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Poonam Suyal

गद्यांश 1 ललक्ष्य तय है लक्ष्य तय है मेरा नहीं है किसी बात का डर चल चुकी हूँ मैं मंज़िल की ओर परिणाम की मुझको नहीं है फ़िकर

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लक्ष्य तय है 

(अनुशीर्षक में पढ़ें) गद्यांश 1

ललक्ष्य तय है 

लक्ष्य तय है मेरा 
नहीं है किसी बात का डर 
चल चुकी हूँ मैं मंज़िल की ओर 
परिणाम की मुझको नहीं है फ़िकर

Poonam Suyal

हास्य रस चले थे मोहब्बत करने उनकी झील सी आँखों के हम तो बरबस कायल हो गए जानकर कि उन तिरछी निगाहों का निशाना था कोई और, हम तो घायल हो गए लगा हमें कि अपनी मोहब्बत का इज़हार वो हमसे कर ही देगी

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चले थे मोहब्बत करने 

(अनुशीर्षक में पढ़ें)




 हास्य रस 

चले थे मोहब्बत करने 

उनकी झील सी आँखों के हम तो बरबस कायल हो गए 
जानकर कि उन तिरछी निगाहों का निशाना था कोई और, हम तो घायल हो गए 

लगा हमें कि अपनी मोहब्बत का इज़हार वो हमसे कर ही देगी

Poonam Suyal

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! महादेवी वर्मा तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! तुम बसते हो दिल में मेरे मुझसे अलग तुम हो सकते नहीं तुम्हारे होने से ही दमकते हैं हम तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या?

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तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! 

(अनुशीर्षक में पढ़ें)
 तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! महादेवी वर्मा 

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या! 

तुम बसते हो दिल में मेरे 
मुझसे अलग तुम हो सकते नहीं 
तुम्हारे होने से ही दमकते हैं हम 
तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या?

Poonam Suyal

खूबियाँ हैं हम सब में जंगल के राजा शेर ने बुलाया सभी को करने युद्ध की तैयारी करने लगा मंत्रणा सबसे किसको क्या दी जाएगी जिम्मेदारी हाथी, हिरण, खरगोश, बंदर, गधा, भालू

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खूबियाँ हैं हम सब में 

(अनुशीर्षक में पढ़ें)













 खूबियाँ हैं हम सब में 

जंगल के राजा शेर ने बुलाया सभी को 
करने युद्ध की तैयारी 
करने लगा मंत्रणा सबसे 
किसको क्या दी जाएगी जिम्मेदारी 

हाथी, हिरण, खरगोश, बंदर, गधा, भालू

Poonam Suyal

आधुनिक भारत हमारा देश भारत कई धर्मों, भाषाओं, प्रदेशों का देश है। भिन्न-भिन्न प्रकार के रिवाज़, परिधान, व्यंजन यहाँ की ख़ासियत है।  भिन्नताओं के होते हुए भी यहाँ एकता हर जगह पायी जाती है। प्राचीन समय से आज के आधुनिक समय तक हम भारतवासियों ने बहुत कुछ देखा और झेला है। अपनी गलतियों से सीखा है हमने। तब जाके आज पूरे विश्व के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हम आज तरक्की की राह पर अग्रसर हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति करने के बाद से आज तक हमने एक तरफ बहुत कुछ खोया है तो दूसरी तरफ कितना कुछ पाया भी है। आधुनिक भ

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आधुनिक भारत 

(अनुशीर्षक में पढ़ें) आधुनिक भारत 

हमारा देश भारत कई धर्मों, भाषाओं, प्रदेशों का देश है। भिन्न-भिन्न प्रकार के रिवाज़, परिधान, व्यंजन यहाँ की ख़ासियत है।  भिन्नताओं के होते हुए भी यहाँ एकता हर जगह पायी जाती है। 

प्राचीन समय से आज के आधुनिक समय तक हम भारतवासियों ने बहुत कुछ देखा और झेला है। अपनी गलतियों से सीखा है हमने। तब जाके आज पूरे विश्व के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हम आज तरक्की की राह पर अग्रसर हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति करने के बाद से आज तक हमने एक तरफ बहुत कुछ खोया है तो दूसरी तरफ कितना कुछ पाया भी है। 

आधुनिक भ

Anuj Jain

रात होने को थी परंतु बिट्टू की आँखों में नींद का नामो निशान न था। 
छुटकी ने बताया था की आज अमावस्या की रात है और आज भूत निकलते हैं उन बच्चों को खाने जो झूठ बोलते हैं। छुटकी के अनुसार पहले भूत उन बच्चों के बाल पकड़ कर हवा में लटका देते हैं। 
बिट्टू को डर खाये जा रहा था की उसने छुटकी की चॉकलेट खा ली थी और कहा था की उसने नही देखी। 
सुबह माँ ने जब बिट्टू के कमरे में देख तो वो एक कोने में पड़ा सो रहा था और उसके बगल में कैंची पड़ी थी तथा उसके कटे हुए बाल ज़मीन पर बिखरे हुए थे। #rzबालसाहित्य 
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Dr Upama Singh

