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R K Prasad
White ख़ुश बयानी के सलीक़े भी उछाले जायेंगे कुछ कहेगा शेर कुछ मानी निकाले जाएंगे हम तो वो तारीख़ हैं ज़हनों में रहना है जिसे काग़ज़ी पुर्जे नहीं जो फाड़ डाले जाएंगे जिस ज़मीं पर मैं खड़ा हूं वो मेरी पहचान है आप आंधी हैं तो क्या मुझको उड़ा ले जाएंगे अब तो ये आदाब ए महफ़िल ही करेंगे फ़ैसला तुम निकाले जाओगे या हम निकाले जाएंगे आप बस किरदार हैं अपनी हदें पहचानिए वरना भी एक दिन कहानी से निकाले जाएंगे ©R K Prasad #Thinking birthday wishes for father
#Thinking birthday wishes for father
read moreKumar Sharvan
White जिंदगी वह है जो जी रहे यह करेंगे वह करेंगे तो ख्वाब है। 🥺😔💔 ©Kumar Sharvan #Thinking status for sad
#Thinking status for sad
read moreprakash singh
White Today's is BLACK DAY for all INDIAN 14th January ©prakash singh #Thinking status for sad
#Thinking status for sad
read moreSubham Krishna
White Kisi ke bhi chle jaane se ye zindagi khtm nhi hoti. ©Subham Krishna #Thinking status for sad
#Thinking status for sad
read moreSajid kashmiri
White Asalamualaikum And Good morning to all my nojoto friends subah ki yaad taaza hoooti hai jasay ki perinday rootay hai shaam ko jab sootay hai apni riziq khootay hai ©Sajid kashmiri #Thinking status for sad
#Thinking status for sad
read moreBhavesh Shrivesh
Mood.. Accha khaasa mood hota hai fir achanak se koi purani baatien yaad aa jaati nai.. ©Bhavesh Shrivesh #Thinking status for sad
#Thinking status for sad
read moreSHRAVANAKUMAR HANAMAT GOUDAR
White ಕಾಲ ಬಿಟ್ಟರು ಕರ್ಮ ಬಿಡಲ್ಲ ©SHRAVANAKUMAR HANAMAT GOUDAR #Thinking TRUE WORDS
#Thinking TRUE WORDS
read moreFahim Mansuri
White hi everyone ©Fahim Mansuri #Thinking love poetry for her
#Thinking love poetry for her
read moreअक़श
White अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय #डॉ_विवेक_आर्य (बंसत पंचमी को वीर हकीकत राय के बलिदान दिवस पर विशेष रूप से प्रकाशित) पंजाब के सियालकोट मे सन् 1719 में जन्में वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। बड़े होने पर आपको उस समय कि परम्परा के अनुसार फारसी पढ़ने के लिये मौलवी के पास मस्जिद में भेजा गया। वहाँ के कुछ शरारती मुस्लमान बालकों ने हिन्दू बालको तथा हिन्दू देवी देवताओं को अपशब्द कहते रहते थे। बालक हकीकत उन सब के कुतर्को का प्रतिवाद करता और उन मुस्लिम छात्रों को वाद-विवाद मे पराजित कर देता। एक दिन मौलवी की अनुपस्तिथी मे मुस्लिम छात्रों ने हकीकत राय को खूब मारा पीटा। बाद मे मौलवी के आने पर उन्होने हकीकत की शिकायत कर दी कि उन्होंने मौलवी के यह कहकर कान भर दिए कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। यह सुनकर मौलवी नाराज हो गया और हकीकत राय को शहर के काजी के सामने प्रस्तुत कर दिया। बालक के परिजनो के द्वारा लाख सही बात बताने के बाद भी काजी ने एक न सुनी और शरिया के अनुसार दो निर्णय सुनाये एक था एक था सजा-ए-मौत है या दूसरा था इस्लाम स्वीकार कर मुसलमान बन जाना ।माता पिता व सगे सम्बन्धियों ने हकीकत को प्राण बचाने के लिए मुसलमान बन जाने को कहा मगर धर्मवीर बालक अपने निश्चय पर अडि़ग रहा और बंसत पंचमी २० जनवरी सन 1734 को जल्लादों ने 12 वर्ष के निरीह बालक का सर कलम कर दिया। वीर हकीकत राय अपने धर्म और अपने स्वाभिमान के लिए बलिदानी हो गया।और जाते जाते इस हिन्दू कौम को अपना सन्देश दे गया। वीर हकीकत कि समाधी उनके बलिदान स्थल पर बनाई गई जिस पर हर वर्ष उनकी स्मृति में मेला लगता रहा। 1947 के बाद यह भाग पाकिस्तान में चला गया परन्तु उसकी स्मृति को अमर कर उससे हिन्दू जाति को सन्देश देने के लिए डा. गोकुल चाँद नारंग ने उनका स्मारक यहाँ पर बनाने का आग्रह अपनी कविता के माध्यम से इस प्रकार से किया हैं। हकीकत को फिर ले गए कत्लगाह में हजारों इकठ्ठे हुए लोग राह में| चले साथ उसके सभी कत्लगाह को हुयी सख्त तकलीफ शाही सिपाह को| किया कत्लगाह पर सिपाहियों ने डेरा हुआ सबकी आँखों के आगे अँधेरा| जो जल्लाद ने तेग अपनी उठाई हकीकत ने खुद अपनी गर्दन झुकाई| फिर एक वार जालिम ने ऐसा लगाया हकीकत के सर को जुदा कर गिराया| उठा शोर इस कदर आहो फुंगा का के सदमे से फटा पर्दा आसमां का| मची सख्त लाहौर में फिर दुहाई हकीकत की जय हिन्दुओं ने बुलाई| बड़े प्रेम और श्रद्दा से उसको उठाया बड़ी शान से दाह उसका कराया| तो श्रद्दा से उसकी समाधी बनायी वहां हर वर्ष उसकी बरसी मनाई| वहां मेला हर साल लगता रहा है दिया उस समाधि में जलता रहा है| मगर मुल्क तकसीम जब से हुआ है वहां पर बुरा हाल तबसे हुआ है| वहां राज यवनों का फिर आ गया है अँधेरा नए सर से फिर छा गया है| अगर हिन्दुओं में है कुछ जान बाकी शहीदों बुजुर्गों की पहचान बाकी| शहादत हकीकत की मत भूल जाएँ श्रद्दा से फुल उस पर अब भी चढ़ाएं| कोई यादगार उसकी यहाँ पर बनायें वहां मेला हर साल फिर से लगायें| ©अक़श #Thinking motivational thoughts for students
#Thinking motivational thoughts for students
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