबजामुन खिला दिया ...चासनी मैं डूबी हुई तुम्हारी नर्म हथेलियों को महसूस कर पा रहा था . अभय खुशी फिर कब आओगी?? खुशी अभय अभी मेरे जाने का समय हो रहा है मुझे जाना पड़ेगा .. लेकिन मैं वादा करती हूं कि मैं फिर आऊंगी तुमसे मिलने और ज्यादा वक्त लेकर ..तुम बहुत प्यारे हो ऐसे ही रहना ... मेरे गालों को चूमते हुए तुमने कहा ... खुशी ...खुशी ...खुशी... नींद टूट गई... मैं फिर तुम्हारी तस्वीर को सीने से लगाकर सपना देख रहा था ... ©Ashutosh jain छोले चावल सा प्रेम... उस दिन तुम मेरे घर मेरे बनाए हुए छोले चावल खाने आने वाली थी.... बहुत घबराहट थी मन में कि पता नही तुम्हें कैसे लगेंग
छोले चावल सा प्रेम... उस दिन तुम मेरे घर मेरे बनाए हुए छोले चावल खाने आने वाली थी.... बहुत घबराहट थी मन में कि पता नही तुम्हें कैसे लगेंग #लव
read moreप्रशान्त पंडित (जौनपुरिया लौंडा)
ताली बजाना, थाली बजाना, और अद्भुत दिया जलाना, इतिहास मे अमिट हो गया कुछ यु, कि विश्व का डगमगाना, और भारत का जगमगाना #थाली
Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
लो बजा दी सबने ताली व थाली कोरोना की खत्म होगी अब दादी ज़रा वक्त तो गुजरने दो मेरे साथी कोरोना की हो जायेगी अब बर्बादी दिल से विजय ताली,थाली
ताली,थाली
read moreShreya Joshi
तरह तरह से दिखलाता भारत, अनेकता में एकता के रंग। आज दिखलाऊं मैं, भारतीय थाली के रंग, चलो मेरे संग। हर प्रांत में थाली बदलती रंग, कहीं बाटी तो कहीं खमण की होती जंग। गुजरात में सूरत वाले, तो यूपी में काशी वाले, जानते खाने का असली रंग। तरह तरह से दिखलाता भारत, अनेकता में एकता के रंग। ©Shreya Joshi # थाली के रंग
# थाली के रंग #कविता
read moreAnjali Jain
सच्चाई औऱ अच्छाई को नाम औऱ दाम से नापने वालों, नाम औऱ दाम वाले तो सच्चाई और अच्छाई में निरे कंगले निकले!! #थाली की कहानी#१७.०९.20
#थाली की कहानी१७.०९.20
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