रचना नंबर –5 लक्ष्य (काव्य सरंचना)

एक लक्ष्य सही दिशा में होना चाहिए 
नहीं तो मानव जीवन जीना है व्यर्थ
दिशाविहीन लक्ष्य किसी काम ना आता
जीवन को बस गुमराह है करता
चिंता नहीं होनी चाहिए फल की
लक्ष्य के साथ मेहनत अपना काम
जब तक ना मिल जाए सफलता
जीवन में चलते रहना  
थकना नहीं रुकना नहीं 
मिले चाहें असफलता या हों सफल
गाँधी और विवेकानंद ने यही ज्ञान बतलाया
जिसने रखा लक्ष्य सही दिशा में वो कामयाब हो पाया
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Dr Upama Singh

नई नई शादी हुई पत्नी विदा होकर घर आई पति ने सुबह सुबह पत्नी पर ठंडी पानी उड़ेल आई गुस्से और बौखलाहट पत्नी झट उठ बैठी आँख से घूरते वो बोली कैसी प्रीत तुमने निभाई पति बोला हंँस कर कहा तेरे बाप ने मुझसे बोला है बेटी मेरे जिगर का टुकड़ा मेरे बगिया की फूल है

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रचना नंबर –4 हास्य रस (गज़ल)
अनुशीर्षक में 

नई नई शादी हुई पत्नी विदा होकर घर आई
पति ने सुबह सुबह पत्नी पर ठंडी पानी उड़ेल आई

गुस्से और बौखलाहट पत्नी झट उठ बैठी
आँख से घूरते वो बोली कैसी प्रीत तुमने निभाई

पति बोला हंँस कर कहा तेरे बाप ने मुझसे बोला  है
बेटी मेरे जिगर का टुकड़ा मेरे बगिया की फूल है

दामाद जी बेटी मेरी है नाज़ुक सी फूल की कली
कुम्हलाने मुरझाने मत देना इसलिए मैंने पानी डाली

गलती हो गई जो मैंने तुमसे शादी रचाई
सुधर जाओ आज से ही वरना रोज कराऊंँगी तेरी जग हंँसाई

पति सोचा बेकार में ही कहते हैं लोग पत्नी नहीं मानती कभी भी अपनी गलती
इसने तो आज से शुरू कर दी गलती हो गई मुझसे तुमसे शादी करके कहांँ से ये आफ़त मेरे गले पड़ी


 नई नई शादी हुई पत्नी विदा होकर घर आई
पति ने सुबह सुबह पत्नी पर ठंडी पानी उड़ेल आई

गुस्से और बौखलाहट पत्नी झट उठ बैठी
आँख से घूरते वो बोली कैसी प्रीत तुमने निभाई

पति बोला हंँस कर कहा तेरे बाप ने मुझसे बोला  है
बेटी मेरे जिगर का टुकड़ा मेरे बगिया की फूल है

Dr Upama Singh

     रचना नंबर – 3 छायावादी कविता  
       शीर्षक –“परिमल से सन्ध्या– सुन्दरी”
        सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

“दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है”
चारों ओर डूबते सूरज की लाली से
बन सन्ध्या सुन्दरी धरती पर बिखर रही
ढूंँढ़ने वो आ रही अम्बर से धीरे धीरे
शांत चुप रह कर अपने साँझ प्रेमी को
गोधूली बेला लिए नदी सागर के वक्षस्थल पर
बन अलसाई कली धीरे धीरे वो मुस्कुरा कर
छेड़े सांँझ संग मृदुल राग उठते मन जल तरंग को
चारहुँ ओर शांत पड़े हैं नीर, समीर, क्षितिज और अम्बर 
देख इस अप्रतिम सन्ध्या सुन्दरी को
देख आती तिमिर को ख़ुद को कर लीन
सन्ध्या सुन्दरी बन प्रेयसी छोड़ जा रही विरह राग
“आप निकल पड़ता तब एक विहाग”।। #rzछायावाद 
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Dr Upama Singh

आओ बच्चों तुम्हें आज सिखाऊँ। जीना कैसे है वर्तमान समय में मैं तुम्हें आज ये बतलाऊंँ।। रिश्ते, ज्ञान, प्रकृति और प्रेम दिखलाऊँ। यहीं हैं जीवन के सारे सच्चे रंग तुम्हें बताऊंँ।। जीवन में कितने भी आएं कठनाई। तुम सब ना छोड़ना राह जीवन की सच्चाई।।

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         रचना नंबर – 2 बाल कविता
         शीर्षक – “जीवन का सच”    

 आओ बच्चों तुम्हें आज सिखाऊँ।
जीना कैसे है वर्तमान समय में मैं तुम्हें आज ये बतलाऊंँ।।

रिश्ते, ज्ञान, प्रकृति और प्रेम दिखलाऊँ।
यहीं हैं जीवन के सारे सच्चे रंग तुम्हें बताऊंँ।।

जीवन में कितने भी आएं कठनाई।
तुम सब ना छोड़ना राह जीवन की सच्चाई।।
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