Find the Latest Status about सांध्यगीत from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, सांध्यगीत.
Nitesh Sinwal
मायूस भी हूँ मौन भी हूँ खुद से अभी अनजान भी हूँ राह अकेली है डगर ज़रा विरान है खुद पर भरोसा है मगर मन में भावनाओं का अजब सा तूफ़ान है कलम चल रही है पर शब्दों के खेल से अभी अनजान हूँ खेल है शब्दों का या खेल है दुनिया का इससे ज़रा अबोध हूँ अबोध बालक हूँ मैं या नासमझ कोई मूर्ख हूँ ? मूर्ख हूँ तो क्यों हूँ ? करते तभी लोग मेरा उपहास है क्यों ? उपहास करना फ़ितरत है उनकी या मुझे में ही कोई कमी है ऐसी ! कमी है भी तो क्या कमी है ? और ये कमी है क्यों? न जाने मन मेरा सवालों के इस कटहरे में क्यों खड़ा है यूँ ? ©Nitesh sinwal #astory @सांध्यगीत #nohappynosad
Insprational Qoute
कवयित्री:- महादेवी वर्मा कविता -सांध्यगीत( सखि मैं हूँ अमर सुहाग भरी!) प्रथम पंक्ति - सखि मैं हूँ अमर सुहाग भरी! अंतिम पंक्ति - दुख से, रीति जीवन-गगरी। सखि मैं हूँ अमर सुहाग भरी!विरह के रंग से रंगी लाल हरी! नित नित पिया को बुलावा भेज,मानो तन मन से मैं हार रही....... सम्पूर्ण कविता अनुशीर्षक में पढ़े😊 सखि मैं हूँ अमर सुहाग भरी!विरह के रंग से रंगी लाल हरी! नित नित पिया को बुलावा भेज,मानो तन मन से मैं हार रही....... कलकल करती बदली आज पिया क
रजनीश "स्वच्छंद"
कैसे कह दूं नीरस तुझको।। खुशियों के मोती चुने तुमने, हर ख़्वाब मेरे हैं बुने तुमने, ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको। हर राह मेरी है गढ़ी तुमने, मन की पुस्तक भी पढ़ी तुमने। ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको। अश्कों को रोका हंस कर, हमदर्द हमसाया बन कर। ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको। मैं नाव तो तू पतवार रहा, मैं गीता तो तू सार रहा। ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको। खुशी में भी पीड़ा में भी, अल्हड़ता और क्रीड़ा में भी। ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको। मैं दीप रहा तू बाती था, मैं सांध्यगीत तू प्राती था। ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको। मैं नग्न रहा आवरण तू मेरा, मैं तुच्छ रहा आचरण तू मेरा। ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको। मैं एक कवि तू कविता मेरी, मैं भाव रहा तू भविता मेरी। ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको। मैं एक कलम तुम रोशनाई, तुम छंद दोहा और सवाई। ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको। तू है, जो आज मैं लिखता हूं, शब्द-श्रृंगृत यहां जो बिकता हूँ। ऐ जीवन कैसे कह दूँ नीरस तुझको। जिह्वा मेरी तू नेपथ्य से बोल रहा, आंखें मेरी तू सबको है तोल रहा। ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको।। वर्णन ये कहाँ समाये पन्नो में, मेरी खूबी कहाँ है सेठ धन्नो में। ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तूझको। जो आज हुआ वाचाल जाता हूँ, शब्दों का अंत कहीं न पाता हूँ। बोलो फिर कैसे कह दूं नीरस तुझको।। ©रजनीश "स्वछंद" कैसे कह दूं नीरस तुझको।। खुशियों के मोती चुने तुमने, हर ख़्वाब मेरे हैं बुने तुमने, ऐ जीवन कैसे कह दूं नीरस तुझको। हर राह मेरी है गढ़ी तुमने