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Asif B. Pathan
जानता हूं तुम सो गए होगे मुझे पढ़ते हुए, मग़र मैं रात भर जागुंगा तुम्हें लिखते हुए....💞 जानता हूं तुम सो गए होगे मुझे पढ़ते हुए, मग़र मैं रात भर जागुंगा तुम्हें लिखते हुए....💞
Internet Jockey
देखा है कभी ख़ुदा को ख़ुद नमाज़ पढ़ते हुए कभी मां को बच्चों के लिए दुआ करते देखना -Internet Jockey देखा है कभी ख़ुदा को ख़ुद नमाज़ पढ़ते हुए कभी मां को बच्चों के लिए दुआ करते देखना #Women #Maa #Mother
RICKY Mishra
अख़बार पढ़ते हुए भला कौन मुस्कुराता होगा, जरुर वो हर ख़बर की हकीकत जानता होगा ~@tasveer_lafzon_mein #N~148 अख़बार पढ़ते हुए भला कौन मुस्कुराता होगा, जरुर वो हर ख़बर की हकीकत जानता होगा #Instagram #akhbaar #Newspaper #New #nojoto #nojotohi
Ayush kumar gautam
पढ़ते हुए हम आखिरी पन्ने पर पहुंचे तो महसूस हुआ ये किताब तो हमें जिंदगी का फलसफा सिखा गयी जिंदगी हमेशा वो नहीं जो हम सोंचते हैं वो किताब तो जीने के नये ढंग भी बता गयी पढ़ते हुए.....
Bhuwnesh Joshi
पढ़ते हुए खत पुराने आज हमने अश्क बहाए हैं देखना आज बारिश होगी फिर से कहीं दूर शहर में -भुवनेश ©Bhuwnesh Joshi पढ़ते हुए खत पुराने आज हमने अश्क बहाए हैं देखना आज बारिश होगी फिर से कहीं दूर शहर में -भुवनेश #window #bhuwnesh #Hindi #hindiquotes #Nojoto
Pnkj Dixit
तेरी तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए जिंदगी बीता दूँ तू एक बार फिर से मुझको अपनी बाहों में ले ले १९/०९/२०१९ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' तेरी तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए जिंदगी बीता दूँ तू एक बार फिर से मुझे अपनी बाहों में ले ले १९/०९/२०१९ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' #शायरी
REETA LAKRA
मातृ दिवस जब कोई खड़ा न हो साथ माँ थाम लेती हाथ रोती हों आँखें तो माँ चुप कराती जब नींद सताया करती माँ सर पर हाथ फेरती तुतरे बोल बोलती सुनती मा पा बोलना सिखाती प्रथम पाठशाला प्रथम शिक्षिका बनती कान पकड़ती गाल सहलाती क्या सही क्या गलत बताती जीत में शाबासी हार पर 'और एक बार' कह हौसले बढ़ाती माँ तो बस ऐसी ही होती माँ तो बस ऐसी ही होती ६४/३६५@२०२२ मदर्स डे पर कविताएँ पढ़ते हुए मेरे मन में हमेशा विचार उत्पन्न होता है कि बिन माँ की औलादों पर क्या बीतती होगी क्या कल्पना करते होंगे वे अपनी
REETA LAKRA
माँ का मुझ बेटी से रिश्ता, पता नहीं ; था भी कि नहीं ? बेटी ने कभी न देखी माँ ; न कभी पलट कर माँ आई एहसास न हुआ कभी, कहीं है पास, छोड़ दिया ; दूर गई, बेटी से भी कौन खास ? ममता न दी पर चलती रही सांस, माँ न रही माँ ; किससे रखती आस ? शब्द नहीं बयां कर सकते यह रिश्ता, पर यहाँ तो रिश्ता ही नहीं ; शब्द की क्या ज़रूरत ? सबसे सच्चा माँ का रिश्ता, कहाँ गई फिर मेरी माँ ? सबसे गहरा माँ का प्यार , गहराई में डुबा गई क्यों मेरी माँ ? अल्फाज़ की ज़रूरत नहीं माँ के लिए, पर क्या मेरी ज़रूरत नहीं मेरी माँ ? ज़िंदगी के थपेड़े सहने को छोड़ मुझे, शायद मुस्कुराती निकल गई मेरी माँ ६०/३६५@२०२२ मदर्स डे पर कविताएँ पढ़ते हुए मेरे मन में हमेशा विचार उत्पन्न होता है कि बिन माँ की औलादों पर क्या बीतती होगी ? क्या सोचते होंगे वे ? यह एक